वो किस्सा जिसकी वजह से भाईजान की जान का दुश्मन बना ”बिश्नोई” ?
विजयदशमी के दिन जहां पूरा देश रावण दहन के जश्न में डूबा था, वहीं वर्तमान के राक्षस जिन्हें गैंगस्टर के नाम से जाना जाता है वो एक और कांड की कहानी रच रहा था …और इस कांड का शिकार बनाया गया मुंबई के NCP नेता बाबा सिद्दीकी को… उनके बदन में तीन गोली उतारकर हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया गया. लेकिन इस मौत की वजह बनी उनकी भाईजान यानी सलमान खान से दोस्ती….जिसके बाद बाबा सिद्दीकी की हत्या की गुत्थी में लॉरेंस विश्नोई और सलमान की खान की पुरानी रंजिश की तेजी से चर्चा शुरू हो गई है. इसकी वजह से वह सलमान के करीबियों और उनकी मौत साजिश बुनने में लगा हुआ है, लेकिन वह किस्सा क्या आइए जानते हैं…
26 साल पुरानी है रंजिश..
यह रंजिश 26 साल पुरानी है और बात साल 1998 अक्टूबर की जब सलमान खान अपने साथ कलाकारों के साथ फिल्म हम साथ-साथ हैं की शूटिंग के लिए राजस्थान के जोधपुर पहुंचे थे. उस दौरान शूटिंग लोकेशन से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर भवाद नामक कस्बे में सफेद जिप्सी में सवार होकर सभी कलाकार घूमने के लिए निकले थे. उसमें सलमान खान के अलावा सैफ़ अली खान, नीलम, सोनाली, तब्बू और दुष्यंत सिंह शामिल थे.
उस दौरान उन्हें काला हिरण नजर आया जिसकी उन्होंने गोली मारकर उसका शिकार कर दिया. गोली की आवाज सुनते ही गांव के लोग उस आवाज की तरफ भागे तो उन्हें एक सफेद रंग की जिप्सी भागती हुई नजर आई. जिप्सी का पीछा गांव के कुछ नौजवान करते हैं और चश्मदीद उस जिप्सी में सलमान खान के होने का दावा करते हैं. साथ ही मामले की पड़ताल शुरू हो जाती है और फिर बिश्नोई समाज सलमान खान पर पहली एफआईआर दर्ज करता है. इसके बाद चार और मामले दर्ज होते हैं. सलमान के साथ फिल्म के अन्य कलाकारों को आरोपी बनाया जाता है. सलमान की गिरफ्तारी होती है और उन्हें जेल जाना पड़ता है.
काले हिरण के शिकार के लिए सलमान को नहीं माफ कर पाया बिश्नोई समाज
इस मामले में कार्रवाई हुई. सलमान पर मुकदमा चला और वे जेल भी गए. लेकिन इन सब के बाद भी सलमान को वो सजा नहीं मिली जो बिश्नोई समाज उनके लिए न्यायालय से चाहता था. यही वजह है कि, काले हिरण के शिकार के लिए विश्नोई समाज उनको कभी माफ नहीं कर पाया. हालांकि, ऐसा नहीं था कि विश्नोई समाज ने इस गुनाह की सजा हत्या ही सुनिश्चित कर ली थी. हिरण के शिकार से आहत हुए बिश्नोई समाज ने सलमान के आगे इस गलती का पश्चाताप करने के लिए कई शर्तें रखी थी. इसमें वे इस मामले में माफी मांगे. साथ ही बीकानेर के मुक्तिधाम मुकाम में आकर बिश्नोई समाज के बुजुर्गों के सामने अपनी गलती मान ले, तब उन्हें माफ करने पर विचार किया जाएगा. दूसरी ओर सलमान ने ऐसा कुछ नहीं किया और उनकी गलती रंजिश का रूप लेती चली गई.
इसके बाद साल 2018 में इस मामले में एंट्री हुई बिश्नोई समाज से ताल्लुक रकने वाले लॉरेंस विश्नोई की…जिसने ऐलान किया कि वो सलमान खान से काले हिरण के शिकार का बदला लेकर रहेगा. उसके बाद उसने अपराध की दुनिया में नाम कमाना शुरू कर दिया. इसके बाद बिश्नोई गैंग की तरफ से सलमान खान पर जानलेवा हमले करवाए गए . इसके अलावा साल 2022 में लॉरेस का नाम सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड में सामने आया और उसकी गिरफ्तारी की गई. दूसरी ओर सलमान को लेकर उसके मन में गुस्सा बरकरार है. लॉरेंस सलमान पर हमला कराने के साथ उनके पिता सलीम खान को भी धमकी दे चुका है. लेकिन बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद यह गैंग और दुश्मनी की कहानी चर्चा फिर से चर्चा में आ गई है.
काला हिरण बिश्नोई समाज के लिए क्यों है खास ?
बिश्नोई समाज में काला हिरण काफी पूजनीय माना जाता है. यह समाज सिर्फ राजस्थान ही नहीं बल्कि हरियाणा, यूपी, पंजाब और मध्य प्रदेश में पाया जाता है. वहीं बीबीसी की एक रिपोर्ट में जोधपुर से सांसद रहे जसवंत सिंह बिश्नोई बताते हैं कि जम्भेश्वर जी हमारे संस्थापक रह चुके हैं और उन्होंने ही हमें जीवों पर दया करने का पाठ पढाया था. उन्होंने कहा था कि, जीवों की रक्षा और पेड़ो की सुरक्षा करने से इंसान बैकुंठ को प्राप्त होता है. साथ ही बिश्नोई समाज काले हिरण को भगवान कृष्ण का अवतार मानता है. ऐसे में वह उसकी रक्षा के लिए अपनी जान तक न्यौछावर कर सकता है. ऐसे कई मामले भी हैं जिसमें बिश्नोई समाज के लोगों ने अपनी जान गंवाई है. इनमें 1730 में सगी बहनों करमा और गौरा, 1947 में चिमनाराम और प्रतापराम, 1963 में भीयाराम आदि जैसे लोग शामिल हैं.
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कौन है गुरू जंम्भेश्वर ?
Bishnoi.co.in के अनुसार, गुरू जंम्भेश्वर अपने माता पिता के इकलौती संतान थे. उन्होंने अपने माता-पिता की खूब सेवा की और उनके निधन के बाद उन्होंने अपनी सारी संपत्ति को त्यागकर भगवान की सेवा में बीकानेर चले गए. उन्होंने यहां के एक गांव के केंद्र में रहकर लोगों की सेवा करना शुरू कर दिया. उस समय राजस्थान में अकाल पड़ गया और इससे परेशान होकर लोग घरों को छोड़कर मालवा की ओर प्रस्थान करने लगे. ऐसे में जंभेश्वर ने सभी को रोका और अनाज, पैसों की मदद की. साथ ही धर्म के नाम पर फैले पाखंड से लोगों को बचने का उपदेश दिया. साथ ही धार्मिक पाखंडों और कर्मकांडों का जमकर विरोध किया.
गुरु जंभेश्वर के विचारों से प्रभावित होकर लोग उनके साथ जुड़ने लगे और फिर साल 1485 में 34 वर्ष की उम्र में उन्होंने समराथल धोरा नामक एक बड़े रेत के टीले पर हवन किया. उस विशाल हवन के दौरान कलश की स्थापना कर एक पंथ की शुरूआत की गई जिसे आगे चलकर “बिश्नोई” समाज के तौर पर जाना गया. ऐसे में सबसे पहले इस पंथ में शामिल होने वाले सदस्यों में गुरु जंभेश्वर के चाचा पुल्होजी जी थे. आज भारत में बिश्नोई समाज के लोगों की संख्या करीब 13 लाख है. इनमें सबसे ज्यादा 9 लाख राजस्थान में है. हरियाणा में यह 2 लाख के करीब हैं.