जज्बे को सलाम : शहीद पति का बदला लेने के लिए ज्वॉइन की आर्मी
आतंकवाद एक ऐसी महामारी की तरह फैल चुका है जिससे दुनिया के तमाम देश इसके आगोश में आ चुके हैं। इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए पूरी दुनिया को एकजुट होने की जरुरत है। हमारे देश में आए दिन आतंकी हमले हो रहे हैं और हमारे देश के जवान उन हमलों में शहीद हो रहे हैं। इसके बावजूद देशभक्ति का जज्बा हमारे देश के युवाओं में कम नहीं होता है। हम आपको एक ऐसी शख्सियत से आज रुबरु कराने जा रहे हैं जिसकी कहानी हमारे देश के युवाओं में एक नया जोश और जज्बा पैदा करता है। ऐसी सोच की वजह से ही हमारा देश इन आतंकियों के मसूंबो पर पानी फेर रहा है।
पति को श्रद्धांजलि देने के लिए स्वाति ने ज्वॉइन किया सेना
दरअसल, पिछले साल 17 नवंबर को कश्मीर के कुपवाड़ा में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद होने वाले जांबाज कर्नल संतोष महादिक के इस बलिदान को देश कभी नहीं चुका सकता है। उनके शहीद होने के बाद, एक तरफ पूरा देश शोक में डूबा था तो वहीं उनकी पत्नी स्वाति महादिक अपने शहीद पति को श्रद्धांजलि देने के लिए सेना में भर्ती होकर देशसेवा करने का निर्णय लिया। इनके इस फैसले ने दिखा दिया कि देशसेवा का जज्बा किसी के बेटे, पति, या भाई के शहीद हो जाने से खत्म नहीं होता है बल्कि उनके दिलों में देश के लिए और भी सेवा का भाव पैदा हो जाता है।
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रक्षा मंक्षालय ने आयु सीमा में दी छूट
स्वाति महादिक के इस फैसले में उनके सामने एक समस्या भी खड़ी हो गई क्योंकि सेना भर्ती के नियमानुसार अधिकतम आयु सीमा 27 साल है लेकिन उस समय स्वाति की आयु 37 साल थी जिसके लिए उन्होंने रक्षा मत्रालय को पत्र लिखकर आयु में छूट देने की मांग की। स्वाति की देश सेवा की भावना को देखते हुए रक्षा मंत्रालय ने उन्हें आयु में छूट की सिफारिश मंजूर कर दी। इसी के साथ स्वाति ने एसएससी की परीक्षा पास कर चेन्नई में फौज की ट्रेनिंग लेने चली गईं। एक साल की कड़ी ट्रेनिंग के बाद उन्हें बतौर लेफ्टिनेंट भारतीय सेना में कमान संभाली।
बच्चे भी सेना में हो भर्ती
स्वाति चाहती है कि उनके बच्चे भी सेना में शामिल होकर देश की सेवा करें। स्वाति के दो बेटे हैं। मालूम हो कि कश्मीर में एक तलाशी अभियान के दौरान 41 राष्ट्रीय राइफल के दल का नेतृत्व कर रहे संतोष महादिक आतंकियों की गोली का शिकार हो गए थे। 39 वर्षीय संतोष महादिक को वीरता के लिए मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। महादिक आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके शौर्य की गाथा हमेशा हमारे देश के युवाओं को प्रेरित करती रहेगी। उनकी इस कुर्बानी को अपने दिलों में ऱखते हुए देशभक्ति की भावना को लोगों के दिलों में जगाता रहेगा।
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