फिरोज खान की नियुक्ति को स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने बताया गलत

0

जिन लोगों को ऐसा लगता है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की धर्म संकाय में ये संस्कृत भाषा के नाम पर नियुक्ति है, उन्हें यह याद रखना चाहिए कि कला संकाय में भी संस्कृत पढ़ाई जाती है।

धर्म संकाय में गैर-हिंदू धर्म की शिक्षा नहीं दे सकता।

हम अपनी धार्मिक शिक्षा किसी और धर्मावलंबी से नहीं ले सकते।

इस नाते इस विषय को भाषा के आधार पर सोचने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों से आग्रह है कि इस विषय को अपने भाषाई सोच तक सीमित रखें।

इससे थोड़ा सा बाहर निकलने की भी कोशिश करें कि यह संस्कृत भाषा का विषय नहीं है।

किसी मुसलमान के संस्कृत पढ़ाने का विषय नहीं है।

यह सनातन हिंदू धर्म में सीधे – सीधे अन्य मतावलंबी द्वारा हमें धर्म की शिक्षा वो देगा, यह इसका विषय है।

महामना की सोच भाषा को लेकर बहुत बड़ी थी।

ऐसा नहीं था कि उनके मुसलमान मित्र नहीं थे और महामना ने अगर इस धर्म विज्ञान संकाय को अलग किया।

संस्कृत भाषा से तो कुछ सोच समझ करके किया होगा।

इसलिए मैं कुलपति जी को भी कहुंगा कि इस मुद्दे पर अखिल भारतीय संत समिति अपने उस संकाय के छात्रों के साथ खड़ी है।

VIDEO-

आप किसी मुसलमान को संस्कृत का प्रोफेसर हो जाए, संस्कृत पढ़ाए, पिताजी भजन गाते हैं।

इस तरह के इमोशनल आधार पर सनातन धर्म को तौलने की कोशिश मत कीजिए।

वो विषय सर्वथा अलग विषय है। यह भाषा का विषय नहीं है, हमारे धर्म का विषय है।

और महामना ने साफ कहा था कि सनातन धर्म का ज्ञान वही दे जो सनातन धर्मांवलंबी हो।

इस नाते यह धर्म विज्ञान संकाय है न कि संस्कृत विभाग है।

उसका ट्रांसफर उस संस्कृत विभाग में कर दे, और देश के किसी भी केंद्रीय विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ाए।

बीएचयू में भी अन्य विभाग के अंदर संस्कृत पढ़ाए इस बात पर हमें कोई आपत्ति नहीं हो सकती।

हमारी आपत्ति सिर्फ इतनी है कि वह धर्म विज्ञान का संकाय है, जहां सनातन धर्म के बारे में शिक्षा दी जाती है।

हमारा धर्म, हमारा धर्म विज्ञान कोई मुसलमान हमें पढ़ाए, ये हमें मंजूर नहीं है।

(ये अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानंद की निजी राय है।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More