Electoral Bond पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

एसबीआई से 3 हफ्ते के अंदर मांगी रिपोर्ट

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Electoral Bond: सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर महत्वपूर्ण निर्णय दिया है. लोकसभा चुनावों की घोषणा से पहले चुनावी बॉन्ड स्कीम को अवैध ठहराते हुए SC ने इस पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने निर्णय दिया कि इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना अधिकार का उल्लंघन करता है. कोर्ट ने कहा कि, वोटरों को पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानने का पूरा अधिकरा होता है और पार्टी को बॉन्ड खरीदने वालों की सूची भी सार्वजनिक करनी होगी.

इसके आगे सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, ”नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार के पास पैसा कहां से आता है और कहां जाता है. कोर्ट ने माना कि गुमनाम चुनावी बांड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है. सीजेआई ने फैसला सुनाते हुए यह भी कहा है कि, इलेक्टोरल बॉन्ड के अलावा भी काले धन को रोकने के लिए दूसरे तरीके हैं. अदालत ने फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड की गोपनीयता ‘जानने के अधिकार’ के खिलाफ है. राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी होने से लोगों को मताधिकार का इस्तेमाल करने में स्पष्टता मिलती है.”

2018 में लागू हुई थी योजना

सरकार ने योजना को दो जनवरी 2018 को घोषित किया था. इसके अनुसार, चुनावी बॉण्ड को भारत में स्थापित किसी भी नागरिक या देश में स्थापित कोई भी इकाई खरीद सकती है. चुनावी बॉण्ड कोई भी व्यक्ति अकेले या एक साथ खरीद सकता था. वही पंजीकृत राजनीतिक दल जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29A के तहत चुनावी बॉण्ड स्वीकार करने के पात्र थे. इसको लेकर शर्त बस यह थी कि, उन्हें पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों. मान्यताप्राप्त राजनीतिक दल केवल अधिकृत बैंक खाते से चुनावी बॉण्ड भुना सकते थे, बॉन्ड खरीदने के पखवाड़े भर के भीतर, संबंधित पार्टी को उसे अपने रजिस्टर्ड बैंक खाते में जमा करना चाहिए. यदि पार्टी इस कार्य में असफल होती है तो बॉन्ड निरर्थक और निष्प्रभावी यानी रद्द हो जाएगा.

जानें क्या होता है इलेक्टोरल ब्रॉड ?

इस बॉन्ड की शुरुआत 2018 में हुई थी, इसे लागू करने का उद्देश्य था कि इससे साफ-सुथरा धन आएगा और राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी. इस प्रक्रिया में व्यक्ति, कंपनियां और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती थीं, जिसे राजनीतिक दल बैंक में भुनाकर पैसा प्राप्त करते थे. भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड बनाने और भुनाने की अनुमति दी गई. नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु में ये शाखाएं थीं.

2018 में सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य चुनावी फंडिंग प्रणाली को सुधारना था. 2 जनवरी 2018 को मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की घोषणा की. 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट लागू हुआ. जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में यह बॉन्ड चार बार जारी किया जाता था, ग्राहक इसे बैंक शाखा में खरीद सकता था या उसकी वेबसाइट पर ऑनलाइन खरीद सकता था.

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इलेक्टोरल बॉन्ड की खूबियां

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से एक करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदकर डोनर अपनी पहचान छिपाकर अपनी पसंद के राजनीतिक दल को चंदा दे सकता था. ये व्यवस्था टैक्स से छूट देती है और दानकर्ताओं की पहचान का खुलासा नहीं करती है. इस बॉन्ड से चंदा सिर्फ आम चुनाव में कम से कम 1 फीसदी वोट पाने वाले राजनीतिक दल को मिल सकता था.

 

 

 

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