हजारों लड़कियों की जिंदगी रोशन कर चुकी हैं सुनीता

0

शायद ही कोई महिला होगी जो अपने साथ हुए बलात्कार के बारे में दुनिया को बताना चाहेगी। लेकिन डॉ. सुनीता कृष्णन ने न सिर्फ अपने साथ हुई ज्यादती के बारे में सबको बताया, बल्कि उस लड़ाई को भी नहीं छोड़ा, जिसके कारण उनका गैंगरेप किया गया था। हजारों लड़कियों की जिंदगी में रोशनी की किरण बनकर आई सुनीता को उनके महान कार्य के लिए अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं। डॉ. सुनीता कृष्णन जो अदम्य साहस से भरपूर हैं, बिल्कुल निडर हैं। इसी साहस और निडरता की वजह से वे मानव तस्करी जैसे बड़े संगठित अपराध को खत्म करवाने के लिए जी-जान लगाकर लड़ रही है।

बचपन से ही जारी है समाजसेवा  

बेंगलुरू में जन्मी डॉ. सुनीता कृष्णन की जिंदगी बहुत जटिलताओं से भरी रही है। समाजसेवा के प्रति उनके जज्बे का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वे आठ साल की उम्र में ही मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को डांस सिखाने लगी थीं। जब वह महज 12 साल की थीं, तो हैदराबाद की झुग्गी-झोंपडि़यों में रहने वाली बच्चियों को पढ़ाने का बीड़ा उठा लिया। 15 साल की उम्र तक आते-आते सुनीता ने दलित बच्चियों के उद्धार के लिए काम करना शुरू कर दिया था।

सामूहिक बलात्कार की शिकार

सुनीता का यह काम वेश्यावृत्ति कराने वालों व मानव तस्करी में लिप्त माफियाओं को नागवार गुजरा। इन माफियाओं के गुंडों ने सुनीता को गरीब बच्चियों को पढ़ाने का सपना छोड़कर उनसे दूर रहने की धमकी दी। लेकिन धमकियों को नजरअंदाज कर सुनीता कृष्णन अपने मिशन को कामयाब बनाने की कोशिश में जुटी रहीं। एक रात घनघोर अंधेरे में कुछ लोगों ने सुनीता पर माफियाओं ने हमला बोल दिया और उन्हें अगवा कर किया। फिर आठ लोगों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया। सुनीता कृष्णन पंद्रह साल की उम्र में अत्याचार और बलात्कार का शिकार हुई थीं।

नहीं छोड़ी उम्मीद

सुनीता कृष्णन के लिए वो दौर बहुत ही चुनौतियों भरा था। गैंगरेप के बाद दो साल तक लोगों ने उन्हें इस तरह दुत्कारे रखा मानो गैंगरेप की दोषी वह खुद ही हों। उस घटना से पहले वे अपने माता-पिता की चहेती संतान थीं। घटना के बाद मां-बाप, दूसरे रिश्तेदारों को वे सभी काम बुरे लगने लगे, जिन कामों के कारण कभी उनकी तारीफ की जाती थी। सभी तरह-तरह से सुनीता को गलत कहने-समझने लगे, लेकिन फौलादी इरादों वाली सुनीता ने कभी भी जीवन में निराशा को पनपने नहीं दिया। और उन्होंने खुद को कभी दोषी नहीं माना, बल्कि यह हादसा उन्हें और मजबूत कर गया।

नई पारी की शुरूआत

सामूहिक बलात्कार की घटना के कुछ ही दिनों बाद सुनीता कृष्णन ने फैसला किया कि वो बलात्कार की शिकार हुई दूसरी लड़कियों और महिलाओं से मिलेंगी और उनका दुःख-दर्द समझेंगी। इसी मकसद से वे वेश्यालय जाने लगी थीं। वेश्यालयों में लड़कियों और औरतों की हालत देखकर उन्हें ये आभास हुआ कि इन लड़कियों और औरतों की पीड़ा के सामने उनकी पीड़ा कुछ भी नहीं। वे तो एक बार बलात्कार का शिकार हुई थीं, लेकिन समाज में ऐसी कई सारी लड़कियां हैं, जिनके साथ रोज बलात्कार होता है। उसी दिन एक मानसिक रूप से विकलांग लड़की को वेश्यालय से मुक्ति दिलाने के बाद सुनीता कृष्णन के लिए पीड़िताओं की मुक्ति और उनका पुनर्वास जीवन का सबसे महत्वपूर्ण काम बन गया।

…जब जाना पड़ा जेल

1996 में बैंगलोर में मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता के आयोजन की तैयारियां जोरों पर थीं। सुनीता कृष्णन ने इस प्रतियोगिता को रुकवाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। सुनीता का मानना था कि कुछ लोग महिलाओं को भोग की वास्तु मानते हैं और ऐसे ही लोग सौंदर्य प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं। बड़े पैमाने और पूरे जोर-शोर के साथ आयोजित की जा रही इस प्रतियोगिता का विरोध करने पर पुलिस ने सुनीता कृष्णन को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद उन्हें जेल में बंद करवाया गया, ताकि वे बाहर आकर फिर उसका विरोध न कर सकें। पूरे दो महीने तक सुनीता कृष्णन को जेल में रखा गया।

प्रज्जवला का जन्म

जेल से बाहर आने के बाद सुनीता ने अपने भाई के साथ मिलकर एक संस्था बनाई, जिसका नाम रखा- ‘प्रज्जवला।’ नाम के अनुरूप ही इसका काम था, नारी को भोग की चीज समझने वालों को नारी शक्ति का वास्तविक अर्थ समझाना। संस्था का उद्देश्य देह के दलालों, कोठा मालिकों, पोर्न फिल्म बनाने वालों के शिकंजे से मासूम बच्चियों, युवतियों और महिलाओं को आजाद करना और उन्हें एक नई जिंदगी देना था।

हर तीसरे दिन मुक्त कराती हैं एक बच्ची

‘प्रज्जवला’ आज इस मुकाम पर है कि अब तक 8,000 से अधिक बच्चियों को दरिंदों के चंगुल से मुक्त करा चुकी है, जिनकी उम्र दस साल से कम थी। सुनीता की बात करें तो औसतन उन्होंने हर साल 128 बच्चियों को आजाद कराया यानी औसतन हर तीन दिन में एक बच्ची। मानव तस्करी और देह व्यापार विरोधी यह संस्था अब तक लगभग 12,000 महिलाओं को भी कोठों, मानव तस्करों और बलात्कारियों के शिकंजे से निकाल चुकी है। मतलब अब तक 20,000 बच्चियों और महिलाओं को सुनीता की संस्था ने नई जिंदगी दी है।

इसी विषय पर की पीएचडी

सुनीता की पढ़ाई बेंगलुरू और भूटान में हुई। ग्रेजुएशन करने के बाद सुनीता ने मंग्लोर से एमएसडब्ल्यू यानी मास्टर इन सोशल वर्क में स्नातकोत्तर किया। इसके बाद उन्होंने समाजसेवा और सेक्स वर्कर्स की जिंदगी को समझने, उनको मुक्त कराने के दौरान आने वाली समस्याओं और कानूनी पेचिदगियों को समझने के लिए इसी विषय में पीएचडी भी की है।

पद्मश्री से सम्मानित

सुनीता कृष्णन ‘प्रज्जवला’ के बैनर तले शोषित और पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष कर रही है। जिस्म के कारोबारियों, दलालों, गुंडों-बदमाशों, बलात्कारियों जैसे असामजिक तत्वों और अपराधियों के चंगुल से लड़कियों और महिलाओं को मुक्ति दिलाकर उनका पुनर्वास करवाने में ‘प्रज्जवला’ समर्पित है। समाज-सेवा और महिलाओं के उत्थान के लिए किए जा रहे कार्यों की सराहना करते हुए हाल ही में भारत सरकार ने सुनीता कृष्णन को देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ से नवाजा है। इसके अलावा सुनीता 14 डॉक्यूमेंट्री बना चुकी हैं, अनेक पुस्तकें लिख चुकी हैं और दो दर्जन से अधिक पुरस्कार पा चुकी हैं।

अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More