अंतिम संस्कार के 12 साल बाद जब घर वापस पहुंचा लड़का

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जाको राखे साईंयां मार सके ना कोई…कबीर का ये दोहा इस खबर पर बिल्कुल सटीक बैठता है। ये मामला है बुलंदशहर का है जहां एक परिवार अपने तीन साल के कलेजे के टुकड़े का अंतिम संस्कार कर सालों तक उसका शोक मनाता रहा। एक दिन अचानक ही वो मु्र्दा जिंदा होकर घर वापस आ गया। दरअसल, आज से लगभग 12 साल पहले जब गगन की उम्र 3 साल थी तब उसे सांप ने डंस लिया था।

उसके परिवार वालों ने उसके शव को नदी में प्रवाह करके अंतिम संस्कार कर दिया। सपेरों ने उसे बाहर निकालकर उपचार किया। किशोरावस्था में पहुंच चुका यही बालक घटना के 12 साल बाद इत्तेफाक से सपेरों की टोली के साथ अपने गांव में पहुंचा तो परिजनों ने पहचान लिया। सपेरों ने पूरी तस्दीक के बाद उसे परिजनों के सुपुर्द कर दिया।

गंगा से निकाल लिया और उपचार के बाद स्वस्थ कर दिया

खानपुर-बसी मार्ग स्थित जरियां आलमपुर लोध बहुल गांव है। गांव निवासी मदन सिंह के बेटे गगन को 12 साल पहले सांप ने डस लिया था। उस समय गगन की उम्र तीन साल थी। आनन-फानन में परिजन गगन को इलाज के लिए पास के नंगला मायापुर गांव और फिर ख्वाजपुर ले गए। इलाज से कोई फायदा नहीं हुआ तो ग्रामीणों की सलाह पर परिजनों ने गगन का बसी गंगा में जल-प्रवाह कर दिया था। समय तेजी के साथ बढ़ता रहा। बताया जाता है कि जल प्रवाह के बाद सपेरों ने गगन को गंगा से निकाल लिया और उपचार के बाद स्वस्थ कर दिया।

चार दिन पूर्व (घटना के 12 साल बाद) गगन सपेरों की टोली के साथ अपने गांव जरियां आलमपुर पहुंच गया। इत्तेफाक से परिजनों की निगाह गगन पर पड़ी तो उन्हें उसमें कुछ अपनापन सा नजर आया। इसके बाद उसे पहचानने की कवायद शुरू हुई। आखिरकार, परिजनों ने छाती पर बने स्वास्तिक निशान के आधार पर उसे पहचान लिया। गगन की मां गायत्री लोधी ने पति मदन सिंह से कहा कि यह हमारा गगन है, लिहाजा सपेरों से इस बारे में बात की। जब मदन सिंह ने सपेरों को इस बारे में बताया तो उन्होंने इसे महज भ्रम बताते हुए गगन को उन्हें सौंपने से इन्कार कर दिया। परिजनों ने गगन के शरीर पर बने तिल और घाव आदि के बारे में जानकारी देते हुए अपना पक्ष पुख्ता किया तो सपेरों को यकीन आ गया। मां ने सपेरों से बार-बार विनती की। इसके बाद सपेरों ने गगन को परिजनों के सुपुर्द कर दिया।
परंपरा और गुरु शिक्षा का फायदा

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दरअसल, हिंदू धर्म की एक मान्यता के मुताबिक बच्चे, गर्भवती, कुष्ठ रोग और सांप के काटे जाने वाले व्यक्ति का दाह संस्कार नहीं किया जाता है। इन सभी को यथा संभव नदी में बहा दिया जाता है। उन्हीं मामलों में ऐसा देखा गया है। कभी ऐसे ही मामले में एक सपेरे से बातचीत की कुछ स्मृतियों में देखें तो सर्पदंश से मरे व्यक्ति को जीवन दान देने वाले सपेरे अपने यहां की परंपरा के मुताबिक जिन्दा हुए इंसान को कम से कम चौदह वर्ष तक साथ रखते हैं। उसके बाद वह परिजनों की मर्जी से घर जा सकता है नहीं तो वह जीवन भर साथ रहकर बीन बजाय और गुरु शिक्षा ग्रहण कर साधु रूपी जीवन जीता है। ऐसे ही सपेरे दावा करते हैं कि सांप का काटा इंसान मरने के बाद यदि उसके नाक, कान औऱ मुंह से खून नहीं निकला हो तो वह एक महीने दस दिन बाद भी जिन्दा हो सकता हैं।

दैनिक जागरण

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