मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ शुरू किया डेयरी का काम, कमा रहा है करोड़ों
कभी-कभी लोगों की जिंदगी में कुछ ऐसी घटनाएं या फिर किसी चीज के प्रति रुझान के कारण अपनी दिशा ही बदल लेता है। लोग कहते हैं कि पढ़ने -लिखने का मतलब नौकरी पाना होता है। लेकिन इन बातों को आज के युवा झूठा साबित कर रहे हैं। दरअसल, आज का युवा नौकरी से ज्यादा खुद का कोई बिजनेस करने को तवज्जो देता है। कुछ ऐसी ही कहानी है संतोष की। संतोष खुद एक आईटी प्रोफेशनल हैं लेकिन उन्होंने खुद का स्टार्टअप शुरू करने के लिए लाखों की नौकरी को छोड़ दिया। संतोष ने नौकरी छोड़ कर डेयरी का काम शुरू कर दिया। संतोष के पास डेयरी फार्मिंग से जुड़ा कोई अनुभव नहीं था। इसलिए उन्होंने राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में प्रशिक्षण के लिए अपना नामांकन करवा लिया।
शिक्षा के हिस्से के तौर पर संतोष डेयरी फार्मिंग से जुड़े कई अनुभव हासिल किये। इस दौरान उन्होंने सीखा कि गाय पालन कैसे किया जाता है। जिससे उनमें विश्वास आया, कि वे इस काम को लंबे समय तक कर सकते हैं। साथ ही उनको ये भी लगने लगा, कि ये वास्तव में एक बेहतरीन कारोबार है। शुरूआत में संतोष ने 20 गायों से अपना काम शुरू करने का मन बनाया और उसी को ध्यान में रखते हुए बुनियादी ढांचा तैयार किया।
लेकिन एनडीआरआई के एक ट्रेनर, जिनसे संतोष ने प्रशिक्षण लिया था उन्होंने उनको सलाह दी कि वे इस मामले में तकनीकी मदद के लिए नाबार्ड से जानकारी लें। संतोष ने जब नाबार्ड में इस संबंध में बातचीत की, तो उनको पता चला कि संसाधनों के सही इस्तेमाल से उनको लाभ हो सकता है, जरूरत है काम को बड़ा करने की और मवेशियों की संख्या को 100 तक करने की। इससे उनको हर रोज डेढ़ हजार लीटर दूध मिलेगा और एक अनुमान के मुताबिक उनका वार्षिक कारोबार 1 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है।
पिछले कुछ सालों के दौरान डेयरी उत्पादों के दाम तेजी से चढ़े हैं और इस कारोबार में मार्जिन काफी अच्छा है। संतोष का आत्मविश्वास उस वक्त और बढ़ा जब नाबार्ड ने उनको डेयरी फार्मिंग के लिए सिल्वर मेडल से सम्मानित किया। जिसके बाद स्टेट बैंक ऑफ मैसूर उनके प्रोजेक्ट में निवेश के लिए तैयार हो गया। इस निवेश से उनके काम में तेजी आ गई और उन्होने 100 गायों को रखने के लिए आधारभूत ढांचे पर काम करना शुरू कर दिया।
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इसके साथ-साथ उनके मन में एक विचार और भी आ रहा था और वो विचार था, सूखे के हालात (जब हरा चारा मिलना मुश्किल होता है)। जिस दौरान संतोष ने अपना डेयरी का काम शुरू किया उस दौरान बेमौसम बारिश होने से आसपास के इलाकों में सूखे जैसे हालात बन गये थे और हरे चारे के दाम दस गुणा तक बढ़ गये। हर रोज उत्पादन भी गिरने लगा और वो अपने निचले स्तर तक पहुंच गया। हालात इतने खराब हो गए कि संतोष को अपनी बचत का पैसा भी इस काम में लगाना पड़ा, लेकिन उन्होंने परिस्थितियों से घबरा कर अपने काम को रोका नहीं बल्कि जारी रखा और ऐसे हालात से निपटने के लिए उपाय ढूंढने शुरू कर दिये।
उन्होंने फैसला लिया कि उनको हाइड्रोफॉनिक्स के जरिये हरा चारा पैदा करना चाहिए। जिसे पाने के लिए लागत भी व्यावसायिक रूप से कम पड़ती है। संतोष को शुरूआती दिनों में मौसम का नकारात्मक प्रभाव अपने काम पर झेलना पड़ा, लेकिन अगले ही साल बारिश अच्छी हुई और संतोष दूध का उत्पादन बढ़ाने में सक्षम हो गये। अब संतोष अपने काम को बेहतर तरीके से कर पा रहे हैं और डेयरी उद्योग को एक नई दिशा देते हुए लोगों के सामने उदाहरण के रूप में खुद को खड़ा कर चुके हैं, कि कैसे एक आईटी प्रोफेशनल एसी कमरों और बिज़नेस क्लास हवाई यात्रा की नौकरी छोड़ डेयरी उद्योग की ओर मुड़ कर उसे भी बेहतरीन तरीके से करता है।