सरकारी नौकरी छोड़ शुरू की खेती, आज है 40 लाख का टर्नओवर
साल 2008 का वक्त था गुरदेव के गांव में करीब ढाई एकड़ जमीन पड़ी थी। वह उस वक्त सोच ही रही थीं कि क्यों न खाली पड़ी जमीन पर खेती की जाए। हालांकि गुरदेव के पास खेती का कोई अनुभव तो था नहीं। इसलिए उन्होंने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से दो महीने तक सब्जियां उगाने, फलों व अनाज से तरह-तरह के खाद्य पदार्थ तैयार कर मार्केट में बेचने की ट्रेनिंग ली और उसके बाद गांव की जमीन पर खेती-बाड़ी शुरू कर दी। उन्होंने गोभी, गाजर, मिर्च, शिमला मिर्च, हल्दी,अदरक, नींबू, आंवला, दालों व गन्ने की खेती की। साथ ही मधुमक्खी पालन शुरू किया। वह ऑर्गेनिक चावल की भी खेती करती हैं।
सब्जी और आंवला से अचार बनाकर बेचने की शुरूआत
सब्जियों, आंवला से आचार व मुरब्बा बनाकर और चावल, दालों व हल्दी से पाउडर बनाकर उसे बढिय़ा पैकिंग में उसे मार्केट, मेलों, मंडियों में जाकर डायरेक्ट सेल करना शुरू कर दिया। बेहतर क्वालिटी की वजह से उनके द्वारा तैयार उत्पादों की बिक्री बढ़ गई। लोगों की बातों की परवाह किए बिना वह आगे बढ़ती गईं। ग्लोबल सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाकर पीएयू महिलाओं को ट्रेनिंग दी। गुरदेव कौर को कई तक अवॉर्ड मिल चुके हैं। वर्ष 2009 में पीएयू की ओर से आयोजित राज्य स्तरीय किसान मेले में जगबीर कौर अवॉर्ड, वर्ष 2010 में स्टेट अवॉर्ड इन एग्रीकल्चर व 2011 में नाबार्ड की ओर से सेल्फ हेल्प ग्रुप के लिए स्टेट अवॉर्ड मिल चुका है।
ग्लोबल सेल्फ हेल्प ग्रुप की स्थापना
इसके साथ ही गुरदेव ने ग्लोबल सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाया। ग्रुप के अलावा आर्गेनिक खेती करने वाले किसानों का सामान बेचने के लिए उन्होंने फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन के नाम से संस्था बनाई। इसकी बदौलत आज 9 सालों में ही उनका सालाना टर्न ओवर लगभग 40 लाख तक पहुंच गया है। इस मेहनत की बदौलत उन्हें सरदारनी जगबीर कौर अवार्ड ग्रुप को भी स्टेट अवार्ड मिल चुका है। उनकी मेहनत देख वेरका ने दो महीने पहले लुधियाना और मार्कफैड ने चंडीगढ़ में उन्हें सेल सेंटर अलॉट किया है।
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