ऐसे लिखी सफलता की कहानी, विदेश में खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी

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हर कोई चाहता है कि वो सफलता की मंजिलों तक पहुंचे और जितनी जल्दी हो सके वो सफल इंसान बन  जाए। लेकिन सपलता की मंजिल तक पहुंचने के लिए रातों की नींद खोना पड़ता है अपने सपनों को अपना पूरा करने के लिए बहुत सी मुसीबतों का समाना करना पड़ता है। जो इन सभी चुनौतियों को स्वीकार करता है, आखिर में वही सफलता का स्वाद चखता है। लेकिन जो सफलता इन मुश्किलों को पार करके मिलती है उसकी अनुभूति दुनिया की किसी भी खुशी से ज्यादा होती है।

बनना चाहते थे डॉक्टर

कुछ ऐसी ही कहानी है देश के पहले दलित युवा उद्यमी अतुल पासवान(Atul) की। अतुल ने बचपन में डॉक्टर बनने का सपना देखा था। लेकिन वो नहीं जानते थे कि डॉक्टर बनने के लिए चीरफाड़ जैसे कामों से गुजरना पड़ता है। जब अतुल पासवान कॉलेज की लैब में अपने साथियों के साथ गए तो वहां पर मेढक के चीरफाड़ को देखते हुए गिर गए।

कुछ अलग करने का फैसला किया

जिसके बाद उन्होंने डॉक्टर बनने का सपना वहीं पर चोड़ दिया और कुछ नए सपनों के साथ ही तय किया कि वो कुछ ऐसा काम करेंगे जिसमें किसी तरह का खून खराबा न हो। बिहार के छोटे से गांव से निकल कर विदेशों तक पहुंचने के रास्तों में बहुत सी मजबुरियों का सामना करना पड़ा।

अतुल कॉलेज के दिनों में थे तभी किसी दोस्त ने बताया कि दिल्ली के जेएनयू विश्वविद्यालय में फॉरेन लैंग्वेज के बारे में पता चला जिसके बाद उन्होंने उस कोर्स में दाखिला ले लिया। हिंदी माध्यम से होने की वजह से उन्हें दिक्कतें भी हुईं लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर जापानी भाषा को सीखना शुरू कर दिया।

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साल 1977 में जब अतुल ने ग्रेजुएशन पूरा किया तो इसके साथ ही समझ में आ गया कि एक भाषा से आप इस प्रतिस्पर्धा के दौर में करियर को सुरक्षित नहीं कर सकते हैं। इसलिए अतुल ने पॉडिचेरी यूनिवर्सिटी से एमबीए में दाखिला लेकर पढ़ने चले गए।

जापान की आईटी कंपनी में मिली नौकरी

इसी दौरान उन्हें सॉफ्टवेयर की दुनिया को नजदीक से समझने का मौका मिला। इसी के साथ ही अतुल(Atul) को जापान की एक एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई। कई सालों तक नौकरी करने केबाद अतुल ने फैसला किया कि वो जापान में ही एक आईटी कंपनी खोलेंगे जो जापानी कंपनियों को टक्कर देंगे।

खुद की कपंनी इंडो सकुरा की स्थापना की

इसी फैसले के साथ साल 2005 में उन्होंने अपनी कंपनी इंडो सकुरा की स्थापना की। अतुल(Atul) ने जो कंपनी खोली उस समय उनका कोई प्रतिद्वंदी नहीं था जिसकी वजह से उनकी कंपनी कुछ ही समय में चल निकली और सरपट दौड़ने लगी। महज एक साल के अंदर ही अतुल(Atul) ने साल 2006 में भारत में भी अपनी कंपनी खोलने का निर्णय किया।

लेकिन सबसे बड़ी समस्या थी कि यहां पर जापानी भाषा वाले इंजीनियर नहीं मिल रहे थे। अतुल(Atul) ने जापानी भाषा सिखाने के लिए एक प्रोग्राम शुरू किया। जिसके बाद उन्होंने अपनी कंपनी शुरू कर दी। आज अतुल(Atul) की कंपनी करीब 15 करोड़ के सालाना टर्नओवर तक पहुंच गई है।

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