जानें क्यों?, 4 हजार फीट ऊंचे पहाड़ पर विराजमान हैं गणपति बप्पा

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छत्तीसगढ़ के धुर नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में ढोलकल पहाड़ी पर मिली गणपति की विशाल प्रतिमा का यह रहस्य अब तक नहीं सुलझ पाया है। करीब चार हजार फीट की उंचाई पर उसे बनाया या स्थापित कैसे किया गया यह अब तक रहस्य बना हुआ है। क्षेत्र के लोग उन्हें अपना रक्षक मानकर उनकी पूजा करते हैं।

ढोलकल पहाड़ी दंतेवाड़ा शहर से करीब 22 किलो मीटर दूर है। कुछ ही साल पहले पुरातत्व विभाग ने प्रतिमा की खोज की। करीब तीन फीट उंची और ढाई फीट चौड़ी ग्रेनाइड पत्थर से बनी यह प्रतिमा कलात्मक है। स्थानीय भाषा में कल का मतलब पहाड़ होता है, इस लिए ढोलकल के दो मतलब निकाले जाते हैं। इसका एक मतलब तो यह है कि ढोलकल पहाड़ी की वह चोटी जहां गणपति प्रतिमा है, वह बिल्कुल बेलनाकार ढोल की तरह खड़ी है और दूसरा, वहां ढोल बजाने से दूर तक उसकी आवाज सुनाई देती है।

पहाड़ पर चढ़ना बहुत कठिन है

प्रतिमा के दर्शन के लिए उस पहाड़ पर चढ़ना बहुत कठिन है। विशेष मौकों पर ही लोग वहां पूजा-पाठ के लिए जाते हैं। गणपति की इस प्रतिमा में ऊपरी दाएं हाथ में फरसा और ऊपरी बाएं हाथ में टूटा हुआ एक दांत है, जबकि आर्शीवाद की मुद्रा में नीचले दाएं हाथ में वे माला धारण किए हुए हैं और बाएं हाथ में मोदक है।

आर्कियोलॉजिस्ट के मुताबिक पूरे बस्तर में ऐसी मूर्ति कहीं नहीं है। इसलिए यह रहस्य और भी गहरा हो जाता है कि ऐसी एक ही प्रतिमा यहां कहां से आई। पौराणिक कथाओं में हुए गणेश और परशुराम के बीच युद्ध को इस प्रतिमा से जोड़कर देखा जाता है।

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परशुराम ने अपने फरसे से गणेश का दांत काट दिया

कथा के मुताबिक एक बार परशुराम शिवजी से मिलने कैलाश पर्वत पर गए थे। उस वक्त शिवजी आराम कर रहे थे और गणेश जी पहरा दे रहे थे। गणेश जी ने परशुराम को रोका तो दोनों में युद्ध शुरू हो गया। गुस्से में परशुराम ने अपने फरसे से गणेश का दांत काट दिया।

गौरतलब है कि क्षेत्र में कैलाश गुफा नाम की एक जगह है, जिनका कनेक्शन शिव जी से जोड़ा जाता है। ढोलकल जाते समय रास्ते में फरसपाल नाम की जगह आती है, जिसे लोग परशुराम का गढ़ मानते हैं। बगल में कोतवाल पारा गांव है। कोलवाल मतलब रक्षक या पहरेदार। लोग यहां गणेश को अपने क्षेत्र का रक्षक मानते हैं।

दंतेश्वरी माई को रक्तदंतिका का ही रूप माना जाता है

इन सब कड़ियों को जोड़कर किवदंती प्रचलित है कि गणेश और परशुराम का युद्ध यहीं हुआ होगा। शिवजी की शक्ति रक्तदंतिका देवी हैं। दंतेवाड़ा की दंतेश्वरी माई को रक्तदंतिका का ही रूप माना जाता है। प्रतिमा के बारे रिसर्चर्स का कहना है कि करीब एक हजार साल पुरानी है। तब क्षेत्र में नागवशियों का शासन था। गणपति के पेट पर नाग का चित्र भी अंकित है। इस आधार पर माना जाता है कि उसकी स्थापना नागवंशी राजाओं ने कराई होगी। हांलाकि उंचाई पर ले जाने या वहां बनाने के लिए कौन सी तकनीक अपनाई ये अब भी रहस्य है।

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