‘जमुना’ की जिद जंगलों को बचाने की

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देश में पर्यावरण को बचाने के लिए कई तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं। सरकार हमारी वन सम्पदा को बचाने और पर्यावरण संरक्षण के लिए करोड़ो रुपए खर्च कर रही है। लेकिन उसके बाद भी देश के कुछ गुंडे-माफिया जो चंद पैसों के लालच में इस धरती से पेड़-पौधों को काट रहे हैं। देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या आए दिन गंभीर होती जा रही है, लेकिन इंसानों के पास इतना वक्त नहीं है कि वो इस समस्या के बारे में थोड़ा भी सोचें।

लेकिन इन सब के बावजूद देश में कुछ ऐसे लोग भी है जो प्रकृति से प्रेम करते हैं, और इसे बचाने के लिए खुद के दम पर प्रयासरत है। कुछ ऐसी ही शख्सियत हैं जमुना जो जंगलों को बचाने में लगी हुई हैं। जमुना के पास कोई सरकार की ताकत या प्रशासन का साथ नहीं है लेकिन वो फिर भी जंगलों को बचाने की मुहिम छेड़ रखी है। इस मुहिम के चलते उन्हें कई बार लकड़ी माफियाओं से भिड़ना भी पड़ता है, लेकिन वो हार नहीं मानती हैं।

जमुना जंगल माफियाओं से सिर्फ एक डंडे के ज़ोर पर भिड़ जाती हैं। ये औरतें बहुत बार आमने-सामने की लड़ाई में ‘जंगल माफिया’ से उलझीं है और लहू लुहान होकर वापस अपने गांव पहुंची हैं। फिर भी न इनके हौसले पस्त होते हैं, न ही वनों के प्रति इनकी श्रद्धा में कमी आती है। एक टीम सुबह से दोपहर तक जंगल की रखवाली करती है, तो दूसरी टीम दोपहर से रात तक और तीसरी रात से सुबह तक… जमुना और उनकी टीम अपनी जान पर खेल कर जंगल की रक्षा करती है और जंगल की अवैध कटाई पर अपने बल-बूते लगाम लगाई।

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जमुना ने वन विभाग को अपने गांव से जोड़ा और वन विभाग ने सारे गांव को हाथों-हाथ लिया। वन विभाग ने गांव में स्कूल खुलवाया और पक्की सड़कों का निर्माण करवाया। जमुना ने स्कूल व नलकूप के लिए अपनी ज़मीन भी दान में दे दी । 2013 में जमुना को ‘फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। दिल्ली की एक टीम उन पर डॉक्यूमेंट्री बना चुकी है।

2014 में उनको स्त्री शक्ति अवार्ड दिया गया। 2016 में उनको राष्ट्रपति द्वारा भारत की प्रथम 100 महिलाओं में चुना गया और राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया गया। जंगल को बचाने तथा बढ़ाने में जमुना ने जो योगदान दिया इससे उसे वनदेवी कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा। जमुना के इस रौद्र रूप से उसकी पहचान लेडी टार्जन के रूप में विख्यात हो गई।

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