पहली महिला फायर फाइटर हर्षिनी की कहानी

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कभी एक कवि ने महिलाओं को लेकर कुछ लाइनें लिखी थी, जो कुछ ऐसी थीं ‘अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी आंचल में है दूध और आंखो में पानी’ ये जहां तक मैं मानता हूं कि ये लाइनें न तब सही थीं और न अब क्योंकि जब इन लाइनों को लिखा गया होगा उस समय भी देश और दुनिया में महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं थीं।

भारत देश को आजादी दिलाने में महिलाओं ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। रानी लक्ष्मीबाई की वीरगाथा आज भी सब की जुबान पर है वो भी एक महिला ही थीं। इंदिरा गांधी जिन्होंने इतिहास में एक ऐसा पन्ना जोड़ दिया जो सुनहरे अक्षरों में आज भी अंकित है। फिर महिलाएं कहां से अबला हो गईं।

 फायर फाइटर हर्षिनी

आज तो हमारे देश में महिलाएं अपने हुनर और जज्बे से सफलता की बुलंदियां छू रही हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है भारत की पहली महिला फायर फाइटर हर्षिनी कान्हेकर की जिनकी क्षमता से प्रभावित होकर डिस्कवरी जैसे एक बड़े चैनल ने उनकी जिंदगी पर कार्यक्रम बना चुका है। हर्षिनी ने दिखा दिया कि महिलाओं को लिंगभेद के आधार पर आप काम का निर्धारण नहीं कर सकते हैं।

क्योंकि आज ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां महिलाओं ने अपनी कामयाबी के झंडे न फहराए हों। हर्षिनी के मन में बचपन से ही कुछ अलग करने का सपना पल रहा था। हर्षिनी कॉलेज के समय से ही एनसीसी से जुड़ गई थीं। जिसका प्रभाव उनके काम पर भी पड़ा। हर्षिनी के एक दोस्त ने मजाक करते हे कहा कि अगर तुम्हें अगर वर्दी इतनी पसंद है तो किसी फायर कॉलेज में दाखिला क्यों नहीं ले लेती।

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हर्षिनी को इस बात में कुछ सच्चाई लगी और लग गई एशिया के एकमात्र फायर कॉलेज में एडमिशन लेने की तैयारी में। आखिर हर्षिनी को कॉलेज में दाखिला मिल गया और वो फायर फाइटर की पढ़ाई और ट्रेनिंग में लग गईं।

मुंबई में हैं कार्यरत

इसके बाद हर्षिनी ने नौकरी के लिए अप्लाई किया औक उनका सेलेक्शन हो गया। दिल्ली और कोलकाता में प्रशिक्षण के दौरान दीवाली में आग से तमाम जिंदगियों को नई जिंदगी दी जिसके बाद उनके कार्य को सराहा गया। उसके आज हर्षिनी मुंबई में ओएनजीसी फायर सर्विस डिपार्टमेंट में डिप्टी मैनेजर के पद पर तैनात हैं।

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