शतरंज की दुनिया में लहराया परचम, 6 साल की उम्र में सीख लिया था खेल
जैसे क्रिकेट में सचिन को भगवान कहा जाता है, वैसे ही विश्वनाथन आनंद को यदि भारतीय शतरंज का बादशाह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। वह वर्ष 2000 में भारत के ही नहीं एशिया के प्रथम शतरंज विश्व-चैंपियन बने। यदि विश्व के प्रथम विजेता विल्हम स्टीन्ज से गणना करें जो 1886 में विजेता बने थे तो आनन्द 15वें विश्व-चैंपियन बने।
24 दिसम्बर, 2000 को उन्होंने तेहरान में हुई चैंपियनशिप में, रूस में जन्मे अपने स्पेनिश प्रतिद्वन्दी अलेक्सई शिरोव को छह खेलों के चौथे मुकाबले में हरा कर विश्व-चैंपियन का खिताब हासिल किया। ऐसी शानदार विजय सम्भवत: विश्व चैंपियनशिप के खेलों में दोबारा होनी मुश्किल है| इस मुकाबले में विजय प्राप्त करने पर आनंद को 6,60,000 डॉलर की राशि पुरस्कार स्वरूप प्राप्त हुई।
यूरोटेल टाइटल जीता
वर्ष 2002 में विश्वनाथन आनंद ने विश्व स्तर की चौथी सफलता प्राप्त कर एक बार फिर नया इतिहास रच डाला। फ्रांस में होने वाले कोर्सिका ओपन चेस टूर्नामेंट के पहले खेल में हारने के बाद आनंद ने अन्तिम छठे खेल में रूस के अनोतोली कारपोस को हरा कर विजय प्राप्त की। वर्ष 2002 में ही आनंद ने मई में प्राग में यूरोटेल टाइटल जीता, जुलाई में ‘चेस क्लासिक’ का मैन्ज टाइटल जीता। फिर अक्टूबर में हैदराबाद में होने वाले विश्व कप शतरंज में पुन: अपनी प्रभुता साबित की और फिर विश्व कप विजेता साबित हुए। उन्हें पुरस्कार स्वरूप 46,000 डालर की राशि प्राप्त हुई ।
लिनारेस मोरेलिया शतरंज खिताब जीता
वर्ष 2000 में आनंद ने विश्व चैंपियन बनने का सपना तो पूरा कर लिया था, लेकिन फिडे रेटिंग में पहले नम्बर तक पहुंचने में 23 वर्ष लग गए। 1984 में अपना कैरियर शुरू करने वाले आनंद की रिकॉर्ड-बुक 2007 में पूरी हो सकी। मार्च 2007 में विश्वनाथन आनंद ने लिनारेस मोरेलिया शतरंज खिताब जीतकर फिडे रेटिंग में पहला स्थान प्राप्त कर यह गद्दी हासिल कर ली। मोरेलिया लिनारेस का खिताब जीतने पर आनंद के फिडे ईएलओ अंकों की संख्या बढ़कर 2816 पर पहुंच गई और आनंद दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी बन गए।
परिवार में सबसे छोटे
आनंद अपने तीन बहन-भाइयों के बीच सबसे छोटे हैं। उनका बड़ा भाई व बहन शतरंज नहीं खेलते। विश्वनाथन आनंद को प्यार से विशी नाम से जाना जाता है, उन्हें टाइगर ऑफ मद्रास भी कहा जाता है।
मां सुशीला से शतरंज सीखा।
जब आनंद के पिता फिलीपीन्स में रेलवे की प्रतिनियुक्ति पर थे तब वहां शतरंज बहुत लोकप्रिय खेल था।उन्होंने मात्र 6 वर्ष की आयु में अपनी मां सुशीला से शतरंज सीखा। आनंद के पिता दक्षिण रेलवे में कार्यरत थे।
क्या कहती है मां
आनंद के बारे में उनकी मां सुशीला का कहना है- ‘जब मैंने आनन्द को शतरंज सिखाया तब वह मात्र 6 वर्ष का था, और मुझे इस बात का बिकुल अंदाजा नहीं था कि एक दिन वह शतरंज का विश्व-चैंपियन बन जाएगा । वैसे वह अन्य बच्चों से भिन्न नहीं था और बिल्कुल सामान्य बच्चा था। उसे शतरंज में दिलचस्पी थी, इस कारण मैंने उसे खेलना सिखाया।’
देती हैं सुझाव
हालांकि आज आनंद विश्व चैंपियन बन कर सारे संसार में भारत का नाम रोशन कर रहा है, परन्तु आज भी उसकी मां खेल में बहुत रुचि लेते हुए आनन्द को कुछ चालें चलने का सुझाव देती रहती हैं।
इसे एक विडम्बना ही कहा जाएगा कि शतरंज जैसे बौद्धिक और असीम सम्भावनाओं वाले खेल की जन्म स्थली भारत है और यहीं से चलकर यह फारस, फिर अरब देशों में होते हुए यूरोप पहुंचा, उसके बाद यह सारे विश्व में पहुंच गया। बुद्धि-कौशल वाले इस खेल को पश्चिमी देशों के सिद्धान्त के अनुसार ढाला गया। पश्चिमी शैली के आधुनिक शतरंज का विकास भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ही हुआ।
13 वर्ष की आयु में तमिलनाडु जूनियर शतरंज का खिताब जीता
आनंद ने शतरंज के खेल में बचपन में ही महारत हासिल कर ली और 13 वर्ष की अल्पायु में ही उनकी सफलता का सिलसिला चालू हो गया। 13 वर्ष की आयु में उन्होंने 1982 में तमिलनाडु जूनियर शतरंज का खिताब जीता। 15 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय जूनियर का खिताब जीता और उसी वर्ष फ्रांस में विश्व सब जूनियर शतरंज प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता।
‘इन्टरनेशल मास्टर’
1985 में दूसरी बार एशियाई जूनियर शतरंज प्रतियोगिता जीतने के साथ ही उन्हें ‘इन्टरनेशल मास्टर’ का गौरवपूर्ण खिताब भी प्राप्त हुआ। 1986,1987,1988 में आनंद लगातार राष्ट्रीय चैंपियन बने। इन सफलताओं के पश्चात् भारत सरकार ने उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया।
1988 में ग्रैंडमास्टर
1987 में आनंद ने फिलीपीन्स में विश्व जूनियर शतरंज चैंपियनशिप जीती और नया इतिहास रच डाला। वह भारत के ही नहीं एशिया के प्रथम विजेता बने। इन्हीं सफलताओं के साथ उन्हें 1988 में ग्रैंडमास्टर की उपाधि प्रदान की गई और इसे पाने वाले भी वह प्रथम भारतीय बने।
इटली की श्रेणी 18 प्रतियोगिता
1990 में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आनंद को पहली बड़ी सफलता इटली की श्रेणी 18 प्रतियोगिता में मिली। इस प्रतियोगिता में आनंद ने विश्व के दिग्गज खिलाड़ी अनातोली कारपोव और गैरी कास्परोव को नाकों चने चबवा दिए। विश्व के 159 देशों में खेले जाने वाले इस खेल में अभी तक रूसी खिलाड़ियों का ही बोलबाला रहा है। 114 वर्ष के विश्व शतरंज के इतिहास में कुछ वर्ष के लिए अमरीका के बाबी फिशर ने अपनी धाक जमाई थी और उसके पश्चात् रूस से बाहर के विश्वनाथन आनन्द ने अपनी धाक जमाई है।
इलो रेटिंग 2700 अंक के पार
1993 में आनंद की इलो रेटिंग 2700 अंक पार कर गई, यह एक करिश्माई गौरवपूर्ण उपलब्धि थी। यह रेटिंग 1997 में बढ्कर 2765 हो गई और विश्वनाथन आनंद दूसरे नम्बर के खिलाड़ी बन गए।
रूस के बाहर के दूसरे खिलाड़ी
1997 का वर्ष आनंद के लिए स्वर्णिम सफलताओं का वर्ष साबित हुआ। इस वर्ष में उन्होंने अनेक प्रतियोगिताएं जीतीं और एक प्रदर्शनी मुकाबले में कम्प्यूटरों को 4-2 से पराजित किया। हॉलैंड में अन्तर्राष्ट्रीय शतरंज संघ द्वारा आयोजित विश्व नाक आउट प्रतियोगिता में उन्होंने भाग लिया और अविजित रहे। लेकिन फिडे के निर्णय के कारण 3-3 से बराबर रहने पर टाई ब्रेकर में वह कारपोव से हारे हुए घोषित किए गए। 1997 व 1998 में उन्होंने शतरंज के ऑस्कर के लिए कास्परोव को पीछे छोड़ दिया।वह इस पुरस्कार को जीतने वाले रूस के बाहर के दूसरे खिलाड़ी हैं। इससे पूर्व बॉबी फिशर ने 1970,1971, 1972 में यह कामयाबी हासिल की थी। 1994 और 1997 में उन्होंने मैलोडी एम्बर प्रतियोगिताएं जीती।
2000 के अन्त में विश्व चैंपियन
इन सभी सफलताओं के अतिरिक्त उन्होंने वर्ष 2000 के अन्त में विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। फिडे नियमों के अनुसार जिस खिलाड़ी की 2600 रेटिंग हो वह सुपर ग्रैंडमास्टर बन सकता है, जिस खिलाड़ी के 2500 अंक हों वह ग्रैंडमास्टर, जिसके 2400 अंक हों वह इन्टरनेशनल मास्टर बन सकता है। इस नियम के अनुसार 2800 रेटिंग वाला खिलाड़ी सुपर ग्रैंडमास्टर कहलाएगा। इसके पहले दो खिलाड़ी गैरी कास्परोव (2838) व ब्लादिमीर क्राम्निक (2803) इस रेटिंग तक पहुंच सके हैं|
प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं
अपनी तमाम सफलताओं के कारण ही आनंद हमारे आने वाले भारतीय खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं। आनंद अभी युवा हैं और आने वाले लम्बे समय तक अपनी सफलताओं को जारी रख सकते हैं। आनंद के खेल में असीम सम्भावनाएं छिपी हैं । आनंद की उन्नति भारतीय उपमहाद्वीप में शतरंज के उत्थान व नए खिलाड़ियों के लिए भी आदर्श साबित होंगी ।
पत्नी रहती हैं हमेशा साथ
आनंद वाणिज्य विषय में स्नातक हैं। उन्हें खाली समय में संगीत सुनना व तैराकी पसन्द है। वह भविष्य में इस खेल के माध्यम से भारत के लिए पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक भी जीतना चाहते हैं। उनकी पत्नी अरुणा उनकी हर सुख-सुविधा का ध्यान रखती है। उनकी यात्रा के पूर्व उनकी सभी तैयारी करती है। आनंद की पत्नी अरुणा प्रतियोगिताओं व विदेश यात्राओं के दौरान सदैव उनके साथ रहती हैं। उन्होंने एक बार आनंद के बारे में कहा था-”मुझे कभी नहीं लगा कि मैं किसी चैंपियन से शादी कर रही हूं। उनका सरल स्वभाव ही उनकी पहचान है।” आनंद मानते हैं कि वह अपनी मां की प्रेरणा से ही शतरंज के शिखर तक पहुंच सके हैं। वास्तव में आनंद के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत भले इंसान हैं। उनमें किलर इस्टिंक्ट की भी कमी है, परन्तु उन्हें हारना कभी पसंद नहीं रहा। शायद यही कारण है कि वह शतरंज के नंबर एक खिलाड़ी बन सके।
तीसरा शतरंज ऑस्कर जीता
2004 में विश्व के नम्बर दो खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद ने अपना तीसरा शतरंज ऑस्कर जीत लिया। यह शतरंज का सर्वाधिक प्रतिष्ठित वार्षिक पुरस्कार है। आनंद को यह पुरस्कार 50 से अधिक देशों के शतरंज लेखकों, आलोचकों और पत्रकारों के बीच रायशुमारी के बाद घोषित किया गया। आनंद को सर्वाधिक 4150 अंक मिले और वह अपने निकटतम प्रतिद्वन्द्वी पीटर स्विडलर से काफी आगे रहे जिन्हें 2575 अंक मिले। विश्व के नंबर एक खिलाड़ी गैरी कास्परोव 2262 अंक पाकर चौथे स्थान पर रह गए।
भारतीय बौद्धिक क्षमता का लोहा मनवाया
विश्वनाथन आनंद ने विश्व चैंपियनशिप जीत कर सारी दुनिया को भारतीय बौद्धिक क्षमता का लोहा मनवा दिया है। उनके सुखद भविष्य और नई सफलताओं की हम कामना करते हैं और उनके जन्मदिन पर उन्हें बधाई देते हैं।