वाराणसी में हार्ट अटैक के मरीजों के लिए थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया वरदान साबित हो रही है. जनपद के राजकीय चिकित्सालयों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (सीएचसी) पर संचालित हृदयाघात देखभाल परियोजना (स्टेमी केयर प्रोजेक्ट) के तहत यह सुविधा प्रदान की जा रही है. इसमें इलैक्ट्रो कार्डियोग्राफी (ईसीजी) संग थ्रंबोलिसिस प्रकिया अपनाकर अब तक 100 रोगियों की जान बचाई जा चुकी है. इन क्रियाशील हार्ट सेंटरों पर विंडो अवधि (सीने में लगातार दर्द होने पर 12 घंटे के अंदर ) में आए हृदयाघात के शत प्रतिशत रोगियों की जान बचाई गयी है. उक्त जनकारी जानकारी वाराणसी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ संदीप चौधरी ने दी है.
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यहां मौजूद है यह सुविधा
उन्होंने बताया कि जिले में तीन राजकीय चिकित्सालय क्रमशः डीडीयू चिकित्सालय पाण्डेयपुर, एसएसपीजी मंडलीय चिकित्सालय कबीरचौरा, एसवीएम राजकीय चिकित्सालय भेलूपुर समेत जिले के 11 सीएचसी (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) में क्रियाशील हार्ट सेंटर पर ईसीजी व थ्रंबोलिसिस की सुविधा उपलब्ध है.
शिमला के बाद वाराणसी दूसरा केंद्र
सीएमओ ने बताया कि शिमला के बाद उत्तर भारत में वाराणसी दूसरा केंद्र है जो रिपरफ्यूजन थेरेपी राजकीय क्षेत्र में प्रदान कर रहा है. आईसीएमआर की हृदयाघात परियोजना (स्टेमी केयर प्रोजेक्ट) को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रो धर्मेंद्र जैन व रिसर्च साइंटिस्ट डॉ पायल सिंह के सहयोग से संचालित किया जा रहा है. परियोजना के तहत बीएचयू ‘हब’ एवं जनपद के सभी राजकीय चिकित्सालय एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ‘स्पोक’ के रूप में कार्य कर रहे हैं.
यहां इतने मरीजों की बचाई गई जान
अब तक सीएचसी शिवपुर में एक, सीएचसी चोलापुर में पांच, एसवीएम भेलूपुर में सात, शिवप्रसाद गुप्त मंडलीय अस्पताल कबीरचौरा में 36, पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय चिकित्सालय में 47 तथा लाल बहादुर शास्त्री राजकीय चिकित्सालय में चार हृदय रोगियों को थ्रंबोलाइज कर जान बचाई गई है.
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विशेष प्रकार का इंजेक्शन देकर रोगियों को किया जाता है स्थिर
एसवीएम राजकीय चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ. क्षितिज तिवारी ने बताया कि अब तक 24743 रोगियों का ईसीजी किया गया है. ईसीजी के माध्यम से हृदयाघात के मरीजों की जांच की जाती है. व्यक्ति को सीने में अचानक से तेज दर्द होने पर यदि वह एक घंटे के अंदर गोल्डन आवर में चिकित्सालय पहुंच जाता है तो उसे थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया के अंतर्गत एक विशेष प्रकार के इंजेक्शन देकर उसे स्थिर किया जा सकता है. वहीं व्यक्ति को सीने में लगातार दर्द हो रहा हो तथा वह चार से छह घंटे में अस्पताल पहुंच जाता है तो उस विंडो पीरियड में थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया पूर्ण कर मरीज की जान बचाई जा सकती है. यदि रोगी के सीने में लगातार दर्द हो रहा है तो ऐसी स्थिति में भी मरीज 12 घंटे के अंदर चिकित्सालय पहुंच जाता है तो उस पीरियड में भी थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया के अंतर्गत एक विशेष प्रकार का इंजेक्शन देकर उसे स्थिर किया जा सकता है.
क्या है थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया
डॉ. क्षितिज ने बताया कि थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया के अंतर्गत लगाए जाने वाला इंजेक्शन, मरीज के नसों में रक्त के अवरुद्ध प्रवाह को दूर करने की प्रक्रिया को पूरा करता है. इससे मरीज स्थिर हो जाता है और उसकी जान बच जाती है. हार्ट अटैक आने या मरीज में हृदयाघात की समस्या दिखाई देने पर उसे थ्रंबोलिसिस थेरेपी दी जाती है, इससे मरीज ठीक हो जाता है.