‘तो ये थी खबरें आज तक, इंतजार कीजिए कल तक’

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सुरेन्द्र प्रताप सिंह (एसपी सिंह) पत्रकारिता के एक ऐसे महानायक थे जिनके द्वारा बोला गया एक वाक्य ‘तो ये थी खबरें आज तक, इंतजार कीजिए कल तक’ आज भी लोगों के जहन में जस का तस बना हुआ है। एसपी सिंह पत्रकारिता के एक ऐसे सुपर स्टार थे जिन्होंने एक पूरी पीढ़ी का निर्माण किया। दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम ‘आज तक’ के संपादक रहते हुए एसपी सिंह सरकारी सेंसरशिप के बावजूद जितना यथार्थ बताते रहे, उतना कभी किसी संपादक ने टीवी के परदे पर नहीं बताया।

हिंदी पत्रकारिता को दी नई ऊंचाई

एसपी सिंह ने हिंदी पत्रकारिता को एक नई ऊंचाई दी। एक एसपी सिंह के चलते जितनी नई प्रतिभाएं हिंदी पत्रकारिता में आईं, उसका दावा कोई अन्य पत्रकार नहीं कर सकता। हिंदी पत्रकारिता को धारदार तो उन्होंने बनाया ही हिंदी पत्रकारों को उनकी कुंठा से भी मुक्ति दिलाई।

1970 के बाद हिंदी पत्रकारिता ने एक नया मोड़ लिया था। यह न केवल आकार में व्यापक हो रही थी, बल्कि अपनी प्रवृत्तियों में भी प्रयोगधर्मी बन रही थी। जद्दोजहद के लिए तैयार हिंदी पत्रकारों की एक ऐसी पीढ़ी आई, जिसने इसे पेशे के रूप में अपनाया और पेशेवर गुणवत्ता भी हासिल की। इस पीढ़ी को तैयार करने में एसपी की बड़ी भूमिका है और इसके लिए वे याद किए जाते रहेंगे।

प्रिंट मीडिया में अहम योगदान

एसपी सिंह ‘रविवार’ पत्रिका की शुरुआत से लेकर धर्मयुग, नवभारत टाइम्स, इंडिया टुडे और बीबीसी से वे जुड़े रहे। 1991 के उत्तरार्ध में एसपी ने ‘नवभारत टाइम्स’ छोड़ने के बाद 1992 में ‘इंडिया टुडे’ में एक कॉलम ‘मतांतर’ नाम से शुरू किया।

आज तक को दी पहचान

इसके बाद एसपी ने दूसरी पारी ‘आज तक’ के साथ खेली। यह बताने की जरूरत नहीं कि भारतीय टेलीविजन पत्रकारिता से ‘आज तक’ की भाषा को अलग नहीं देखा जा सकता।

SP-Singh

ठेठ देसी अंदाज में खबरिया-दृष्यों को पकड़ने, सूंघने और व्यक्त करने की कला एसपी ने ‘आज तक’ को दी। एसपी सिंह ने ‘आज तक’ से पहले कभी टेलीविजन के साथ काम नहीं किया था।

सामाजिक खाई को पाटने का किया काम

ज्वालामुखी में विस्फोट उस वक्त हुआ जब 1990 में वी.पी. सिंह सरकार ने सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने संबंधी मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करना स्वीकार लिया। आरक्षण के पक्ष में बोलने वाले लोहिया-कर्पूरी की राजनीतिक परंपरा के राजनेता तो थे, लेकिन लेखक-पत्रकार न के बराबर थे।

ऐसे में दलित-पिछड़े वर्गों की हिस्सेदारी के समर्थन में एसपी ने मोर्चा संभाला। उन्होंने अपनी कलम चलानी शुरू की। फिर कुछ और लोगों की हिम्मत हुई। उन्होंने आरक्षण विरोधियों के कुतर्कों का तार्किक जवाब दिया। इस तरह एक सोच, एक वातावरण विकसित हुआ।

पत्रकारिता में आने का उद्देश्य  

एक इंटरव्यू में एसपी ने बताया था कि पत्रकारिता में वे किसी महान उद्देश्य को लेकर नहीं आए थे। लेकिन इस क्षेत्र में आने के बाद धीरे-धीरे उद्देश्य उनके सामने स्पष्ट होने लगे। पत्रकारिता का जीवन दर्शन खुलने लगा। उनके नजर में एक सफल पत्रकार वह है जो देश, समाज और समाज में अंतिम व्यक्ति के हित में इस काम को करता है। आज अगर एसपी सिंह ज्यादा प्रासंगिक लगते हैं तो इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि पत्रकार के रूप में जिन मूल्यों का उन्होंने वरण किया और उसे संजोए रखा, वे मूल्य अब तिरोहित होने लगे हैं। संक्षेप में कहा जाए तो एसपी सिंह ने अपने नए तेवरों और नई समझदारी से पत्रकारिता में एक जबरदस्त अंतर पैदा किया।

(सौजन्य- राज्यसभा टीवी व यू-ट्यूब)

कम उम्र में छोड़ गए दुनिया

एसपी का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के पातेपुर गांव में सन् 1948 में जन्मे एसपी सिंह जीवन के 50 साल पूरे करने से पहले ही आकस्मिक बीमारी की वजह से 27 जून 1997 को उनका निधन हो गया।

 

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