Dastan-e-Uttar Pradesh: निर्वाण स्थल पर कैसे हुआ बौद्ध धर्म का पतन ?

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Dastan-e-Uttar Pradesh: 4000 हजार सालों की अच्छी, बुरी यादें समेटे मैं हूं उत्तर प्रदेश …किसी ने खंगाला तो किसी ने पन्नों में दबा दिया लेकिन जो मेरे अंदर रचा बसा है वो मैं आज कहने जा रहा हूं और शायद यह सही समय है अपने इतिहास के पन्नों को एक बार फिर से पलटने का. क्योंकि जिस काल से मेरा अस्तित्व बना एक बार मैं फिर उसी कालक्रम का साक्षी बन पाया हूं. यह सब शायद आपको समझ न आ रहा हो क्यों कभी किसी ने इस इतिहास के पन्नों को पलटा ही नहीं …लेकिन आज मैं अपने अस्तित्व के तीसरे पन्ने के साथ आपको सुनाने जा रहा हूं अपने अस्तित्व में आने के पश्चात विकसित और विस्तार होते युग यानी बौद्ध हिंदू काल की कथा…..

उत्तर प्रदेश की बाल्या अवस्था कहा गया बौद्ध हिंदू काल

उत्तर प्रदेश की भ्रूण अवस्था कहा जाने वाला मध्य वैदिक काल के समापन के साथ ही शुरूआत होती है. उत्तर प्रदेश बाल्या अवस्था की जिसे बौद्ध हिंदू काल के नाम दिया गया. यह काल सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व के अंत से पहले का है, जब यहां पर उत्तरी भारत के राज्य अपना वर्चस्व दिखाने के लिए प्रतिस्पर्धाएं कर रहे थे. उनमें से सात राज्य उत्तर प्रदेश की सीमा के अंदर आते थे. इसके साथ ही पांचवी और छठी शताब्दी ईसवी तक के यह इलाके ज्यादातर सीमाओं के बाहर केंद्रीय शक्तियों को नियंत्रण करने में लगे हुए थे. पहले वर्तमान बिहार मगध और वर्तमान मध्य प्रदेश उज्जैन में था.

इन राज्यों में शासन करने वाले राजा चंद्रगुप्त (शासनकाल लगभग 321-297 ईसा पूर्व) और अशोक (शासनकाल लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व) दोनों मौर्य सम्राट, इस क्षेत्र पर शासन करते थे. समुद्रगुप्त (चौथी शताब्दी ईसा पूर्व) और चंद्रगुप्त द्वितीय (शासनकाल लगभग 380-415) भी महान राजा थे. राज्य की वर्तमान सीमा हर्ष (लगभग 606-647) के शासनकाल में थी. वह पूरे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थान के साथ-साथ कान्यकुब्ज (अब कन्नौज) के कई सारे हिस्सों का नियंत्रण किया करते थे.

उत्तर प्रदेश के व्यवस्थित इतिहास का आरंभ

सातवीं शताब्दी ई.पू. के अंत से भारत और उत्तर प्रदेश का व्यवस्थित इतिहास आरम्भ होता है, जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद श्रेष्ठता की दौड़ में शामिल थे. इनमें से सात वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत थे. बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी (बनारस) के निकट सारनाथ में दिया और एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो न केवल भारत में बल्कि चीन व जापान जैसे सुदूर देशों तक भी फैला.

कहा जाता है कि बुद्ध को कुशीनगर में निर्वाण (शरीर से मुक्त होने पर आत्मा की मुक्ति) की प्राप्ति हुई थी, जो पूर्वी ज़िले कुशीनगर में स्थित है. पांचवीं शताब्दी ई. पू. से छठी शताब्दी ई. तक उत्तर प्रदेश अपनी वर्तमान सीमा से बाहर केन्द्रित शक्तियों के नियंत्रण में रहा. पहले मगध जो वर्तमान बिहार राज्य में स्थित था और बाद में उज्जैन, जो वर्तमान मध्य प्रदेश में स्थित है. इस राज्य पर शासन कर चुके इस काल के महान शासकों में चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद और उसके बाद उनके पुत्र चक्रवर्ती सम्राट धनानंद नाई समाज से थे.

इस वजह से इस काल को कहा गया बौद्धकाल

छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक प्राचीन वैदिक धर्म काफी विकसित हो चुका था. उधर ब्राह्मणवाद ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी तक शास्त्रीय हिंदू धर्म में विकसित हो गया था. इसके साथ ही सातवीं शताब्दी ई.पू. के अंत से पहले भारत और उत्तर प्रदेश का संगठित इतिहास शुरू होता है. 16 महाजनपदों की श्रेष्ठता की दौड़ में से सात आज के उत्तर प्रदेश की सीमा में हैं.

वहीं बुद्ध ने वाराणसी (बनारस) के निकट सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया और एक धर्म की नींव रखी थी. यह धर्म बौद्ध धर्म के नाम से जाना गया. बौद्ध धर्म भारत ही नहीं बल्कि जापान और चीन जैसे देशों में भी तेजी से फैलने लगा. पूर्वी ज़िले में स्थित कुशीनगर में कहा जाता है कि बुद्ध को निर्वाण (शरीर से आत्मा की मुक्ति) मिली थी. इसलिए उत्तर प्रदेश के इतिहास के विभाजन में इस ऐतिहासिक घटना के वजह से इस काल को बौद्ध काल कहा गया.

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ऐसे हुआ उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म का पतन

इस काल के दौरान बौद्ध धर्म का उत्कर्ष शुरू हो गया था. अशोक शासन के दौरान बौद्ध कला के स्थापत्य व वास्तुशिल्प प्रतीक चरम पर पहुंच रहा था. हिन्दू कला भी गुप्त काल (लगभग 320-550) में सबसे अधिक विकसित हुई. इसके पश्चात हिन्दूवाद का पुनरुत्थान और बौद्ध धर्म का धीरे-धीरे पतन लगभग 647 ई. में हो गया था.

दक्षिण भारत में जन्मे आदि शंकराचार्य थे जो वाराणसी पहुंचे. उन्होंने उत्तर प्रदेश के मैदानों की यात्रा की और बद्रीनाथ हिमालय में प्रसिद्ध मंदिर की स्थापना की . वह इस पुनरुत्थान के प्रमुख रचयिता माने जाते हैं. हिंदू लोग इसे चौथा और अंतिम मठ (हिंदू संस्कृति का केंद्र) मानते हैं. यहां एक धार्मिक स्थान है, जो मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले से पूर्व में 28 किलोमीटर शुकरताल में है. इसको लेकर मान्यता है कि यहां स्थित वट वृक्ष लगभग 5000 साल पुराना है और इसके नीचे बैठकर सूत जी कथा सुनाया करते थे.

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