ये हैं देश के दूसरे ‘दशरथ मांझी’ 27 साल में खोद डाला तालाब

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जोश और जुनून से किसी भी काम को अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है। ‘कौन कहता है कि आसमान में सुराख हो नहीं सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो’ कुछ इसी कहावत को साकार कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के श्यामलाल। श्यामलाल ने महज 15 साल की उम्र में एक ऐसे काम को अंजाम तक पहुंचाने की ठान ली जिस रास्ते को तय करना मेहनत और जज्बे के बिना मुमकिन नहीं था।

खेलने कूदने के समय में लिया इतना बड़ा फैसला

एक ऐसी उम्र जब बच्चों की आंखों में खेलने और कूदने के सपने हिलोंरे भर रहे होते हैं उस उम्र की दहलीज पर श्यामलाल ने गांव के लोगों को पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए गांव में एक तालाब खोदने का निश्चय किया। जब श्यामलाल की ये बातें गांव में फैलीं तो गांव के लोगों ने श्यामलाल का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। लेकिन जो लोग मजाक उड़ा रहे थे उन्हें शायद श्यामलाल के हौसले और जज्बे का अंदाजा नहीं था। उन्हें नहीं पता था कि एक दिन श्यामलाल उनके इस मजाक को खुद की तारीफ करने के लिए मजबूर कर देंगे।

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27 साल के बाद मुकाम पर पहुंचे श्यामलाल

27 साल की कड़ी मेहनत और लगन ने उन्हें मंजिल तक आखिर पहुंचा ही दिया। श्यामलाल की कहानी बिहार के माउंटेन मैन के नाम से विख्यात दशरथ मांझी की तरह है। श्यामलाल बताते हैं कि तालाब की इस खुदाई में आज तक किसी ने उनकी मदद नहीं की। प्रशासन से तो कोई उम्मीद ही नहीं थी लेकिन गांव वालों ने भी कभी मदद के लिए हाथ नहीं बढ़ाए।

पूरा गांव हो गया इनका मुरीद

जो गांव वाले कभी इसी श्यामलाल का मजाक उड़ा रहे थे वही आज श्यामलाल को अपना आदर्श मानने लगे हैं। श्यामलाल के इस मेहनत और लगन को देखकर महेंद्रगढ़ के विधायक ने श्यामलाल को 10 हजार रुपए का इनाम दिया। ये 10 हजार का इनाम उनके लिए कोई मायने नहीं रखता है क्योंकि जो इंसान बिना किसी स्वार्थ के गांव वालों के लिए अपनी जिंदगी के 27 साल लगा दिए उसके लिए भला 10 हजार की क्या अहमियत होगी?

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