दिव्यांग होने के बाद भी नहीं छोड़ी उम्मीद, आज हैं करोड़ों की कंपनी के मालिक

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हमेशा याद रखिए कि सफलता के लिए किया गया आपका अपना संकल्प किसी भी और संकल्प से ज्यादा महत्त्व रखता है’ अब्राहम लिंकन द्वारा कहा गया ये वाक्य न जाने कितने लोगों की सफलता का पर्याय बने होंगे। कहते हैं मेहनत, हौसला, और लगन हो तो इंसान कुछ भी हसिल कर सकता है। मेहनत से इंसान अपनी हाथ की रेखाओं को भी बदल सकता है। इसका जीता जागता उदाहरण हैं श्रीकांत बोला, श्रीकांत बोला को आज किसी पहचान की जरूरत नहीं है।

कंज्यूमर फूड पैकेजिंग कंपनी बौलेंट इंडस्ट्रीज के CEO हैं श्रीकांत

श्रीकांत बोला कंज्यूमर फूड पैकेजिंग कंपनी बौलेंट इंडस्ट्रीज के CEO हैं। इस कंपनी में उन्हें तनख्वाह के तौर पर 50 लाख का पैकेज मिल रहा है। श्रीकांत को ये कामयाबी ऐसे नहीं मिली है, इसके लिए श्राकांत ने कठिनाइयों का वो दौर देखा है जब लोग उन्हें गिरी हुई निगाह से देखते थे, पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। घर में खाने के लिए अन्न नहीं होता था और परिवार को भूखो रहना पड़ता।

बचपन से नहीं हैं आंखें

आपको जानकर हैरानी होगी कि श्रीकांत जब पैदा हुए थे तो उनके रिश्तेदार उन्हं मार देने की सलाह उनके परिवार वालों को दे रहे थे। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए श्रीकांत ने जो कठिन परिश्रम किया वो शायद आप और हम नहीं जानते होंगे।आपको ये जानकार हैरानी होगी कि जब श्रीकांत का जन्म हुआ, तो उनके कुछ रिश्तेदारों ने उनके माता-पिता को उन्हें मार देने को कहा था क्योंकि श्रीकांत को जन्म से ही दिखाई नहीं देता था।

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बहुत गरीब परिवार में हुआ था जन्म

श्रीकांत ने ऐसे परिवार में जन्म लिया था जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बावजूद श्रीकांत ने 10वीं में 90 फीसदी मार्क्स हासिल किए। वो दसवीं के बाद साइंस पढ़ना चाहते थे लेकिन उनके ब्लाइंड होने के कारण, उन्हें इसकी इजाजत नहीं मिली। 6 महीने के संघर्ष के बाद आखिरकार उन्हें साइंस सब्जेक्ट्स से पढ़ने की इजाजत मिली लेकिन फिर उन्‍हें 2009 में IIT दाखिले में भी रिजेक्ट होना पड़ा।

विदेश में मिला पढ़ने का मौका

इसके बाद उन्होंने विदेश जाकर पढ़ाई करने का फैसला लिया। उन्हें Massachusetts Institute of Technology (MIT), BOSTON, USA में एडमिशन मिल गया। आज के समय में श्रीकांत उन लोगों के लिए मिसाल हैं जो किसी विकृति का शिकार हैं और समाज में उन्हें वो दर्जा नहीं मिलता है जिसके हकदार हैं। श्रीकांत ने सभी मुश्किलों से लड़ते हुए खुद को इस समाज में स्थापिक किया है।

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