इस वैज्ञानिक के बारे में जानकर हो जाएंगे हैरान, इंसानों को अमर बनाने पर कर रहे रिसर्च
इंसान की सोचने और समझने की शक्ति कहां तक जा सकती है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि न्यूटन ने सिर्फ इस बात से प्रेरणा लेकर गति के नियमों का सिंद्धांत बता डाला कि अगर सेब पेड़ से गिरता है तो कोई न कोई शक्ति जरूर इसे अपनी तरफ खींचती है। उसी तरह आज हमारे बीच मौजूद एक ऐसे साइंटिस्ट है जो इस बात पर विश्वास करते हैं कि मानव को अमर बनाया जा सकता है। और वो इस काम को लेकर रिसर्च करनें में जुटे हुए हैं। जी हां सुनने में थोड़ा अजीब जरुर लग रहा होगा लेकिन हकीकत यही है। अमेरिकन साइंटिस्ट रे कुर्जवील को दुनिया के बड़े से बड़े वैज्ञानिक बहुत ही ध्यान से सुनते हैं।
रे कुर्जवील ने आने वाले समय के बारें में ऐसी बहुत सी भविष्यवाणियां की हैं जिनपर विश्वास करना तो मुश्किल है लेकिन अनसुना नहीं किया जा सकता है। क्योंकि वर्ल्ड वाइड वेब, यानी इंटरनेट के आगमन और उसके महत्व के बारे में की गई उनकी भविष्यवाणी सच हो चुकी है। बता दें कि रे कुर्जवील इंसान और मशीनों के मेल पर काम कर रहे हैं। इस मामले में भी उनकी रिचर्स जारी है कि इंसान की उम्र कैसे बढ़ाई जा सकती है। इसके लिए वे खुद रोज 150 तरह की गोली-दवाइयां खाते हैं।
रेमंड रे कुर्जवील को रिसर्च को लेकर ढेरों प्राइज अबतक मिल चुके हैं। कुर्जवील का जन्म 12 फरवरी, 1948 को अमेरिका की न्यूयॉर्क सिटी में एक यहूदी परिवार में हुआ था। उनकी भविष्यवाणी है कि 2045 तक हम ट्रांसह्यूमन बन जाएंगे। हमारे शरीर में ढेरों मशीनें फिट होंगी, जिनके जरिए हम कोई भी इन्फॉरमेशन सीधे दिमाग में डाउनलोड कर लेंगे।
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यानी इंसान ही कंप्यूटर बन जाएगा। इसके अलावा शरीर के अन्य अंग भी मशीनों से बदले जा सकेंगे। इस तरह इंसान हमेशा के लिए जीवित रह सकेगा। 35 वर्ष की उम्र में कुर्जवील को अपने ग्लूकोज इनटॉलरेंस के बारे में पता चला। यह टाइप टू डायबिटीज का पहला फेज होता है। उस समय वे डॉ. टेरी ग्रॉसमैन के संपर्क में आए।
डॉक्टर ने उन्हें इलाज की अलग तरह की तकनीकों के बारे में बताया। इसके बाद कुर्जवील रोजाना 250 सप्लीमेंट्स लेने लगे। इसके अलावा उनके डेली रुटीन में 8-10 गिलास एल्कलाइन वाटर और 10 कप ग्रीन टी भी शामिल थी। इसके साथ ही वे हफ्तेभर में 8-10 गिलास रेड वाइन भी पीने लगे। कुछ अरसा पहले उन्होंने रोजाना लेने वाली गोलियों की संख्या कम करके 150 कर दी है।
उन्होंने अपनी किताब ‘सिंगुलरिटी इज नियर’ में दावा किया है कि इस लाइफस्टाइल से उन्होंने अपना टाइप टू डायबिटीज ठीक कर लिया है।कुर्जवील ने ब्लाइंड्स के लिए दुनिया की पहली प्रिंट टू स्पीच रीडिंग मशीन बनाई थी। वे ओम्नी फॉन्ट ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्नीशन भी बना चुके हैं। टेक्स्ट टू स्पीच कमर्शियल सॉफ्टवेयर बनाने का श्रेय भी उन्हें है। अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने उन्हें टेक्नीकल ग्रैमी कहे जाने वाले प्रतिष्ठित अवॉर्ड से सम्मानित किया था।
2001 में उन्हें इन्वेंशन के लिए 5 लाख डॉलर का प्राइज मिला था।5-6 साल की उम्र से साइंस की ओर उनका रुझान दिखने लगा था। उन्होंने अपने खिलौनों तथा पड़ोसियों से जुटाए गए पुराने खिलौनों को लेकर प्रयोगशाला बनाई थी, जहां वे तोड़-फोड़ करते रहते। कुर्जवील थोड़े बड़े हुए तो साइंस फिक्शन पढ़ने लगे। इससे उनकी कल्पना को नए पंख लगे। 8-9 साल की उम्र में उन्होंने अपने घर में एक रोबोटिक पपेट थिएटर बनाया था।1960 में जब वे 12 साल के थे, तब कंप्यूटर्स से उनका नाता जुड़ा।
बेल लैब्स में इंजीनियर उनके एक अंकल ने उन्हें कंप्यूटर साइंस के बेसिक्स बताए थे। ये उस जमाने की बात है, जब आम लोगों ने कंप्यूटर्स के बारे में सुना भी नहीं था। उन दिनों पूरे न्यूयॉर्क शहर में केवल कुछ दर्जन कंप्यूटर ही थे। कुर्जवील स्कूल में किताबों के पीछे अपने प्रोजेक्ट्स में व्यस्त रहते थे। 1963 में महज 15 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला कंप्यूटर प्रोग्राम लिखा था।
स्कूल के दिनों में ही उनकी पॉपुलैरिटी इतनी बढ़ गई थी कि उन्हें एक फेमस टीवी प्रोग्राम में बुलाया गया। वहां उन्होंने प्यानो की एक धुन पेश की, जो उनके द्वारा बनाए गए कंप्यूटर ने तैयार की थी। इसके अगले साल इंटरनेशन साइंस फेयर फॉर इन्वेंशन में उन्हें फर्स्ट प्राइज मिला। इसी साल उन्हें व्हाइट हाउस में सम्मानित किया गया।
कुर्जवील ने 1970 में मिशीगन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, यानी एमआईटी से कंप्यूटर साइंस में बैचलर ऑफ साइंस कोर्स किया था। इसके बाद उन्होंने अपनी कंपनियां बनाईं और कई आविष्कार किए। 2012 में गूगल के को-फाउंडर लैरी पेज उन्हें खुद प्रयास करके गूगल में ले आए। गूगल में वे मशीन लर्निंग और लैंग्वेज प्रॉसेस पर काम कर रहे हैं।