नई दिल्ली: देश में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया लगातार गिरता जा रहा है. भारतीय रुपया एक बार फिर कमजोर होकर अपने निचले स्तर पर आ गया है. मजबूत डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 23 पैसे की गिरावट के साथ 85.50 के रिकॉर्ड स्तर पर बंद हुआ.
तो आइये जानते है आखिर डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया लगातार क्यों गिर रहा है…और इसका आम आदमी के जीवन में क्या असर पड़ेगा…
इम्पोर्टेड सामान का इस्तेमाल…
बता दें कि रुपये टूटने का सबसे बड़ा कारण यह भी है कि देश में व्यापार में इस समय इम्पोर्टेड सामान के इस्तेमाल का प्रयोग ज्यादा बढ़ रहा है. इसमें सबसे ज्यादा उछाल सोने में देखा गया है. जो इस बार 50 फीसद बढ़कर 49.08 अरब डॉलर बढ़ गया है. कहा जा रहा है कि- सरकार ने जैसे कस्टम ड्यूटी 15 प्रतिशत से हटाकर 6 प्रतिशत की इसके बाद आयात में तेजी देखने को मिली.
बढ़ रही RBI की चिंता…
बता दें कि, जैसे- जैसे रुपये में गिरावट आ रही है वैसे- वैसे RBI की चिंता बढ़ती जा रही है. क्यों कि जैसे – जैसे रुपये गिर रहा है उसको देखते हुए RBI को पिछले कुछ महीनों के दौरान करेंसी मार्केट में बार- बार दखलअंदाजी करनी पड़ी है. यही कारण है कि विदेशी मुद्रा भंडार में तेजी से गिरावट देखने को मिली है.
फरवरी 2023 में आयी थी गिरावट…
गौरतलब है कि इससे पहले फरवरी 2023 में रुपये में गिरावट आई थी. उस समय रुपये 68 पैसे टूट गया था. जानकारों का कहना है कि- अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल बढ़ने से डॉलर का आकर्षण बढ़ा है और रुपये में गिरावट आई है. इतना ही नहीं इसके साथ ही विदेशी संस्थागत निवेशक भी अपना निवेश भारतीय शेयर बाजार से निकाल रहे हैं जिसका असर भी देखने को मिल रहा है.
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अर्थव्यवस्था टूटने के संकेत…
कहा जता है कि यदि किसी देश का रुपया टूटता है तो उस देश की अर्थव्यवस्था के कमजोर होने का संकेत है. विदेशी पूंजी की अधिक निकासी के कारण यह स्थिति बनी है. रुपये के कमजोर होने के कारण भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी खाली हो रहा है. जानकारों के मुताबिक, साल और महीना दोनों का अंतिम वक्त होने के कारण भुगतान के लिए आयातकों द्वारा डॉलर की जबर्दस्त मांग बढ़ी है. इस कारण बढ़ती मांग से डॉलर मजबूत होता जा रहा है.
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आम आदमी की जेब पर असर…
अगर बात करें कि आम आदमी की जेब पर इसका सीधा असर कैसे पड़ेगा तो यह है कि- रुपये में गिरावट का असर सीधे इम्पोर्ट पर लगने वाली चीजों की लागत पर पड़ता है. इसमें उत्पाद पर लगने वाली लागत के अलावा कच्चा माल भी शामिल होता है. कहने का मतलब है कि डॉलर मंहगा होने का सीधा असर कच्चे तेल पर पड़ता है और कच्चे तेल के बाद सभी परिवहन और घरेलु वस्तुएं मंहगी हो जाती हैं. जिसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है.