कोर्ट का समय बर्बाद करने पर लगा पचास हजार का जुर्माना

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याचिका कर्ता को याचिका डालना भारी पड़ गया। एमपी की हाईकोर्ट ने  समय बर्बाद करने का जुर्माना लगा दिया। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसके सेठ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने गुरुवार को एक याचिकाकर्ता पर अदालत का समय बर्बाद करने के लिए 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया है।

याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने भोपाल के जिला कलेक्टर को याचिकाकर्ता पर लगाए गए जुर्माने की राशि को वसूलने के लिए राजस्व वसूली प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया है।

जानकारी के अनुसार, जयपुर स्थित एक कंपनी मेसर्स मैवरिक डिवेलपर्स प्राइवेट लिमिटेड ने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन के तहत नगर निगम के आयुक्त, भोपाल और जल वितरण परियोजना अधिकारी के खिलाफ हाई कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी।

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने 7 अगस्त, 2018 को याचिका खारिज कर दी थी। तब अदालत ने कहा था कि इस मामले में हाई कोर्ट ने पहले ही निर्देश दे दिए हैं, इसके बावजूद तीसरी बार याचिका दाखिल की गई है।

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अदालत ने याचिकाकर्ता पर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने और अदालत का समय बर्बाद करने के लिए 50,000 रुपये का जुर्माना ठोका है। याचिकाकर्ता को अदालत के कानूनी सेवा सेल में दो महीने के भीतर राशि जमा करने के लिए कहा गया था, लेकिन निर्धारित समय में धनराशि जमा नहीं की गई। इसके बाद न्यायमूर्ति एसके सेठ और न्यायमूर्ति वीके शुक्ला की खंडपीठ ने भोपाल कलेक्टर से जुर्माना राशि वसूलने को कहा है। अदालत ने कहा कि अगर इसके लिए राजस्व वसूली प्रमाणपत्र जारी करना पड़े तो किया जाए।

इसी तरह के एक अन्य मामले में सतना के जिला कलेक्टर को भी इसी पीठ ने राजस्व वसूली प्रमाण पत्र के माध्यम से एक याचिकाकर्ता से जुर्माना राशि वसूलने को कहा है। जानकारी के अनुसार, सतना निवासी चक्रवीर नट ने 2017 में एक याचिका दायर की थी। इस याचिका में कहा गया था कि नट समुदाय को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए अदालत सरकार को निर्देश जारी करे। साथ ही याचिकाकर्ता का कहना था कि अनुसूचित जाति में शामिल समुदायों को मिलने वाले सभी लाभ उन्हें भी दिए जाने चाहिए।

अदालत ने 18 जुलाई 2018 को इस याचिका को खारिज कर दिया था। अदालत ने कहा था कि किसी समुदाय को एससी-एसटी या ओबीसी श्रेणी में शामिल करने का अधिकार संसद के पास है और अदालत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। बगैर किसी आधार के याचिका दाखिल किए जाने की बात कहते हुए अदालत ने याचिकाकर्ता पर एक हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था। यह धनराशि दो महीने के भीतर कोर्ट की कानूनी सेवा सेल में जमा की जानी है।

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