काशी की वो वीरांगना जिसने खट्टे किए थे अंग्रेजों के दांत

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हमारे देश की स्वतंत्रता के लिए अनेक राजाओं ने लड़ाइयां लड़ी और इस कोशिश में हमारे देश की वीर तथा साहसी स्त्रियों ने भी उनका साथ दिया। इन वीरांगनाओं में रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई, आदि का नाम शामिल हैं।

महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म एक मराठी ब्राह्मण परिवार में 19 नवंबर 1828 में काशी में हुआ जिसे अब वाराणसी के नाम से जाना जाता हैं। उन्हें मणिकर्णिका नाम दिया गया और घर में मनु कहकर बुलाया गया।

उनके पिता मोरोपंत तांबे, पेशवा बाजीराव के परिवार के खिदमतगार थे और बिठूर रियासत के पेशवा के यहां काम करते थे। इसी कारण वे इस कार्य से प्रभावित थी और उन्हें अन्य लड़कियों की अपेक्षा अधिक स्वतंत्रता भी प्राप्त थी।

चचेरे भाई के बच्चे को लिया गोद-

rani laxmi bai 1

4 बरस की थीं, जब मां गुज़र गईं। मणिकर्णिका का ब्याह झांसी के महाराजा राजा गंगाधर राव नेवलकर से हुआ और देवी लक्ष्मी पर उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा। बेटे को जन्म दिया, लेकिन 4 माह का होते ही उसका निधन हो गया। राजा गंगाधर ने अपने चचेरे भाई का बच्चा गोद लिया और उसे दामोदार राव नाम दिया गया।

राजा गंगाधर राव का देहांत होते ही अंग्रेज़ों ने चाल चली और लॉर्ड डलहौज़ी ने ब्रिटिश साम्राज्य के पैर पसारने के लिए झांसी की बदकिस्मती का फायदा उठाने की कोशिश की। अंग्रेज़ों ने दामोदर को झांसी के राजा का उत्तराधिकारी स्वीकार करने से इनकार कर दिया। झांसी की रानी को सालाना 60000 रुपए पेंशन लेने और झांसी का किला खाली कर चले जाने के लिए कहा गया।

मर्दानी की कहानी-

इसके बाद झांसी को बचाने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने बागियों की फौज तैयार करने का फैसला किया। वैसे तो रानी लक्ष्मीबाई, अंग्रेज़ों से भिड़ना नहीं चाहती थीं लेकिन सर ह्यूज रोज़ की अगुवाई में जब अंग्रेज़ सैनिकों ने हमला बोला, तो कोई और विकल्प नहीं बचा। रानी को अपने बेटे के साथ रात के अंधेरे में भागना पड़ा।

ग्वालियर के फूल बाग इलाके में मौजूद उनकी समाधि आज भी मर्दानी की कहानी बयां कर रही है। हम सभी ने लक्ष्मीबाई की कहानी सुनी है, लेकिन सुभद्राकुमारी चौहान ने अपनी कलम के ज़रिए उनकी जो बहादुरी हमारे सामने रखी, उसकी मिसाल दूसरी कोई नहीं!

सिंघासन हिल उठे राजवंशो ने भरकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में आई फिर से नई जवानी थी
गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी
दूर फिरंगी को करने की सबने मन मे ठानी थी
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुहँ हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।

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