पूर्वांचल: बीजेपी की राह में कांटे तो सपा की भी राह नहीं आसान
यूपी की सत्ता पर पहुंचने के लिए पूर्वांचल में जीत का परचम फहराना जरूरी माना जाता है। अभी तक पूरा जोर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में था। लेकिन जैसे जैसे छठवें और सातवें चरण के चुनाव का दिन नजदीक आ रहा है पूर्वांचल सियासी अखाड़ा बना हुआ है। बीजेपी के जातीय समीकरण में सपा सेंधमारी करती नजर आ रही है। यह स्थिति केवल आजमगढ़, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर में ही नही बल्कि बनारस की आठ सीटों में से चार सीट ऐसी है जिस पर बीजेपी की राह आसान नहीं होगी?
हर चौराहे चुनाव की चर्चा
वाराणसी से करीब तीस किमी दूर स्थित है मार्कण्डेय महादेव मंदिर। गाजीपुर सीमा से सटे होने के कारण यहां आसपास के जिले से बड़ी संख्या में श्रद्धालु रोजाना बाबा दरबार में पहुंचते है। मंदिर के पास स्थित एक चाय की दुकान पर दर्शन पूजन कर चाय पीने पहुंचे लोगो के बीच चुनावी बतकही जोरों थी….काफी देर से चल रही बहस को सुन कुल्हड़ में चाय छानते हुए दुकानदार बनवारी पाल बोल पड़े…. भइया, कुछ भी कह ला… अबकी कौनो लहर ना हौ… पूर्वांचल में देखिहे….बड़े बड़े लोगन क सीटिया फंस गइल हौ….
वाराणसी समेत आसपास के जिलों की करीब 61 विधानसभा क्षेत्रों की सियासी फिंजा में चाय वाले की बात चट्टी चौराहों पर बहस का मुद्दा बना हुआ है।
जातीय समीकरण की अहम भूमिका
पूर्वांचल में बीजेपी के लिए पिछले चुनाव में राजभर, पटेल और निषाद वोटर बूस्टर डोज साबित हुए थे, लेकिन यह सियासी समीकरण इस बार गड़बड़ाया हुआ नजर आ रहा है। बीजेपी की सहयोगी रहे भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर इस बार सपा के साथ हैं तो अपना दल के सहारे मिलने वाले पटेल समाज भी चुनौती देता दिख रहा।
शिक्षण से जुड़े सैदपुर के “आनंद भूषण तिवारी कहते है ओमप्रकाश राजभर ओबीसी वोटरों के बीच सीधे सीधे योगी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। ओमप्रकाश जहा भी जाते है चुनाव को अगड़ा और पिछड़ा के बीच बताते है।उनकी यही बात निचले तबके के युवाओं में जोश के साथ गहरे पैंठ भी बनता जा रहा। बीजेपी के लिए यही चिंता का सबब है।”
वर्ष 2014, 2017-2019 में मोदी लहर में सभी जातीय समीकरणों को बीजेपी ने ध्वस्त कर दिया। इसमें छोटे दलों का साथ मिला। अबकी बार पूर्वांचल की जातिवादी राजनीति में दखल देने वाले छोटे दलों को समाजवादी पार्टी ने अपने पाले में कर लिया है।
पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीज के करीबी समाजवादी विचारक विजय नारायण जी कहते हैं छोटे दलों का वोट बिखरे न इसके लिए सपा कड़ी मेहनत कर रही है। ऐसे में बीजेपी को इस बात की चिंता सता रही है कि पश्चिमी यूपी की बजाए पूर्वांचल में कहीं ज्यादा सीटें न गवां न दें।
बनारस की डगर भी कठिन
बीजेपी और बीएसपी के तमाम बड़े ओबीसी नेताओं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर, राम अचल राजभर, लालजी वर्मा, दारा सिंह चौहान के आने से ओबीसी वर्ग में समाजवादी पार्टी की पैठ काफी हद तक मजबूत हुई है। लिहाजा इस बार बनारस समेत आसपास की सीटो पर बीजेपी को कड़ी चुनौती मिलनी तय है।
बनारस में सपा के वरिष्ठ नेता धर्मेंद्र सिंह दीनू बताते हैं कि बनारस में भी बीजेपी की राह इस बार आसान नहीं होगी। इनमे चार सीटें शहर दक्षिणी, कैंटोंमेंट, सेवापुरी और पिंडरा में बीजेपी को कड़ी चुनौती मिल रही। इनमे शहर दक्षिणी, सेवापुरी और कैंटोमेंट में पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र से जुड़े विधानसभा क्षेत्र है। कैंटोमैंट और शहर दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र पिछले तीन दशक से बीजेपी के कब्जे में है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस बार कैंटोमेंट से कांग्रेस के पूर्व सांसद डा, राजेश मिश्रा के आने से ब्राह्मणों का बड़ा तत्काल उनकी तरफ जा सकता है। इसके लिए संकट मोचन मंदिर के महंत बीएचयू आईटी विभाग के प्रोफेसर विश्व्ंभरनाथ मिश्रा खुलकर उनके पक्ष में आ गए हैं और ब्राह्मणों को एकजुट होकर राजेश मिश्रा के पक्ष में मतदान करने की अपील कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले शरीर शहर दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र में कैबिनेट मंत्री नीलकंठ तिवारी की प्रतिष्ठा भी दांव पर लग गई है।
यहां से समाजवादी पार्टी ने शहर के मृत्युंजय महादेव मंदिर के महंत के पुत्र छात्र राजनीति से निकले युवा नेता किशन दीक्षित को मैदान में उतारकर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। इस विधानसभा क्षेत्र में बड़ी संख्या में ब्राह्मण वोटर है। जिसे लेकर दोनों प्रत्याशियों के बीच ब्राह्मणों को अपने पाले में करने की होड़ मची है।
मोदी को वोट प्रत्याशी को नहीं
बीजेपी काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर, जल परिवहन परियोजना, कैंसर संस्थान, वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन, कन्वेंशन सेंटर, माल्टिस्टोरी पार्किंग, गंगा घाट पर माल्टीमोडल स्टेशन के अलावा शहर दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र में 100 करोड़ की लागत से स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत गलियों के विकास को जनता के सामने बतौर चुनावी मुद्रदा पेश कर रही हैा
लेकिन इलाके के साड़ी कारोबारी शिवकुमार का कहना है
बनारस में जो भी विकास हुआ वह पीएम मोदी की देन है। लोग मोदी के नाम पर वोट देंगे प्रत्याशी के नाम पर नही। विकास यादव कहते है की इस बार शहर दक्षिणी में मंत्री नीलकंठ तिवारी से ब्राम्हण वोटर थोड़े नाराज है। वह तर्क देते है की काशी विश्वनाथ धाम कारीडोर निर्माण के दौरान जिस तरह से प्रशासनिक दबाव बनाया गया और लोगों को अपने मकान देने पड़े उससे लोगों में खासी नाराजगी है।
शायद यही कारण है की विश्वनाथ धाम निर्माण का हमेशा मुखर विरोध करने वाले मंदिर के पूर्व महंत पंडित कुलपति तिवारी को उन्होंने अपना प्रस्तावक बनाकर मंत्री नीलकंठ ने ब्राम्हणों में एकजुटता का संदेश देने की कोशिश की।
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वही वाराणसी के सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र में सपा के पूर्व मंत्री रहे सुरेंद्र पटेल बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं। यह इसलिए भी कि बीजेपी ने अपना दल के विधायक रहे नील रतन पटेल नीलू को अपना प्रत्याशी बनाया है । लेकिन नील रतन पटेल शारीरिक समस्या से जूझ रहे हैं। वह व्हील चेयर पर बैठकर के प्रचार करते हैं। इसी तरह पिंडरा विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी विधायक डा, अवधेश सिंह और कांग्रेस के पूर्व विधायक अजय राय के बीच रोचक मुकाबला होने की संभावना है। पिछले चुनावी नतीजों को देखें तो साफ है कि मोदी लहर के बाद भी पूर्वांचल के कई जिलों में बीजेपी विपक्षी दलों से पीछे रह गई थी। इनमे आजमगढ़ की दस सीटो में महज एक पर बीजेपी को जीत हासिल हो पाई।
वैसे देखा जाए तो पूर्वांचल में जीत दर्ज करने के लिए बीजेपी का खास ध्यान है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण हिंदू मतों को भाजपा के पक्ष में एकजुट करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र शर्मा बताते हैं की पूर्वांचल से ही तय होगा कि सरकार किसकी बनेगी। वह कहते हैं कि पहले जहां बीजेपी पूर्वांचल में कमजोर दिखाई दे रही है। लेकिन राजनीति में कमजोर को मजबूत होते देर नहीं लगती है. साथ ही वह जोड़ते हैं कि इस बार पूर्वांचल के जाति समीकरण भी प्रमुख भूमिका निभाएंगे। कॉरिडोर को बीजेपी एक बड़े विकास के तौर पर ले रही है.
दलित तय करेंगे मिर्जापुर की राजनीति
पूर्वांचल के जाति समीकरण में देखा जाए तो दलित मतदाताओं पर जहां बसपा की मजबूत पकड़ मानी जाती थी, लेकिन बीजेपी दलित मतदाताओं को अपने पाले में लाने में सफल रही है। इसका उदाहरण पिछले चुनाव रहे हैं. पिछले चुनावों में दलित मतदाताओं का काफी रुझान बीजेपी की तरफ रहा। अगर इस बार भी ऐसा हुआ तो निश्चित रूप से बसपा को पूर्वांचल से बड़ा नुकसान और बीजेपी को इसका बड़ा फायदा मिल सकता है। मिर्जापुर चुनार के शिव नारायण पटेल भी ऐसा ही मानते हैं. उनका कहना है कि इस बार पूर्वांचल में बसपा की पकड़ ढीली पड़ती दिखाई दे रही है।
छोटे दल भी बनेंगे निर्णायक
वैसे, देखा जाए तो पूर्वांचल छोटे दलों की राजनीति की प्रयोगशाला रही है। अपना दल, निषाद पार्टी, भारतीय समाज पार्टी और जनवादी पार्टी, अपनादल (कमेरावादी) प्रमुख रूप से शामिल है। इनमे दो दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में राजभर मतदाताओं की संख्या 20 से 35 हजार तक है जो विधानसभा सीट पर जीत में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। 2017 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का बीजेपी से गठबंधन था जिसका फायदा भी चुनाव के परिणाम में देखने को मिला। वही पूर्वांचल में निषाद जाति के लोगों की संख्या गोरखपुर, गाजीपुर, मिर्जापुर, भदोही, चंदौली समेत कई जनपदों में है। वही पूर्वांचल के कुर्मी मतों में अपना दल (सोनेलाल) की अच्छी पकड़ मानी जाती है। पूर्वांचल के डेढ़ दर्जन जिलों में कुर्मी मतदाताओं की संख्या निर्णायक है। ऐसे में 2017 के बाद अब 2022 के चुनाव में भी अपना दल (सोनेलाल) से बीजेपी ने गठबंधन किया और बड़ा फायदा मिला। इसके अलावा भारतीय मानव समाज पार्टी का बिंद जाति पर अच्छा प्रभाव माना जाता है। इधर सपा ने अपने गठबंधन पार्टी अपनादल कृष्णा पटेल गुट (कमेरावादी) को जो सीट दिया है वहा कमजोर उम्मीदवार चुनावी मैदान में है। सिंबल भी सपा का नही है। इनमे वाराणसी के रोहनिया और पिंडरा, सोनभद्र के घोरावल, मड़िहान, मिर्जपुर के चुनार विधानसभा सीट पर कमेरावादी प्रत्याशी को कड़ी मेहनत करनी होगी, तभी लड़ाई में रह सकते है।
बहरहाल ,जातिगत समीकरण पर नजर डालें तो वाराणसी के आसपास के जिलों में यादव और मुसलमान मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है। इसके चलते सपा अपनी पकड़ को मजबूत मानती है। ऐसे में वाराणसी समेत आसपास के जिलों में जातिगत समीकरण ने बीजेपी की राह कठिन कर दी है। आने वाले दस मार्च को पता चलेगा की जातिगत समीकरण साधने में कौन सी पार्टी सफल रही।