प्रदोष व्रत : शिवजी की कृपा से होती है ऐश्वर्य एवं वैभव की प्राप्ति
भगवान शिवजी की कृपा से होती है ऐश्वर्य एवं वैभव की प्राप्ति। आरोग्य सुख के साथ होती है सौभाग्य में अभिवृद्धि।
33 कोटि देवी-देवताओं में भगवान शिवजी को ही देवाधिदेव महादेव माना गया है। भगवान शिवजी की विशेष कृपाप्राप्ति के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख है, जिसमें प्रदोष एवं शिवरात्रि व्रत प्रमुख हैं। प्रदोष व्रत से जीवन में सुखसमृद्धि खुशहाली मिलती है, साथ ही जीवन के समस्त दोषों का शमन भी होता है। प्रत्येक माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि जो प्रदोष बेला में मिलती हो, उसी दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है। सूर्यास्त और रात्रि के सन्धिकाल को प्रदोषकाल माना जाता है। कलियुग में हर आस्थावान व धर्मावलम्बी अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रदोष व्रत रखते हैं। प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि इस बार 20 अप्रैल, सोमवार को प्रदोष व्रत रखा जाएगा।
वैशाख कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 19 अप्रैल, रविवार की अर्द्धरात्रि के पश्चात् 12 बजकर 43 मिनट पर लगेगी जो कि 20 अप्रैल, सोमवार की अर्द्धरात्रि के पश्चात् 03 बजकर 12 मिनट तक रहेगी। प्रदोष बेला में त्रयोदशी तिथि का मान 20 अप्रैल, सोमवार को होने के फलस्वरूप प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा। सोमवार शिवजी का प्रिय दिन है, जिससे सोम प्रदोष अति महत्वपूर्ण हो गया है। प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट तक माना गया है, इसी अवधि में भगवान् शिवजी की पूजा प्रारम्भ करने की परम्परा है।
वार (दिनों ) के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ-ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग प्रभाव है। वारों (दिनों) के अनुसार सात प्रदोष व्रत बतलाए गए हैं, जैसे-रवि प्रदोष-आयु, आरोग्य, सुखसमृद्धि, सोम प्रदोष-शान्ति एवं रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि, भौम प्रदोष-कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष-मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष-विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष-पुत्र सुख की प्राप्ति अभीष्ट की पर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने की मान्यता है
ऐसे करें प्रदोष व्रत-
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान, ध्यान करके अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर प्रदोष काल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
भगवान शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि जो भी सुलभ हो, अर्पित करके श्रृंगार करना चाहिए। तत्पश्चात् धूप-दीप प्रज्वलित करके आरती करनी चाहिए। परम्परा के अनुसार कहीं-कहीं पर जगतजननी माता पार्वतीजी की भी पूजाअर्चना करने का विधान है। शिवभक्त अपने मस्तक पर भस्म व तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलित होती है।
भगवान् शिवजी की महिमा में उनकी प्रसन्नता के लिए प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषव्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए साथ ही व्रत से सम्बन्धित कथाएं भी सुननी चाहिए। प्रदोष व्रत महिलाएं एवं पुरुष दोनों के लिए समानरूप से फलदायी बतलाया गया है। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। अपनी दिनचर्या को नियमित संयमित रखते हुए व्रत को विधि-विधानपूर्वक करना लाभकारी रहता है। अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को दान करना चाहिए, साथ ही गरीबों व असहायों की सेवा व सहायता करने से जीवन में आरोग्य के साथ ही सुख-समृद्धि, खुशहाली सदैव मिलती रहती है।
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