कोरोना से सामने आया पुलिस का मानवीय चेहरा
समय के अनुकूल लोगों की छवि बदल जाती है। कोरोना के बाद दुनिया पुरानी जैसी नहीं रहेगी, समाज ज़रूर बदलेगा। सभी इस बात पर सहमत हैं कि ज़िंदगियां बदलेंगी, लेकिन कैसी बदलेंगी इसपर कोई आम राय नहीं बन पा रही है।
सकारात्मक बदलाव की बयार-
भारत के संदर्भ में एक सकारात्मक बदलाव दिख रहा है, और हां ये बदलाव किसी की बाहरी रूप-रेखा में नहीं बल्कि एक खास संगठन में दिख रहा है। ये हम सब के लिए दिलचस्प इसलिए है क्योंकि, ये वही संगठन है जो अपनी पैदाइश से ही नकारात्मक छवि की समस्या से जूझ रहा है। यह संगठन कोई और नहीं बल्कि भारतीय पुलिस है, जो एक आधुनिक संस्थान के रूप में 1860 के दशक में अस्तित्व में आया।
दंगों को ध्यान में रखते में हुए गठित हुआ-
1857 के दंगों को ध्यान में रखते हुए भारत में पहली बार इम्पीरियल पुलिस के नाम से इस संगठन का गठन हुआ था। बदकिस्मती से उस समय से लेकर आजतक आम जनता के दिलों में कभी पुलिस को लेकर अच्छी छवि नहीं बन पाई है, और आलम ये है कि आज भी पुलिसवालों को एक गुंडे की भांति देखा जाता है। लेकिन एक लोकतान्त्रिक गणतंत्र में ये स्थिति अजीब सी नज़र आती है, लेकिन ये कहना सही भी होगा कि भारत में पुलिस और आम जनता में शत्रुओं जैसे रिश्ते नज़र आते हैं।
पुलिस का काम अंग्रेज शासकों की रक्षा करना था-
पुलिस संगठन का मूल उद्देश्य अंग्रेज़ों के समय में अपने शासकों की रक्षा करना था। आज़ादी के बाद इसे बदलना चाहिए था, लेकिन शायद हमारे नए शासकों को भी ऐसी पुलिस अच्छी लगी जो जनता की सेवक से अधिक उनका चाकर हो। ज़रूरी है कि इसपर अकादमिक शोध हो कि ऐसा कौन सा कारण था जिसकी वजह से आजतक भारतीय पुलिस की मानसिकता लगभग वैसी ही बनी हुई है।
कोरोना के दौरान बदली छवि-
इस पृष्ठभूमि में कोरोना के दौरान भारतीय पुलिस के व्यवहार में आए परिवर्तन आपको चकित कर सकते हैं। सोशल मीडिया, अख़बारों में ऐसी खबरें आ रही हैं, या ऐसी तस्वीरें देखने को मिल रही है जिससे पुलिस का गुड-मूड झलक रहा है।अपने जन्मदिन पर उदास बैठे बच्चे तक केक पहुंचाकर उसके चेहरे पर मुस्कान लौटाना हो, शाहजहांपुर के एक गांव में कैंसर के मरीज को दिल्ली से दवा उपलब्ध करानी हो या किसी असहाय परिवार को कई दिनों बाद भोजन कराना हो- सब कुछ ऐसा लगता है, जैसे हम किसी दूसरे ग्रह की पुलिस के बारे में देख-पढ़ रहे हैं।
पुलिस बनी कोरोना योद्धा-
कोरोना योद्धाओं की सूची में डॉक्टर, पैरा-मेडिकल स्टाफ के साथ-साथ पुलिस का भी नाम जुड़ गया है, पुलिस के सकारात्मक कामों का ज़िक्र लोगों की ज़ुबान पर भी आ रहा है।
मोदी ने घंटी भी बजवाई-
आपको बता दें कि कोरोना की इस जंग में आधा दर्जन से ज़्यादा पुलिसकर्मियों की मौत हो चुकी है, वहीं सैकड़ों पुलिसकर्मी कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। देशभर में लोगों की सुरक्षा के लिए खड़े पुलिसकर्मियों की बहादुरी का अभिनंदन करते हुए फूल मालाएं भी पहनाईं गयीं। प्रधानमंत्री मोदी ने जिन लोगों के योगदान को रेखांकित करने के लिए तालियां बजाने या दीया जलाने की अपील की थी, उनमें पुलिसकर्मी भी थे।
धब्बे को हटाने कोशिश-
गौरतलब है कि हज़ारों पुलिसकर्मी जहां भारतीय पुलिस के नाम पर लगे धब्बे को हटाने कोशिश कर रहे हैं। वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जो पुलिस के नाम को भी कलंकित कर रहे हैं। इस महासंकट के समय जब लोगों के घर से बाहर निकलने पर काबू पाना और लोगों की सुरक्षा करना पुलिस का मूल काम होना चाहिए, वहीं कई ऐसे भी पुलिसवाले देखने को मिलते हैं जो लोगों की हर छोटी गलती को बड़े दंड में परिवर्तित कर देते हैं।
क्या ये परिवर्तन स्थायी होगा?
आज हमें उस संस्थान की याद आई है जिसे हमने हमेशा से गलत नजरों से देखा है। मगर अब देखना यह है कि क्या यह परिवर्तन संस्थानबद्ध हो पाएगा? ऐसा तो नहीं कि जब स्थितियां सामान्य हो जाएंगी तो पुलिस वापस अपने ढर्रे पर चली जायेगी।
इतना तो निश्चित है कि सरकार इस महामारी से कई सबक लेकर आगे बढ़ेगी लेकिन क्या उसे पुलिस में व्यापक सुधार करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए? यह परिवर्तन जो आज़ादी के तुरंत बाद होना चाहिए था वो आज़ादी के 73 साल बाद क्यों थोड़ा बहुत दिखाई पड़ रहा है।
[bs-quote quote=”इस आर्टिकल के लेखक एक स्टूडेंट हैं। जो सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर लिखते रहते हैं।” style=”style-13″ align=”center” author_name=”वैभव द्विवेदी” author_job=”स्टूडेंट” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/04/vaibhav.jpg”][/bs-quote]
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