आजादी के पहले से चला आ रहा है Parle-G बिस्कुट

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भारत में आज शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने Parle-G का नाम ना सुना होगा। यही वो बिस्कुट है जो आजादी के पहले से लोगों की चाय का साथी बना हुआ है। आज बच्चे से लेकर बूढ़े तक हर किसी के लिए ये खास है।

लोगों की कितनी ही यादें इस बिस्कुट से जुड़ी हुई है। Parle-G वो पहला बिस्कुट था जो भारत में बना और भारत के आम लोगों के लिए बना। तो चलिए दोस्तों जानते है आखिर कैसे Parle- G बना देश का बिस्कुट।

Parle कंपनी की शुरूआत कैसे हुई?-

Parle-G आज या कल का नहीं बल्कि कई सालों पुराना प्रोडक्ट है। भारत की आजादी के पहले ही इसकी नींव रखी गई थी। दोस्तों आपको जान कर हैरानी होगी की जिसे आप अभी Parle-G के नाम से जानते है उसका नाम पहले Parle-G नहीं बल्कि Parle-Gluco था।

भारत की आजादी से पहले देश में अंग्रेजों का दबदबा था। और ब्रिटिश चीज़ों का प्रचलन भी काफ़ी ज्यादा था जिसे सिर्फ अमीर लोग ही खरीद सकते थे। उस समय भारत में अंग्रेजों द्वारा कैंडी लाई गई थी। मगर वो भी सिर्फ अंग्रेजों तक ही सीमित थी।

Parle कंपनी की शुरूआत किसने की?-

ये बात मोहन लाल दयाल को पसंद नहीं आई। वे स्वदेशी आंदोलन से काफ़ी प्रभावित थे। उन्होंने सोच लिया था की भारतीयों के लिए वे भारत में बनी ही कैंडी लायेंगे और भारतीय भी इसका मज़ा ले सकेंगे।

इसके लिए वे जर्मनी निकल गए। वहां उन्होंने कैंडी बनाना सीखा और 1929 में 6 हजार रुपए में कैंडी मशीन की अपने साथ भारत लेकर आए। यूं तो मोहन लाल दयाल का खुद का रेशम का व्यापार था। लेकिन फिर भी उन्होंने भारत आकर एक नया व्यापर शुरू किया।

Parle कंपनी कहां पर स्थित है?-

मोहन लाल दयाल ने मुंबई के पास स्थित वीले पर्ला में एक पुरानी सी फैक्ट्री खरीदी। कंपनी के पास शुरूआत में सिर्फ 12 कर्मचारी ही थे। और ये सब भी मोहन लाल दयाल के परिवार वाले ही थे। उन सब ने मिलकर दिन रात एक किया और उस पुरानी सी फैक्ट्री को एक नया रूप दिया।

Parle कंपनी का नाम Parle कैसे पड़ा?-

हर कोई कंपनी को बनाने में इतना व्यस्त हो गया था कि उन्होंने ये भी नहीं सोचा की आखिर इसका नाम क्या रखा जाए, ज़ब कोई भी नाम समझ नहीं आया तो आखिर में कंपनी का नाम उस जगह के नाम पर रखा गया जहां उसकी शुरूआत हुई थी।

कंपनी वीले पार्ला में खोली गई थी। इसलिए इसका नाम थोड़े बदलाव के साथ पार्ले रखा गया। इसके बाद फैक्ट्री में जो सबसे पहली चीज बनाई गई थी, वो थी एक ऑरेंज कैंडी। इस कैंडी को लोगों ने काफ़ी पसंद भी किया।

Parle-Gluco की शुरुआत कब हुई?-

उस समय अंग्रेज अपनी चाय के साथ बिस्कुट खाया करते थे मगर वो भी सिर्फ अमीरों तक ही सीमित थी। इसलिए मोहन लाल दयाल ने सोचा की क्यों ना कैंडी की तरह ही बिस्कुट भी भारत में ही बनाया जाए। इसके बाद 1939 मे उन्होंने शुरूआत की Parle-Gluco की। गेहूं से बना ये बिस्कुट इतने कम दाम में था की अधिकांश भारतीय इसे खरीद सकते थे।

इसका सिर्फ दाम ही कम नहीं था बल्कि इसका स्वाद भी काफी बढ़िया था। देखते ही देखते आम लोगों के बीच ये बिस्कुट काफी प्रसिद्ध होने लगा। माना जाता है कि ना सिर्फ भारतीय, कई ब्रिटिश भी Parle-Gluco का स्वाद लिया करते थे।

Parle-Gluco इतनी तेजी से आगे बड़ा की मार्केट में मौजूद ब्रिटिश ब्रांड के बिस्कुट पीछे होने लगे। हर कोई इसकी पॉपुलेरेटी के आगे झुकने लगा था।

Parle-Gluco ने अपना प्रोडक्शन बंद क्यों किया था?-

द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद Parle-Gluco काफ़ी बड़ा ब्रांड बन चुका था। हालांकि विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद Parle-Gluco को अपना प्रोडक्शन बंद करना पड़ा था। ऐसा नहीं था की कंपनी घाटे में चल रही थी या उसके पास प्रोडक्शन के लिए पैसे नहीं थे।

प्रोडक्शन बंद करने की असली वजह थी देश में गेहूं की कमी। जैसे ही भारत 1947 में अंग्रेजों के राज से आजाद हुआ और देश का विभाजन हुआ तो ये कमी और भी बढ़ गई। Parle कंपनी को इतना raw मटेरियल नहीं मिल पा रहा था की प्रोडक्शन जारी रख सके। ऐसे में कुछ वक़्त के लिए इसका प्रोडक्शन रोकना पड़ा।

प्रोडक्शन रोकने के कुछ समय बाद ही लोगों को Parle-Gluco की कमी सताने लगी थी। कंपनी को भी इसका एहसास हुआ। कंपनी ने ये वादा किया की जैसे ही हालत ठीक होंगे प्रोडक्शन फिर से शुरू कर देंगे।

Parle-G की शुरुआत कब हुई?-

1982 वो साल था ज़ब Parle-Gluco का नाम बदल कर Parle-G कर दिया गया। वैसे तो कंपनी का नाम बदलने का कोई इरादा नहीं था। मगर ये उन्हें मजबूरन करना पड़ा। Gluco शब्द Glucose से बना था। Parle के पास इसका कोई कॉपीराइट नहीं था। इसी चीज का फ़ायदा उन बिस्कुट ब्रांड ने उठाया जो अभी तक Parle-Gluco के पीछे चल रहे थे।

देखते ही देखते मार्केट मे बहुत सारे gluco बिस्कुट आ गए। हर कोई अपने बिस्कुट के नाम के पीछे Gluco या Glucose का इस्तेमाल करने लगा। इसके कारण लोग Parle-Gluco और बाकि बिस्कुट के बीच फंस गए। इसके कारण Parle-Gluco की सेल पर काफ़ी बुरा असर पड़ा।

यही करण रहा की 1982 में फैसला किया कि अब वो अपने नाम से Gluco हटा कर सि​र्फ G रखेंगे। इसके साथ ही उन्होंने नाम बदल कर एक और नई Parle-G की शुरूआत की।

Parle-G को कौन से सन में सबसे ज्यादा बेचा जाने वाला बिस्कुट घोषित किया गया?-

2003 में Parle-G को दुनिया में सबसे ज्यादा बेचा जाने वाला बिस्कुट घोषित किया गया। और जैसे जैसे वक़्त बितता गया Parle-G एक साम्राज्य की तरह बन गया।

Parle-G 2012 में कितने करोड़ की सेल की थी?-

2012 में कंपनी ने बताया की सिर्फ बिस्कुट से ही उन्होंने करीब 5000 करोड़ की सेल की है। यह सुनकर हर कोई हैरान हो गया। Parle-G भारत का पहला ऐसा ब्रांड था जिसने ये आंकड़ा छुआ था।

Parle-G 2014 में कौन से स्थान पर थी?-

2014 में Parle-G को भारत का 42वां सबसे ज्यादा भरोसेमंद ब्रांड घोषित किया गया था।

Parle-G हर साल कितना बिस्कुट बनती है?-

आकड़ों की मानें तो Parle-G हर साल 14600 करोड़ बिस्कुट बनती है।

Parle-G कितने स्टोर्स में अपने बिस्कुट भेजते है?-

ये सभी बिस्कुट करीब 6 मिलियन स्टोर्स में भेजे जाते हैं।

Parle-G हर साल कितना कमाती है?-

इसकी वजह से ही कंपनी आज 16 मिलियन डॉलर का रेवेन्यू कमा पाती है।

Parle-G का मार्केट में कितने प्रतिशत का कब्जा है?-

भारत में glucose बिस्कुट के श्रेणी में 70% बाजार पर Parle-G का कब्जा है। इसके बाद नंबर आता है Britannia ke tiger ka जिसने बाजार पर 17 से 18% का कब्जा जमा रखा है।

Parle-G की पैकिंग कैसे होती है?-

दोस्तों Parle-G बिस्कुट की एक अच्छी बात है की इसे देखते ही पहचाना जा सकता था। यह बिस्कुट पहले वैक्स कागज के पैकेट में पैक किया जाता था। लेकिन अभी कुछ सालों पहले इसे प्लास्टिक के पैकेट में पैक किया जा रहा है।

पैकेट में छपी बच्ची कौन है?-

इसके अलावा पैकेट में छपी बच्ची इस बिस्कुट की पहचान है। बीच में सोशल मीडिया में अफवाव उड़ी थी की इस पैकेट पर छपी छोटी बच्ची निरु देश पांडे है जो की सरासर गलत है। सच्चाई ये है की इस पैकेट पर छपी बच्ची एक इलस्ट्रेशन है जिसे 1960 में एक आर्टिस्ट ने बनाया था।

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