मणिकर्णिका घाट पर नगर वधुओं ने किया नृत्य

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हर किसी की ख्वाहिश होती है कि वर्तमान में उसके जीवन में जो भी बुराइयाँ हैं आने वाले कल या फिर अगले जन्म में उसे उन बुराइयों से मुक्ति मिले। कुछ ऐसी ही ख्वाहिश के साथ वाराणसी के महाश्मशान मणिकर्णिका(Manikarnika Ghat) घाट पर नवरात्रि की सप्तमी पर नगर वधुओं ने बाबा मसाननाथ के दरबार में नृत्य किया।

अगले जनम मुझे नगरवधू ना बनाना

सैकड़ों वर्षों पुरानी इस परंपरा को निभाने के पीछे नगर वधुओं का मकसद बाबा से यह कामना करना होता है कि आने वाले कल और अगले जन्म में उन्हें भी किसी की बेटी और बहु बनने का सौभाग्य मिले।

यहीं मिलता है मोक्ष

ये है महाश्‍मशान, सिर्फ काशी का ही नहीं बल्‍कि पूरे ब्रह्माण्‍ड का महाश्‍मशान। ये वो जगह है जहां भगवान शिव जीवात्‍मा के कानों में अंतिम पुरुषार्थ ‘मोक्ष’ का मंत्र फूंकते हैं। कहते हैं कि वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर जलने वाली चिताओं की लौ आजतक कभी नहीं बुझी। यहां चिताएं अनवरत हैं।

खुद बाबा विश्‍वनाथ देते हैं तारक मंत्र

काशी ही नहीं बल्‍कि दूर-दूर से लोग यहां अपनों की अंत्‍योष्‍टि करने आते हैं। मान्यता है कि इस महाशमशान में खुद बाबा विश्वनाथ जीवात्‍मा के कानों में तारक मन्त्र बोल कर उसे जन्‍म-मरणा के बंधन से मुक्ति प्रदान करते हैं।

मुक्‍ति की कामना लिये आई हैं नगरवधुएं

इस महाश्‍मशान के अधिष्ठाता देव बाबा मसान नाथ के दरबार में नाच रहीं ये नगर वधुएं भी मुक्ति की ऐसी ही कामना के साथ यहां हर वर्ष आती हैं। मुक्ति अपने जीवन पर लगे ‘नगरवधु’ होने के कलंक से। एक ऐसा बदनुमा दाग जिसके चलते कोई इन्हें नहीं अपनाता, फिर चाहे बेटी के रूप में हो, किसी की पत्नी के या फिर किसी की बहू के।

सप्‍तमी को निभाई जाती है वर्षों पुरानी परंपरा

चैत्र मास में वासंतिक नवरात्रि की सप्तमी तिथि की रात्रि को ये नगर वधुएं बाबा मसाननाथ को इसी कामना के साथ खुश करने की कोशिश करती हैं कि उनका भी आने वाला कल और अगला जन्म बेहतर हो और उन्हें भी परिवार का प्यार मिले।

विधि विधान से हुई बाबा की पूजा अर्चना

नगर वधुओं के नृत्य से पहले बाबा मसाननाथ की पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना हुई। बाबा महाश्‍मशान के देव हैं इसलिए उन्हें फल-फूल के साथ ही शराब का भोग भी लगाया गया। बाबा की पूजा के बाद नगर वधुओं का नृत्य शुरू हुआ, पहले बाबा के सामने और उसके बाद शमशान घाट पर।

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राजा मान सिंह ने शुरू कराई परंपरा

एक तरह चिताओं की लपटों से चिंगारियों की आवाज़ उठ रही थी तो दूसरी तरफ घुंगरुओं की गूंज। इस महा शमशान पर नवरात्रि में नगर वधुओं के नृत्य की यह परंपरा सैकड़ों वर्षों पुरानी है। बाबा मसाननाथ मंदिर समिति के सदस्य और कार्यक्रम के आयोजक गुलशन कपूर के मुक़ाबिक मुग़ल बादशाह अकबर के समय में अज़मेर के राजा मान सिंह ने इसे शुरू की थी। उस वक़्त बाबा मशाननाथ के मंदिर में नृत्य और संगीत के लिए कलाकारों की जरुरत थी, मगर शमशान घाट होने के चलते नगर वधुऐं ही इसके लिए तैयार हुईं और तभी से यह परंपरा चली आ रही है।

भगवान को अर्पित करती हैं अपनी श्रद्धा

400 वर्षों से ज्यादा पुरानी यह परंपरा तभी से चली आ रही है। आज के आधुनिक समाज में लोगों को नगर वधुओं का इस तरह मंदिर और शमशान घाट पर नाचना भले ही अजीब लगे, पर उनके लिए यही भगवान को अपनी श्रद्धा अर्पित करने का जरिया है, जिसके पुण्य से शायद उनका आने वाला कल या फिर अगला जन्म सुधर सके। वाराणसी की इस अनूठी परंपरा को सकुशल संपन्‍न कराने के लिए वाराणसी पुलिस प्रशासन की ओर से पर्याप्‍त सुरक्षा की व्‍यवस्‍था की गयी थी।

(live VNS)

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