ग्लोबल वार्मिग का खतरा बढ़ा रहा है मांसाहार और बीफ का सेवन, जानें कैसे

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पृथ्वी में मौजूद वातावरण ने इंसानो को बहुत कुछ दिया है जिसका उपयोग और सेवन करके हम एक आरामदायक और स्थिर जीवन यापन कर सकते हैं। जैविक विविधता और भागौलिक असमानता से परिपूर्ण हमारी पृथ्वी पर अनेकों जीव जंतुओं का वास है जिनके मौजूद होने से पर्यावरण के एक समावेशी विकास का रास्ता दिखता है।

अगर हम सभी संसाधनों का उपयोग एक सही दिशा में सही उद्देश्य के लिए करें तो खाने पीने की कभी कोई कमी नहीं होगी जिससे हम एक आरामदायक और तंदुरुस्त जिंदगी जी सकते हैं लेकिन वहीं यदि प्रकृति के साथ खिलवाड़ या फिर इसका शोषण करेंगे तो जवाब में प्रकृति भी हमारे ऊपर कहर बरपाएगी। बतौर उदाहरण आप लगातार समय – समय पर आ रही प्राकृतिक आपदाओं को ले सकते हैं। यहां चिंता का विषय है कि आजकल हमारा खान-पान (Diet) प्रकृति के अनुकूल नहीं है जिसके कारण पिछले कुछ दशकों से हम लोग नॉन वेज फूड और बीफ पर टूट रहे हैं और इसकी खपत हमारी प्रकृति को ज्यादा नुकसान पहुंचा रही हैं।

बीफ और मीट की खपत बन रही है ग्लोबल वार्मिंग का बड़ा कारक…

-एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि नॉन वेज फूड वेज फूड की तुलना में 59 प्रतिशत ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भागीदार है। मतलब नॉन वेज फूड पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक है, हमारे वातावरण को जो गैस गर्म करने के लिए जिम्मेदार है, उसे ग्रीनहाउस गैस कहा जाता हैं। और ग्रीन हाउस गैसें ही वो सबसे बड़ा कारक है जिससे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न ही नहीं हो रही बल्कि और ज्यादा बढ़ भी रही है।

-जानकारी के लिए आपको बता दें कि यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के शोधकर्ताओं ने अपने एक स्टडी के आधार पर दावा किया है कि हम जितना हेल्दी और पोषक तत्वों से भरपूर खाना खाएंगे, उतना ही हम पर्यावरण की रक्षा कर पाएंगे जबकि नॉन वेज खाने से ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होगा। अध्ययन में कहा गया है कि फूड प्रोडक्शन ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का बहुत बड़ा स्रोत है क्योंकि विश्व में लगभग एक तिहाई ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन फूड प्रोडक्शन के कारण ही होता है। इससे पहले के अध्ययन में भी कहा गया था कि पर्यावरण अनुकूल वही भोजन सही है जो प्रोसेस्ड कम हो, यानि कि जिसमें एनर्जी का घनत्व कम हो और जो पोषक तत्वों से भरपूर हो साथ ही साथ इसके अलावा 212 वयस्कों की डाइट पर भी विश्लेषण किया गया।

कार्बन उत्सर्जन को भी बढ़ाता है मांसाहार, जानें कैसे…

-एफएओ की रिपोर्ट में पाया गया कि मांस का वर्तमान उत्पादन स्तर 36 अरब टन कार्बन उत्सर्जन में ग्रीनहाउस गैसों के 14 से 22 प्रतिशत के बीच योगदान देता है जो दुनिया हर साल पैदा करती है। यह भी पता चला है कि किसी के दोपहर के भोजन के लिए आधा पाउंड हैमबर्गर का उत्पादन मांस के दो डेक के आकार का मांस वायुमंडल में उतनी ही ग्रीनहाउस गैस छोड़ता है जितना कि 3,000 पाउंड की कार को लगभग 10 मील चलाने पर छोड़ती है।

-एक तथ्य यह भी है कि बीफ (गोमांस) उत्पादन ग्रीनहाउस गैसों को उत्पन्न करता है जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए 13 गुना से अधिक योगदान देता है जितना कि चिकन उत्पादन से निकलने वाली गैसें कर पाती हैं। दुनिया भर में मांसाहार और बीफ की खपत तेजी से बढ़ रही है जिसका कारण है कि आबादी बढ़ने के साथ-साथ लोग अधिक मांस खा रहे हैं। पर्यावरण पर सबसे ज्यादा असर बीफ के उत्पादन से पड़ता है। हर एक किलो बीफ उत्पादन से 99.48 किलो कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन होता है। जबकि, भेड़ का मांस और मटन के उत्पादन के दौरान 39.72 किलो गैस उत्सर्जन होता है।

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रिपोर्ट :- विकास चौबे

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