नोबेल विजेता का दो टूक : जरूरी नहीं कि चीन से निकलने वाली कंपनियां भारत ही आएं
चीन ने मुद्रा का अवमूल्यन किया तो चीनी सामान सर्वाधिक सस्ता होगा
कोलकाता : नोबेल पुरस्कार Nobel Prize विजेता और अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी का दो टूक कहना है कि यह जरूरी नहीं कि चीन से निकलने वाली कंपनियां भारत ही आयें।
Nobel Prize विजेता का कहना है कि अगर चीन ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर दिया तो वहां का सामान सस्ता हो जायेगा, फिर क्या होगा? सभी देश उस ओर ही भागेंगे क्योंकि चीनी सामान विश्व मेें सर्वाधिक सस्ता हो जायेगा। वहां श्रम पहले से ही सस्ता है।
जरूरी नहीं है कि फायदा भारत को होगा
Nobel Prize विजेता अभिजीत ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के कारण अगर कंपनियां चीन से बाहर निकलती हैं, तो जरूरी नहीं है कि इसका फायदा भारत को होगा।
सोमवार शाम एक बांग्ला न्यूज चैनल से बातचीत में Nobel Prize विजेता ने कहा कि सभी लोग चीन को प्रकोप के लिए दोषी ठहरा रहे हैं, क्योंकि ये वायरस वहीं से फैला। लोग यहां तक कह रहे हैं कि इससे भारत को फायदा होगा क्योंकि कारोबार चीन से हटकर भारत में आएंगे। लेकिन यह हकीकत में होने वाला है यह कहना मुश्किल है।
चीन कर सकता है मुद्रा का अवमूल्यन
Nobel Prize विजेता ने कहा कि क्या होगा अगर चीन अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करता है। उस दशा में चीनी उत्पाद सस्ते हो जाएंगे और लोग आगे भी उनके उत्पादों को खरीदना जारी रखेंगे। बनर्जी पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से राज्य में कोरोना का मुकाबला करने के लिए बनाए गए वैश्विक सलाहकार बोर्ड के सदस्य भी हैं।
राहत पैकेज के लिए केंद्र की ओर से खर्च की जा रही धनराशि और जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के अनुपात के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि अमेरिका, ब्रिटेन और जापान जैसे देश अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का बड़ा हिस्सा खर्च कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत ने अपने जीडीपी का एक प्रतिशत से भी कम 1.70 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई है।
जीडीपी के अनुपात में अधिक खर्च करना होगा
हमें जीडीपी के अनुपात में अधिक खर्च करना चाहिए। कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप के बीच केंद्र सरकार ने गरीबों की कठिनाई को कम करने के लिए 1.70 लाख करोड़ रुपये से अधिक के पैकेज की घोषणा की है।
आरबीआई ने मार्च के आखिर में लोन की किस्तों पर मोराटोरियम दिया है, जो इस संकटकाल में काफी मददगार है। यदि आपके पास पैसे की कमी है तो इस मोराटोरियम से आपको काफी राहत मिलेगी क्योंकि बैंक इसे एक विकल्प के रूप में दे रहे हैं।
अर्थव्यवस्था आम लोग चलाते हैं, अमीर नहीं
Nobel Prize विजेता बनर्जी ने कहा कि मुख्य समस्या यह है कि देश के लोगों के पास पर्याप्त खरीद क्षमता नहीं है। उन्होंने कहा कि गरीब लोगों के पास अब पैसे नहीं है और उनके पास शायद ही खरीदारी करने की कोई क्षमता है इसलिए कोई मांग भी नहीं है।
सरकार को आम लोगों के हाथों में पैसा देना चाहिए क्योंकि वे अर्थव्यवस्था चलाते हैं, न कि अमीर। उन्होंने कहा कि तीन से छह महीने के दौरान गरीब लोगों के हाथों में पैसा दिया जाना चाहिए और यदि वे इसे खर्च नहीं करते हैं, तो भी कोई समस्या नहीं है। बनर्जी का मानना है कि प्रवासी श्रमिकों की देखभाल करना केंद्र की जिम्मेदारी है।
आपातकालीन राशन कार्ड की जरूरत
Nobel Prize विजेता ने कहा कि हमने उनकी समस्याओं के बारे में नहीं सोचा। उनकी जेब में पैसा नहीं है और उनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं है। अर्थशास्त्री ने कहा कि तीन या छह महीने के लिए सभी को आपातकालीन राशन कार्ड जारी करने की जरूरत है। बनर्जी ने कहा कि यह केंद्र की जिम्मेदारी है क्योंकि प्रवासी श्रमिक विभिन्न राज्यों से होकर अपने घरों तक पहुंचते हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने लोगों को राहत देने के लिए कुछ कदम उठाए हैं, जिसमें ऋण अदायगी पर रोक शामिल है।
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