अगर आप चुप हैं तो आपको शिकायत करने का हक नहीं है : निहलानी

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सामाजिक-राजनीतिक विषय पर ‘अर्ध-सत्य’ एवं ‘आक्रोश’ जैसी फिल्म बनाने वाले अनुभवी फिल्मकार गोविंद निहलानी ने एक बार फिर अपनी मराठी फिल्म ‘टी एनी इतार’ से पूछा है कि क्या लोगों को अपनी बहस के दौरान हिंसा के विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए या नहीं। 77 वर्षीय फिल्म निर्माता ने कहा कि वास्तविक जीवन में जो लोग चुप रहते हैं, उन्हें शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं है।

दुर्भाग्य है कि हालात आज भी वैसे ही हैं बल्कि…

जुलाई में रिलीज हुई ‘टी एनी इतार'(वह और अन्य) में सोनाली कुलकर्णी ने मुख्य भूमिका निभाई है। यह फिल्म 1980 में एक मेट्रो शहर के उपनगरीय ट्रेन में घटी सच्ची घटना पर आधारित मंजुला पद्मनाथन के नाटक ‘लाइट्स आउट’ से प्रेरित है।निहलानी ने कहा कि यह फिल्म भले ही 37 वर्ष पहले की एक सच्ची घटना और नाटक पर आधारित है लेकिन दुर्भाग्य है कि हालात आज भी वैसे ही हैं बल्कि सच तो यह है कि यह और खराब हुई है।

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उन्होंने कहा, “बड़े शहरों में जैसे ही जनसंख्या बढ़ती है, असामाजिक तत्व बढ़ते हैं, पुलिस और अधिक कमजोर एवं प्रभावहीन होती है, भ्रष्टाचार बढ़ता जाता है। इन सब के बावजूद भी सच्चाई यह है कि चुप रहने का कोई औचित्य नहीं है।”निहलानी ने एलआईएफएफटी इंडिया फिल्मोत्सव 2017 से इतर मीडिया से कहा, “किसी को भी कहना होगा कि हां, अगर आप कुछ गलत उजागर करते हैं तो मैं आपका समर्थन करूंगा। अगर आप कुछ सबूत चाहेंगे तो मैं आपको दूंगा।”टी एनी इतर’ इस समारोह की समापन फिल्म थी।

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छह बार राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके और पद्म श्री से सम्मानित निहलानी ने कहा,”मुद्दा यह है कि आपको लोगों पर भरोसा करना पड़ेगा, आपको आगे बढ़कर कहना पड़ेगा कि हां मैं तुम्हें सबूत दूंगा और अगर कोई यह कहता है कि इसे बंद करो, नहीं तो मैं तुम्हें मार दूंगा तो क्या इसके बावजूद भी वह आगे बढ़ेगी और अपने वादे को पूरा करेगी? यह आज का समय है, सवाल है।”निहलानी कि फिल्म इस सामान्य मानसिकता पर प्रकाश डालती है कि कुछ भी गलत हो रहा हो तो उधर से अपने आंख-कान बंद कर लो। उन्होंने कहा कि इन सब का समाधान ‘साहस’ में है।

..तो हमें शिकायत भी नहीं करना चाहिए

उन्होंने कहा, “इस समय कोई भी आसान उपाय नहीं है। यह पूरी तरह से साहस पर निर्भर करता है। पुलिस के पास जाओ, कुछ करो। और, अंत में आपके पास सिद्धांत के रूप में साहस होना चाहिए। सामाधान के बारे में नहीं पूछें, सभी प्रकार का समाधान है। कानून मौजूद है, सरकार और पुलिस ने इसे मुहैया कराया है। अगर हमारे पास साहस नहीं है तो हमें शिकायत भी नहीं करना चाहिए।”

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यह पूछे जाने पर कि क्या पुलिस पर वास्तविक दुनिया में विश्वास किया जा सकता है, जैसा कि आपकी फिल्म ही बता रही है कि पुलिस अफसर घटना को छुपाने की कोशिश करते हैं। निहलानी ने अपने पुराने शब्द पर विश्वास जताते हुए एक बार फिर कहा ‘साहस’।

अगर आप चुप रहेंगे तो आप भुगतेंगे

उन्होंने कहा, “बिलकुल..इसके बावजूद भी फिल्म का पात्र पुलिस के पास जाता है और अपना कर्तव्य निभाता है। इसलिए स्तर-स्तर पर जटिलता है। वास्तव में यह सब कुछ लोगों के साहस पर निर्भर करता है। वही एक विकल्प है। चुप रहना निश्चय ही कोई कोई उपाय नहीं है। अगर आप चुप रहेंगे तो आप भुगतेंगे, आप शिकायत करने के अधिकार को खो देंगे। यह हमेशा से समस्या रही है।”उन्होंने कहा कि यह रवैया जिसमें लोग यह सोचते हैं कि सरकार कुछ नहीं करती है और तब हम चुप रहतें हैं और कुछ नहीं कहते हैं और कुछ नहीं करते हैं, आधारहीन और गलत है।

…तो मैं फिल्म का अंत सुखद कर दूंगा

उन्होंने जोर देते हुए कहा, “शिकायत कभी बंद नहीं करनी चाहिए। इसको तब तक कीजिए जबतक इसका सामाधान नहीं हो जाता।”उन्होंने जेसिका लाल हत्याकांड की याद दिलाते हुए कहा कि इस मामले में शिकायत तब तक की गई थी, जब तक न्याय नहीं मिल गया।उन्होंने कहा कि जहां तक ‘टी एनी इतार’ की बात है तो यह आसाना से पचने वाली फिल्म नहीं है।उन्होंने कहा, “फिल्म संगीत या खुशी के साथ समाप्त नहीं होती। क्योंकि वास्तव में इसका अस्तित्व नहीं होता है। अगर मुझे कोई रोमांटिक-कामेडी बनानी हो, तो मैं फिल्म का अंत सुखद कर दूंगा।”

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