गरीब बच्चों की जिंदगी में शिक्षा की अलख जगा रहे नईम

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दिल्ली देश की राजधानी है और देश की बागडोर जिनके हाथों में जनता ने थमा रखी है वो भी यहीं बैठते हैं, फिर ऐसा क्यों है कि इसी दिल्ली में लोगों के जीने की मूलभूत सुविधाएं और बच्चों को उचित शिक्षा क्यों नहीं मिलती है।  सरकार लाख दावे करती है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। जब आप पुरानी दिल्ली में कदम रखेंगे तो हकीकत अपने आप आंखों के सामने आ जाएगी। बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं है तो बीमारों के लिए अस्पताल नहीं हैं। जो काम सरकार को करना चाहिए वो काम गैर सरकारी संस्थाएं कर रही हैं।

गैर-सरकारी संस्थाएं कर रही हैं पहल

दरअसल पुरानी दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके में एक गैर सरकारी संस्था बच्चों के पढ़ाई का जिम्मा उठा रखी हैं। दिल्ली यूथ वेलफेयर एसोसिएशन के प्रेसीडेंट नईम बच्चों को शिक्षित करने सराहनीय काम कर रहे हैं। कभी-कभी वो खुद ही टीचर बन जाते हैं। अभी तक कुछ गुने चुने बच्चों को पढ़ाते थे लेकिन अब इलाके में चल रहे रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने करीब एक जार से अधिक स्कूल छोड़ चुके बच्चों को दोबारा पढ़ाने का संकल्प किया है।

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आर्थिक तंगी की वजह से नहीं भेजते स्कूल

पुरानी दिल्ली के इस इलाके में मजदूर वर्ग के लोगों की बस्तियां हैं जहां पर शिक्षा की कोई किरण दूर-दूर तक नजर नहीं आती है, ऐसे में दिल्ली यूथ वेलफेयर एसोसिएशन ने वहां के बच्चों को पढ़ाने और उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए प्रतिबद्ध हो गई है।

पढ़ने का खर्च उठाती हैं संस्थाएं

सामाजिक कार्यकर्ता तुबा खान बताती हैं कि बच्चों से पहले उनके पैरेंट्स को जागरुक करने की जरुरत होती है क्योंकि आर्थिक तंगी की वजह से मां-बाप बच्चों को पढ़ने के बजाय काम पर भेजना पसंद करती हैं। साथ ही बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसों की जरुरत होती है जिसकी वजह से ये लोग बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं। एसोसिएशन बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाती है। जामा मस्जिद रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय का कहना है कि अब तक करीब 60 बच्चों ता एडमिशन स्कूलों में कराया जा चुका है।

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