17 साल से ये ट्रस्ट लोगों को दे रहा नई जिंदगी
कभी-कभी हमें कुछ घटनाएं ऐसा झकझोर देती हैं जिसकी हम कल्पना भी नहीं करते हैं। इंसानों के साथ कुछ घटनाएं ऐसी घटित होती है जिनसे सबक लेकर वो कुछ ऐसा करने लग जाता है जिससे आगे चलकर किसी और के साथ उस तरह की घटनाएं न हों। एक ऐसी ही घटना साल 2011 में 11 मई की रात को घटी जिसने एक इंसान को अंदर से इतना तोड़ दिया कि उसने फैसला किया कि अब से किसी इंसान को खून की वजह से मौत के मुंह में नहीं जाने दूंगा।
साल 2011 में घटी थी घटना
दरअसल, साल 2011 में होशियारपुर-जालंधर रोड पर हरजीत सिंह बाइक से जा रहे थे तभी ट्रक की चपेट में आ जाने से बुरी तरह से घायल हो गए थे। हरजीत को अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां पर उन्हें खून की जरुरत पड़ी वो भी ओ पॉजिटिव, लेकिन खून नहीं मिल हा था।
संस्था ने उपलब्ध कराया ब्लड
जब इसकी सूचना एक चैरिटबल ट्रस्ट के मुखिया भूपिंदर सिंह पाहवा को मिली ती उन्होंने तुरंत अपनी संस्था के द्वारा खून की व्यवस्था कराई और हरजीत की जान बच गई। ये ट्रस्ट पिछले 17 साल से जरुरतमंदों को खून देकर नई जिंदगीं दे रहा है।
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65 हजार लोगों की मिल चुकी है नई जिंदगी
इस संस्था ने अबतक करीब 65 हजार लोगों को ब्लड देकर उनकी जान बचा चुकी है। 6 हजार लोगों की सड़क दुर्घटना में घायल होने वाले लोगों को समय पर रक्त मिलने से बचाया जा चुका है। इस संस्था ने थैलेसीमिया से पीड़ित 34 बच्चों को गोद ले रखा है और 40 कैसर के मरीजों को भी गोद ले रखा है।
पड़ोसी राज्यों से भी आते हैं लोग
ये संस्था सिर्फ पंजाब के राज्य के लोगों को ही मदद नहीं करती है बल्कि पड़ोसी राज्यों से भी सूचना मिलने पर लोगों को खून उपलब्ध कराती है। संस्था केइस काम से अब और भी लोग जुड़ रहे हैं और करीब अबतक 95 हजार लोगों ने इस संस्था को रक्तदान किया है।संस्था की उपलब्धियों को देखते हुए इसके पूर्व प्रधान स्व. भूपिंदर सिंह को पंजाब सरकार दो बार सम्मानित कर चुकी है।
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ऐसे हुई थी संस्था की शुरूआत
साल 1981 में महंत तारा सिंह के आशीर्वाद से एक चैरिटेबल डिस्पेंसरी शुरू की गई थी। उसी समय सड़क हादसे में घयाल व्यक्तियों को खून न मिलने से मौत हो गई जिसकी खबर सुनकर भूपिंदर सिंह को बहुत धक्का लगा और उन्होंने एक ब्लड बैंक की स्थापना साल 2000 में स्थापना कर दी गई।
18 यूनिट से शुरू हुआ था ब्लड बैंक
बैंक की शुरूआत 18 यूनिट ब्लड से शुरू हुई थी जहां आज के समय में 800 यूनिट ब्लड रखने की क्षमता है। साल 2017 में इसके संस्थापक भूपिंदर सिंह इस दुनिया से चले गए,लेकिन उनके द्वारा शुरू किया गया ये मिशन अब भी उसी तेजी से काम कर रहा है।
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