आईपीएस निशांत ‘मेरी पाठशाला’ से जला रहे शिक्षा की अलख

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पुलिस का नाम सुनत ही लोगों के जहन में जो तस्वीर उभर कर सामने आती है वो एक कड़क स्वभाव, लोगों से बात करते हुए गाली देना मारने पीटने की बात करना जैसी चीजें ही होती हैं। लेकिन क्या आप को पता है कि इन पुलिस वालों में कुछ ऐसे चेहरे भी होते हैं जो इन सब से बहुत ही अलग होते हैं जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। पुलिस वालों में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो जनता के साथ बहुत ही अच्छे से पेश आते हैं और लोगों की समस्याओं को समझते हैं।

शिक्षा की अलख जगा रहे हैं आईपीएस निशांत

कुछ ऐसा ही चेहरा और नाम है आईपीएस निशांत कुमार तिवारी  का। निशांत बिहार के पूर्णिया के एसपी हैं। आप को जानकर हैरानी होगी कि निशांत जहां भी रहते हैं वहां पर अपने सामाजिक दायित्व को बाखूबी निभाते हैं। निशांत गांव के बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रहे हैं।

11 साल से शिक्षा के लिए चला रहे हैं मुहिम

वो और उनकी पुलिस मेरी पाठशाला नाम से अभियान चला रही है इस अभियान के तहत जब निशांत गांव-गांव जाकर बच्चों को पढ़ाते हैं और उनके परिजनों को बच्चों को पढ़ाने और स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। निशांत 2005 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। 11 सालों में निशांत जहां भी रहे हैं वहां पर उन्होंने मेरी पाठशाला के जरिए गांव के बच्चों को पढ़ाने से लेकर सामाजिक दायित्व बहुत ही जिम्मेदारी के साथ निभाते हैं।

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आईपीएस बनने से पहले अमेरिका में करते थे नौकरी

सामाजिक कार्यों में निशांत ने अब तक बहुत से ऐसे काम किए हैं जिनमें गरीब बच्चों को ठण्डी के मौसम में कंबल देते हैं तो बुजुर्गों को चस्मा बांटते हुए नजर आते हैं। साल 2016 में राजधानी पटना से सैकड़ो मील दूर एक बाढ़ ग्रस्त इलाके पूर्णिया में शिक्षा दर को अपनी मेहनत के दम पर बहुत आगे तक पहुंचा दिया। आप को बता दें कि निशांत सिविल सेवा ज्वाइन करने से पहले साफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर अमेरिका में नौकरी करते थे।

कई लोग इस मुहिम से जुड़ चुके हैं

लेकिन देश के लिए कुछ कर गुजरने के जज्बे ने उन्हें वापस अपने वतन लौट आए। मेरी पाठशाला के जरिए अब तक निशांत पूर्णिया के तमाम गांवों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। निशांत द्वारा चलाए जा रहे मेरी पाठशाला से प्रबावित होकर अब तक तमाम लोग जुड़ चुके हैं। जिसमें ऑस्ट्रेलिया के ला ट्रोब यूनिवर्सिटी के हिन्दी के प्रोफेसर इयान वुलफर्ड भी इससे जुड़ चुके हैं। अबतक निशांत मेरी पाठशाला के जरिए करीब एक हजार बच्चों का दाखिला स्कूलों में करवा चुके हैं।

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