भारत में लगभग 90 फीसदी फेफड़े के कैंसर के मामले
राजस्थान के एक छोटे से गांव धरमपुरा निवासी 43 वर्षीय धर्मपाल (परिवर्तित नाम) रंग कारखाने में काम करते थे। अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक धर्मपाल ने जीवन में कभी बीड़ी, सिगरेट या हुक्का नहीं पीया। कुछ साल पहले धर्मपाल को सीने में दर्द होने के साथ ही सांस लेने में परेशानी, खांसी के साथ ही बलगम में खून निकलने की परेशानी होने लगी।
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धर्मपाल के दोस्त ने उसे जल्द से जल्द चिकित्सक को दिखाने का सुझाव दिया। धर्मपाल भगवान महावीर कैंसर चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र पहुंचे और जांच के दौरान धर्मपाल को लंग कैंसर का होना सामने आया। धर्मपाल को अपनी बीमारी के बारे में पता चलते ही वह अंदर से टूट गया, ऐसे में डॉक्टर ने उसे विश्वास दिलाया कि उसकी बीमारी को उपचार के द्वारा पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। इसके बाद धर्मपाल लगातार पांच साल से उपचार ले रहे हैं और कैंसर मुक्त हो सकते हैं।
भारत में 70 हजार मौतें होती हैं
धर्मपाल का कैंसर व्यावसायिक कैंसर है। रंगीन उत्पादों में उपयोग किए जाने वाले रसायन पेंट इंडस्ट्री श्रमिकों के बीच आनुवांशिक क्षति और फेफड़ों के कैंसर के बढ़ते जोखिम का कारण है।फेफड़ों का कैंसर दुनिया भर में सामने आने वाला सबसे आम कैंसर है। यह कैंसर संबंधी मृत्युदर के योगदानकर्ता भी है, जिसके परिणामस्वरूप भारत में 70 हजार मौतें होती हैं। स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और मौखिक गुहा कैंसर के बाद फेफड़ों का कैंसर चौथे स्थान पर आता है।
पुरुषों में होने वाले कैंसर में दूसरे और महिलाओं में छठे स्थान पर
फेफड़ों का कैंसर पुरुषों में होने वाले कैंसर में दूसरे और महिलाओं में छठे स्थान पर है। कैंसर की घटना के संदर्भ में भारत में लगभग 90 फीसदी फेफड़े के कैंसर के मामले सिगरेट, बीड़ी या हुक्का से जुड़े हैं। अन्य 10 फीसदी लोगों में इस रोग का प्रमुख कारण पर्यावरण में कैंसरकारी तत्वों की मौजूदगी है।
व्यावसायिक कैंसर दुनिया भर में संबंधित मौत का प्रमुख कारण
जहां फेफड़ों के कैंसर के लिए धूम्रपान सबसे बड़ा कारक है, वहीं दूसरी ओर व्यावसायिक कैंसर भी कैंसर का एक कारण है। जब कोई व्यक्ति कार्यस्थल पर कैंसर पैदा करने वाले पदार्थ के संपर्क में आता है तो वह व्यावसायिक कैंसर का कारण बनता है। यह अनुमान लगाया गया है कि व्यावसायिक कैंसर दुनिया भर में संबंधित मौत का प्रमुख कारण है।
19 फीसदी पर्यावरण के लिए जिम्मेदार
वैश्विक स्तर पर, सभी कैंसर का 19 फीसदी पर्यावरण के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिसमें कार्यस्थल शामिल है। इस बीमारी के अप्रकट प्रकृति की वजह से व्यावसायिक कैंसर के लिए सही आंकड़ा निर्धारित करना मुश्किल है।
इन लक्षणों में से किसी भी लक्षण के सामने आने पर अपने चिकित्सक से परामर्श लें :
* खांसी : लगातार खांसी का रहना, लंबे समय चलने वाली खांसी में समय के साथ कुछ परिवर्तन का आना।
* रक्त खांसी : खांसी के साथ खुन या भूरे रंग का थूक आने पर चिकित्सक से परामर्श लें
* सांस लेने पर कठिनाई : सांस लेने में तकलिफ होना, घबराहट महसूस हो या श्वास लेते समय एक अलग आवाज का आना
* भूख ना लगना : कई कैंसर भूख में बदलाव लाता है, जिससे वजह घटने लगता है
* थकान : कमजोर या अत्यधिक थका हुआ महसूस करना आम स्थिति है;
* बार बार संक्रमण का होना : बार-बार संक्रमण का होना जैसे श्वास नली में सूजन या निमोनिया, फेफड़े के कैंसर के लक्षणों में से एक हो सकता है।
* हड्डी में दर्द
* चेहरा, हाथ या गर्दन में सूजन
* सिरदर्द, चक्कर आना या अंग का कमजोर या सुन्न हो जाना।
* पीलिया
* गर्दन या हंसली क्षेत्र गांठ होना।
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