कार सेवकों की आंधी में उड़ गया था मुलायम का दावा “परिंदा भी पर मार नहीं सकेगा”
“हरि अनंत हरि कथा अनंता”….सचमुच, चार सौ 95 वर्ष का साक्षी रक्तरंजित इतिहास चीख चीख कर बताता है कि अपने आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जन्म स्थान के लिए हजारों भक्तों को अपने प्राणों की आहुति देने पड़ी थी. आततायी मुगल आक्रान्ता बाबर के निर्देश पर अयोध्या के सूबेदार मीर बाकी ने श्रीराम जन्मस्थान पर बने मंदिर को तोड़ कर उसके भग्नावशेष पर मस्जिद तीमार कर दी थी. बीती सदी में विश्व हिंदू परिषद ने इस कलंक को मिटा कर जन्मस्थान पाने के लिए जो आन्दोलन छेड़ा था उसकी परिणति 2019 में सुप्रीम कोर्ट के हिन्दुओ के पक्ष में आदेश से कहीं जाकर हुई.
Also Read : Varanasi: रामलला की स्वर्ण चरणपादुका संग महंत पुरी अयोध्या हुए रवाना
विपक्षी राजनीतिक दल अक्सर कटाक्ष किया करते थे उस नारे पर – “राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे” पर तारीख नही बताएंगे. रामनगरी में भगवान का बेमिसाल भव्य मंदिर अपने निर्माण के न सिर्फ अंतिम चरण में है बल्कि असकी प्राण प्रतिष्ठा के लिए 22 जनवरी की तारीख भी सुनिश्चित हो चुकी है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में इतिहास का सृजन करने वाले उस दिन रामलला, जो 31 वर्षों से तिरपाल के नीचे थे, अपने सही स्थान पर विराजमान होंगे और देश उस दिन एक बार फिर दीवाली मनाएगा. इस समय सम्पूर्ण देश राममय हो चुका है. दरअसल यह सिर्फ प्राण प्रतिष्ठा नहीं बल्कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का अभ्युदय है, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के आध्यात्मिक दर्शन और चेतना का नवविहान है और है सनातन हिन्दू जागरण के उत्कर्ष का उद्घोष.
सवाल यह है कि आखिर इस शुभ दिन को लाने का श्रेय किसको है? जवाब बहुत आसान है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुशांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद और भारतीय जनता पार्टी को ही इसका निःसंकोच श्रेय दिया जा सकता है. भाजपा को जहां इसके लिए अपनी राज्य सरकारों की कुर्बानी देनी पड़ी वहीं वीएचपी और बजरंग दल से जुड़े रामभक्तों का शरीर गोलियों से छलनी किया गया था. इसकी टीस आज भी इस नाचीज को है.
आइए बताता हूं तफसील से कि सन् 1990 में जब अयोध्या के राम मंदिर को लेकर सनातनधर्मियों की भावना का उफान चरम पर पहुंच चुका था. 30 अक्तूबर को अयोध्या में जब कारसेवा का एलान किया गया तब उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार थी. सरकार ने कारसेवा रोकने लिए जो भी धतकरम किया जा सकता था वह सब किया. “परिन्दा भी पर नही मार सकता” , का दावा किस कदर बेमानी साबित हुआ इसे बताने के पहले पाठकों, खास तौर से युवा वर्ग को इसकी पृष्ठभूमि जानने की जरूरत है.
मैं उन दिनों बतौर राष्ट्रीय प्रभारी (खेल) दैनिक जागरण वाराणसी में कार्यरत था. बात 26 अक्तूबर 1990 की है. शाम पांच बजे के आसपास जागरण के अधिष्ठाता और प्रधान संपादक नरेन्द्र मोहन जी(स्मृतिशेष) का, जो कालान्तर में भाजपा के राज्यसभा सांसद भी हुए, अखबार के तत्कालीन मुख्यालय कानपुर से फोन आया. पदम जी आपको कारसेवा की कवरेज के लिए नेतृत्व करना है. टीम चुनिए और यथा शीघ्र अयोध्या प्रस्थान कीजिए. मैं कुछ जवाब देता उसके पहले ही मोहन बाबू ने कहा, आज सुबह आगरा में दैनिक जागरण के बंडल तक नहीं खुले हैं. विनय कटियार के अतिउत्तेजक बयान को आज अखबार ने पहले पन्ने पर दूसरी लीड जो बना दिया था. आपको कवरेज को लेकर पूरी छूट दी जाती है.
अगली सुबह ही मैं नगर संवाददाता आशीष बागची और छायाकार विजय सिंह(स्मृति शेष) के साथ कार से लखनऊ रवाना हो गया. यूपी सरकार ने एक सप्ताह पूर्व यानी 23 अक्तूबर से ही अयोध्या की ओर जाने वाली सभी सड़कों पर आवागमन रोक दिया था. यही कारण था कि पूरे मार्ग में हमे कोई एक भी वाहन आता या जाता नहीं मिला. शाम को हम सीधे लखनऊ स्थित सूचना निदेशक प्रभात चतुर्वेदी के कार्यालय पहुंचे. वहां हम सभी के प्रेस पास बने. अगली सुबह हम निकल पड़े फैजाबाद के लिए. मार्ग में फिर वही आलम था, न कोई वाहन सामने से आता दिखा न किसी ने हमारी कार को पीछे से ओवरटेक किया.
खैर, हमने फैजाबाद के एकमात्र स्तरीय होटल में चेक इन किया. 28 और 29 अक्तूबर को अयोध्या का चक्रमण करने के बाद पाया कि कार सेवा लगभग असंभव है. जन्मभूमि की ओर जाने वाले सभी रास्ते पुलिस- प्रशासन ने सील कर दिए थे. जितने भी मकान थे उनके खिड़की दरवाजे बंद और बाहर सैकड़ों की तादात मे तैनात पुलिस- पीएसी के जवान अहर्निश गश्त करते नजर आए. मौजूद देसी-विदेशी मीडिया का भी यही मानना था कि 30 अक्तूबर को यूपी सरकार की मुस्तैदी से रामभक्त कुछ नहीं कर पाएंगे. लेकिन प्रारब्ध कुछ और ही कह रहा था. जानिए क्या हुआ 30 अक्तूबर को.
हमारी टीम 30 अक्तूबर को सुबह नौ बजे हनुमानगढ़ी चौराहे पर डट गयी. इस प्रत्याशा में कि शायद दो चार रामभक्त प्रतीकात्मक कारसेवा के लिए किसी गली कूचे से निकल आएं. चौराहे पर कारसेवकों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस- प्रशासन ने रोडवेज की सैकड़ो बसें खड़ी कर रखी थीं. लगभग दस बजे 40-50 कारसेवकों का एक जत्था जय श्रीराम के नारे लगाते हुए गली से निकल कर सड़क पर आया. बागची ने हैरत से देखते हुए हमसे कहा, ” पदम जी, ये सभी तो अपने बनारस के हैं. मैने देखा कि वीएचपी के युवा कार्यकर्ता उपेन्द्र विनायक सहस्रबुद्धे और राजू पाठक उस जत्थे का नेतृत्व कर रहे थे. सभी ने बिना किसी हीलाहवाली के खामोशी से गिरफ्तारी दे दी और फिर बस मे बैठ गए. पुलिस ने चैन की सांस ली. लेकिन यह सर्वत्र शांति थी तूफान के पहले की. दस मिनट बाद बस मे बैठे कारसेवकों मे दस बारह की संख्या में नीचे उतरे. सभी के हाथ मे सूआ था. वे बस के टायरों पर सूआ घोंपने लगे और देखते ही देखते टायरों से हवा निकलने लगी और जब तक पुलिस कुछ समझ पाती मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की रणनीति फुस्स हो गयी और परिंदा पर नहीं मार सकता के दावे को एक छोटे से सूए ने घता बना कर रख दिया. बसें न आगे जा सकती थीं और न पीछे. अचानक टिड्डी दल की तरह कारसेवकों का हुजूम हनुमानगढ़ी होते हुए जन्मस्थान की ओर चल पड़ा. इस बीच न जाने किधर से एक जत्थे की अगुवाई करते हुऊ वीएचपी के उपाध्यक्ष उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी श्रीचंद दीक्षित प्रकट हो गये. हम भी उनके साथ हो लिए. तोड़ दिए गए राम जन्मभूमि मंदिर के ताले. हजारों की संख्या में रामभक्त मंदिर के अंदर घुस गए. सैकड़ों की तादात में कारसेवक विवादित ढांचे की गुंबद पर चढ़ गए. मंदिर के भीतर तो कारसेवा दो घंटे तक ही हुई मगर पुलिस और कारसेवकों के बीच नौ घंटों तक गोरिल्ला वार की स्थिति बनी रही. गुंबद से गिरने और पुलिस की गोली से 11 रामभक्तों को प्राणों की आहुति देने पड़ी और सैकड़ो घायल हो गए.