B’day Special : राजनीति के पटल पर मुलायम का सियासी सफर

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नेता जी कहें, सपा मुखिया कहें या धरती पुत्र कहें ऐसे अनगिनत नाम वाले समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव का आज जन्मदिन है। आज मुलायम सिंह यादव अपना 80वां जन्मदिन मना रहे हैं। आइए इस मौके पर आपको बताते हैं नेताजी के जीवन के धूप छांव की कहानी…

वर्तमान भारतीय राजनीति में मुलायम सिंह यादव से बड़ी कोई राजनैतिक शख्सियत नहीं है।
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के बाद यदि किसी को वर्तमान समय में “नेताजी” नाम से सम्बोधित किया जाता है तो वे मुलायम सिंह यादव ही हैं।

नेताजी नाम से सम्बोधन आजाद हिन्द सेना के संस्थापक सुभाष बाबू को उनकी क्रांतिकारी छवि, लड़ाकू प्रवृत्ति और अद्भुत नेतृत्व क्षमता के कारण मिला तो समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव को भी नेताजी की उपाधि कुछ ऐसे ही लड़ाकू, अक्खड़, सफल नेतृत्वकर्ता गुणों के कारण प्राप्त है।

नेताजी मुलायम सिंह यादव का अभ्युदय तो 1967 में विधायक बनने के साथ ही हो गया था लेकिन निखार 1977 के बाद आना शुरू हुआ जो 1989 में पूरे शबाब पर आ गया।

1977 में सहकारिता मंत्री के रूप में सहकारिता आंदोलन में अमिट छाप छोड़ने के कारण नेताजी की गणना उत्तर प्रदेश के जुझारू नेताओं के रूप में होने लगी थी।

1984 आते-आते नेताजी उत्तर प्रदेश की राजनीति के तत्कालीन सर्वश्रेष्ठ राजनेता चौधरी चरण सिंह के अति निकटस्थ और विश्वस्त लोगों की सूची में शामिल हो चुके थे।

चौधरी ने सरेआम मुलायम सिंह यादव को अपना उत्तराधिकारी और राजनैतिक वारिस घोषित कर दिया था। उन्होंने नेताजी को अपना दत्तक पुत्र मानकर अपनी सारी राजनैतिक जमीन उन्हें सौंप दी थी।

किसानों के लिए संघर्ष करने, अन्याय के समक्ष न झुकने व हर जुल्म-ज्यादती के विरुद्ध डटकर खड़े रहने की खूबियों ने चौधरी को इतना प्रभावित किया कि वे मुलायम सिंह को यूपी का नेतृत्व सौंप डाले।

चौधरी साहब के सपनों को मूर्त रूप देने के लिए संघर्षरत था

नेताजी ने भी चौधरी के सपनो को कभी धूमिल नहीं किया। उन्होंने संघर्ष को ही ओढ़ना-बिछौना बनाकर सदैव संघर्ष किया। किसानों की पीड़ा को अपनी पीड़ा माना।1988 का दौर जब चौधरी साहब मृत्‍युशैया पर लेटे हुए थे, उनका यह दत्तक पुत्र चौधरी साहब के सपनों को मूर्त रूप देने के लिए संघर्षरत था।

“क्रांति रथ” के पहिये उत्तर प्रदेश में कांग्रेसी जड़ सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए चल पड़े थे जिस पर क्रांति नायक मुलायम सिंह यादव सवार थे। एक बस को क्रांति रथ का नाम देकर मुलायम सिंह यादव पूरे उत्तर प्रदेश की धूल फांकने निकल पड़े थे।

‘मैंने अपनी छोटी अवस्था के बावजूद अपने गांव के चौराहे पर नेताजी को एक तख्त पर खड़े कराके भाषण कराया था। यूपी के समस्त जिलों को छान मारा था नेताजी ने इस क्रांति रथ से और कांग्रेस विरोधी लय तैयार कर दी थी। तभी बोफोर्स का नाम गूंजा और वीपी सिंह जी राजीव गांधी से बगावत कर कांग्रेस से बाहर आ गए।

कभी वीपी सिंह द्वारा डकैत उन्मूलन के नाम पर निर्दोष लोगों के एनकाउंटर पर उनके विरुद्ध जोरदार संघर्ष करने वाले मुलायम सिंह यादव को अब बदली राजनैतिक परिस्थितियों में उनके साथ कांग्रेसी सत्ता को उखाड़ फेंकने के संकल्प को पूर्ण करने हेतु सहयोगी होना पड़ा।

वीपी सिंह और मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में यूपी सहित पूरा देश अब कांग्रेस विरोधी मोर्चे में शामिल हो गया। लोकदल, जनता पार्टी आदि विभिन्न दलों को विलीन कर जनता दल बना और जनता दल ने गैर कांग्रेस वादी राजनैतिक मुहिम को अंजाम देने के लिए भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिला लिया।

1989 में कांग्रेस को सत्ताच्युत करने के लिए पूरा विपक्ष एकजुट हुआ और रैलियां शुरू हुयीं। इन रैलियों में मुलायम सिंह यादव का कांग्रेस विरोध और साम्प्रदायिकता विरोध यथावत कायम रहा।

जनता दल और भाजपा का गठबंधन केंद्रीय स्तर पर रहा लेकिन सूबाई स्तर पर मुलायम सिंह यादव ने अपनी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के कारण भाजपा से दूरी बनाये रखी और भाजपा से इतर रहते हुए यूपी में चुनाव लड़कर सत्ता हासिल की।

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नेताजी ने बिना भाजपा से समर्थन लिए 1989 में सरकार बनाकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर देश में गैर कांग्रेसवाद के साथ ही धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को मजबूत बनाया।

पूरे प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने साम्प्रदायिक सद्भावना रैलियां कीं और फिर लखनऊ में लेमार्टिनियर मैदान में बेमिसाल साम्प्रदायिक सद्भावना रैली कर अपनी अतुलनीय शक्ति से पहली बार राष्ट्रीय राजनैतिक क्षितिज पर दमदार उपस्थिति दर्ज करायी।

यूपी की सत्ता संभालने के बाद मुलायम सिंह यादव ने दवाई-पढ़ाई माफ़ की। पीसीएएस में हिंदी को स्वीकार कर किसानों के बेटों को अधिकारी बनने का अवसर दिया। किसानों का कर्जा माफ़ किया।

बड़े पैमाने पर बूढ़ों और विधवाओं को पेंशन दिया। किसान दुर्घटना और कन्या विद्याधन दिया। मण्डल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया तो SC/ST का कोटा 22.5 % पूर्ण रूप से प्रदान किया। पंचायतों में प्रधान से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष तक की कुर्सी पर SC/ST/OBC सहित सभी वर्ग की महिलाओं को आरक्षण दिया।

यूपी मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में एक नए विहान की तरफ अग्रसर हुआ। मुलायम सिंह यादव जी के उत्तर प्रदेश की राजनीति में बलशाली बनने के बाद केंद्रीय सत्ता को हासिल करने के लिए छटपटा रही भारतीय जनता पार्टी ने हिंदुत्व के मुद्दे को खूब उछाला लेकिन नेताजी ने फौलाद बनकर उनके मंसूबों को चकनाचूर किया।

1991 के समय तो धर्मनिरपेक्षता के लिए उन्हें खुद की आत्माहुति तक देनी पड़ी।वे इतने अलोकप्रिय हुए कि उन्हें प्रदेश में महज दो दर्जन सीटों तक सिमटना पड़ा। उन्हें अपनों ने ही मुल्ला मुलायम, मौलाना मुलायम, बाबर की औलाद तक कह डाला लेकिन उन्‍होंने सैद्धांतिक धरातल छोड़ नहीं।

अलोकप्रियता के दंश को झेल गए पर उन्होंने वैचारिक प्रतिबद्धता पर आंच नहीं आने दी। विवादित बाबरी मस्जिद के गुम्बद पर चढ़ने वाले मारे गए लेकिन मुलायम सिंह यादव देश के संविधान, सुप्रीम कोर्ट के स्थगन आदेश,राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में दिए गए अपने वचन के निर्वाह हेतु मुलायम नहीं पड़े बल्कि अत्यंत कठोर बने रहे और कानून को तोड़ने वालों को जमींदोज किया और बाबरी मस्जिद जमींदोज करने की मंशा को फलीभूत नहीं होने दिया।

देश के रक्षा मंत्री बने मुलायम सिंह यादव ने जब उत्तर प्रदेश से बाहर देश की राजनीति में कदम रखा तो उन्होंने वहां भी अपना लोहा मनवा लिया तथा सेना के इतिहास में वे एक अविस्मरणीय रक्षा मंत्री के रूप में अपना नाम दर्ज करा लिया।

सीमा पर शहीद होने वाले प्रत्येक सैनिक की डेड बॉडी उसके घर लाने का कानून मुलायम सिंह यादव ने ही बनाया वरना उसके पहले हमारे शहीद सैनिक की उसके शहादत के बाद उसकी टोपी उसके घर आती थी।

नेताजी ने शहीद सैनिक की शहादत के बाद उन्हें दस लाख रूपये देने का प्राविधान किया जिसकी नकल करते हुए उनके बेटे अखिलेश यादव ने अपने प्रदेश के शहीद सैनिक को अलग से बीस लाख रुपये देने की शुरुआत की।

नेताजी ने सेना में हिंदी को सम्मान दिलाया तो हिमालय की सबसे ऊँची और बर्फीली चोटी पर धोती-कुरता पहन पहुंचे और सैनिकों की हौसला आफजाई की।

नेताजी की मौजूदगी में जब पाकिस्तानी तोपों ने सीज फायर का उल्लंघन करते हुए गोले दागे तो नेताजी ने भारतीय सैनिकों से पूछा कि ये कैसी आवाजें हैं?

सैनिकों ने जब बताया कि पाकिस्तानी तोपें गोले दाग रही हैं तो नेताजी ने पूछा था कि फिर हमारी तोपें क्यों खामोश हैं? सैनिकों ने जब जबाब दिया कि ऊपर से अनुमति नहीं है तो नेताजी ने कहा था कि आन स्पॉट खड़ा देश का रक्षा मंत्री आदेश देता है कि हमारी सेना भी जवाबी कार्रवाई करे, फिर क्या पाकिस्तान के दर्जनों बंकर ध्वस्त हो गए थे।

ऐसा सर्जिकल स्ट्राइक जिसमें खुद रक्षा मंत्री आन स्पॉट मौजूद रहे न हुआ है और न होगा। ऐसे अद्भुत नेतृत्व क्षमता के मुलायम सिंह यादव जी युद्ध समर्थक नहीं हैं, पाकिस्तान विरोधी भी नहीं है क्योंकि समाजवादियो की स्पष्ट राय है कि भारत,पाकिस्तान और बंगला देश का महासंघ बनना चाहिए क्योंकि ये अखण्ड भारत के हिस्सा हैं, आज भले ही अलग-अलग हैं।

मुलायम सिंह यादव की स्पष्ट मान्यता है कि हमें पाकिस्तान और बंगलादेश से बेहतर रिश्ते बनाने चाहिए लेकिन यदि वे युद्ध की स्थिति पैदा करते हैं तो युद्ध भारत की धरती पर नहीं वरन पाकिस्तान या बंगलादेश की धरती पर होगा। मुलायम सिंह यादव 22 नवम्बर 1939 को सैफई, इटावा में जन्म लेकर देश को अनवरत दिशा दे रहे हैं।

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