Election : गुजरात चुनाव क्यों हैं PM मोदी के लिए खास
गुजरात चुनाव में भाजपा की जीत इतनी भी आसान नहीं दिख रहीं हैं । बीते दिनों से राहुल जिस प्रकार ऐड़ी से चोटी तक को जोर लगा रहें हैं। इससे तो यहीं प्रतीत हो रहा हैं कि मोदी को गुजरात चुनाव में खासी मेहनत करनी पड़ सकती है। गुजरात चुनाव की तारीख का ऐलान होते हैं ही सभी पार्टियों की तैयारियां जोरो पर है। हालांकि गुजरात चुनाव में कांग्रेस और भाजपा की कांटे की टक्कर हैं। अब देखना ये होगा कि गेंद किसके पाले में गिरती हैं।
क्या हैं उनकी कमियां और कमजोरियां…
आइये आपको बताते हैं कि पीएम मोदी को गुजरात चुनाव में क्या मुश्किलों का सामना कर पड़ सकता हैं और क्या हैं उनकी कमियां और कमजोरियां… चुनाव होने में अभी एक महीना बचा है लेकिन तमाम तरह के सर्वे गुजरात चुनावों को लेकर सामने आने लगे हैं। इन चुनावी सर्वेक्षणों का प्रभाव भी चुनाव के नतीजों पर असर डालेगा।कांग्रेस पार्टी का मनोबल इस चुनाव में इसलिए भी बढ़ा है कि इस बार राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व नरेंद्र मोदी नहीं कर रहे हैं।
भाजपा के खिलाफ जनता को एकजुट नहीं कर पा रही है
कांग्रेस इस उम्मीद में भी है कि हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी के खुल कर समर्थन में आ जाने से पार्टी का वोट बैंक मजबूत होगा।ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर ने कांग्रेस की सदस्यता भी ले ली है लेकिन इसके बाद में चुनाव में कांग्रेस की जीत संदेह के घेरे में है क्योंकि इनमें से एक भी चेहरा अकेले किसी चुनाव को किसी निर्णायक मोड़ पर नहीं ले जा सकता। कांग्रेस के पास गुजरात सरकार को घेरने के कई मौके हैं फिर भी कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भाजपा के खिलाफ जनता को एकजुट नहीं कर पा रही है।
चुनावी रणनीति अब अमित शाह को तय करनी है
गुजरात में कांग्रेस के पास कोई ऐसा नेता नहीं है जो राहुल गांधी जैसा स्टार प्रचारक हो। गुजरात की टीम कांग्रेस राहुल गांधी के पर आश्रित है। राहुल गांधी घूम-घूम के कैंपेन कर रहे हैं लेकिन उनका साथ देने के लिए कांग्रेस में उनके स्तर का नेता गुजरात में नहीं है। भाजपा के पास भी गुजरात विधान सभा चुनावों के नेतृत्व के लिए कोई बड़ा चेहरा नहीं है। मुख्यमंत्री विजय रूपानी की लोकप्रियता भी संदेह के घेरे में है। भाजपा की पूरी चुनावी रणनीति अब अमित शाह को तय करनी है।
पहले से ही कांग्रेस के खेमे की समझी जाती है
वे किस तरह मोदी के विकास पुरुष वाली छवि को भुनाते हैं यह देखने वाली बात होगी। पाटीदार भाजपा के लिए पहले सबसे खास वोट बैंक थे लेकिन हार्दिक पटेल के पाटीदारों के लिए किए गए आरक्षण आंदोलन के बाद भाजपा के हाथ से पाटीदारों का वोट दूर जाते हुए दिख रहा है। पाटीदारों की दो मुख्य उपजातियां लेवा और कड़वा पटेल हैं। लेवा पटेलों की संख्या वोट के लिहाज से सौराष्ट्र क्षेत्र में बहुत ज्यादा है। हार्दिक पटेल कड़वा पटेल समुदाय से आते हैं जिनकी संख्या मदद से उत्तरी गुजरात में ही कुछ सीटें जीती जा सकती हैं। अल्पेश ठाकोर जिस जाति का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं वह पहले से ही कांग्रेस के खेमे की समझी जाती है।
भाजपा का शहरी समीकरण पर्याप्त है
ठाकोर को अगर जातिगत राजनीति करनी थी कांग्रेस उनके लिए एक मात्र विकल्प थी। जिग्नेश मेवानी का वोट बैंक भी बहुत सीमित है। गुजरात में दलित मुख्यत: दो समुदायों में विभाजित हैं, बुनकर और चर्मकार। बुनकरों की संख्या, चर्मकारों की संख्या से बहुत अधिक है जिसका प्रतिनिधित्व जिग्नेश मेवानी कर रहे हैं। लेकिन जिग्नेश मेवानी अपने भड़काऊ भाषणों की वजह से गुजरात में दलितों के सबसे लोकप्रिय नेता बनकर उभरे हैं। ऐसे में भाजपा का दलित वोट बैंक मेवानी की वजह से लड़खड़ा सकता है। कांगेस के माथे पर बल डालने के लिए भाजपा का शहरी समीकरण पर्याप्त है।
मोदी की 50 रैलियां गुजरात तय कर रखी हैं
भाजपा से शहरी नागरिकों का मोह भंग नहीं हुआ है। कांग्रेस के पास गुजरात में कोई बड़ा चेहरा नहीं है इसलिए शहरी जनता कांग्रेस का साथ देने के मूड में नहीं है।गुजरात विधानसभा की 182 सीटों में 45 शहरी सीटें भाजपा के खाते में जाती दिख रही हैं। भाजपा को 47 अन्य ग्रामीण सीटों पर मेहनत करने की जरूरत है जो भाजपा का ग्राफ 92 सीटों तक पहुंचा दें। कांग्रेस के लिए इतना जनाधार जुटा पाना अभी भी एक टेढ़ी खीर है। भाजपा को पता है कि मोदी मैजिक अभी कम नहीं हुआ है। भाजपा के रणनीतिकारों ने इसलिए ही प्रधानमंत्री मोदी की 50 रैलियां गुजरात तय कर रखी हैं।
चुनाव मोदी और गांधी दोनों के लिए बहुत खास होने वाला है
जहां-जहां मोदी जाएंगे वहां-वहां का राजनीतिक समीकरण बदलना तय है। कुछ भी राहुल गांधी पहले की अपेक्षा इस चुनावी कैंपेन में कहीं ज्यादा परिपक्व होकर सामने आए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष बनने की ओर राहुल गांधी निकल पड़े हैं और गुजरात चुनाव उनके भविष्य को तय करने वाले हैं। पीएम मोदी के लिए भी गुजरात चुनाव उत्तर प्रदेश के चुनाव से कहीं अधिक मायने रखने वाले हैं। गुजरात मोदी का गृह नगर है जहां से मोदी का राष्ट्रीय राजनीति में पदार्पण हुआ था। कांग्रेस का लक्ष्य है कि उसे 125 सीटें जीतनी हैं जबकि भाजपा का लक्ष्य है कि 150 सीटें जीतनी हैं, देखते हैं किसे कितनी सफलता मिलती है क्योंकि गुजरात का यह चुनाव मोदी और गांधी दोनों के लिए बहुत खास होने वाला है।
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