विज्ञान का चमत्कार ! 13 हजार साल बाद जिंदा हुए Dire Wolf …

कभी जंगलों का खूँखार शिकारी रहा डायर वुल्फ जो लगभग 13 हजार साल धरती से गायब हो गया था अब दोबारा ज़िंदा हो चुका है. जी हां, जो जानवर अब तक सिर्फ जीवाश्म में मिलता था, अब वो असल में सांस ले रहा है.

आपको मालूम ही है कि सदियों से भेड़ियों ने शिकार करके अपना पेट भरा. और कालांतर में जब मनुष्यों का दबदबा बढ़ा, तो भेड़िये आसान खाने और गर्माहट के लिए इंसानों के साथ रहने लगे. इस प्रक्रिया को घरेलूकरण कहा गया. भेड़ियों की एक खास प्रजाति मनुष्यों के साथ रहने लगी. वो आकार में छोटे थे. जो हमारी बसाहटों में चले आए, वो कुत्ते हुए.

The Return of the Dire Wolf - The Return of the Dire Wolf: 10 हजार साल पहले खत्म हो चुके भेड़ियों को फिर से पैदा किया, जेनेटिक इंजीनियरिंग का कमाल - The

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने लिखा – ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते. और जो जंगलों में रह गए, वो भेड़िये ही रहे. वो ही भेड़िये, जिनके नाम पर ‘भेड़िया आया-भेड़िया आया” की कहानी लिखी गई.

लेकिन इन सबसे अलग भेड़ियों की एक और ब्रीड थी. ज्यादा बड़ी. ज्यादा मजबूत और ज्यादा खूंखार. ये ब्रीड बर्फ में रहती, लेकिन समय का पहिया ऐसा घूमा कि आज से लगभग 13 हजार साल पहले वो विलुप्त हो गए. विलुप्त ऐसे कि उनके जीवाश्मों के अलावा हमारे पास उनकी मौजूदगी का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं था. लेकिन एक लैब, कुछ वैज्ञानिक, कुछ उपकरण और सालों की मेहनत. और फिर सामने आए उसी विलुप्त भेड़िये के कुछ शावक. वैज्ञानिकों की अथक मेहनत खुली….

इतना ही नहीं डायर वुल्फ की नस्ल पैदा होने पर लोगों को एक बार फिर याद आई स्टीवन स्पीलबर्ग की मूवी जुरासिक पार्क. जब लाखों साल पुराने जीवाश्मों को रीवायर करके विलुप्त डायनासोर्स को जन्म दिया गया था. अब सवाल यह है कि क्या हम प्रकृति की चाल को बदल रहे हैं? जो जीवों के विकास में विलुप्त हो चुके हैं, उन्हें क्यों जिलाना? और जिलाना है ही, तो खोज कहाँ जाकर खत्म होगी. तो आज जानेंगे कहानी लैब में जन्मे विलुप्त भेड़ियों डायर वुल्फ़ की….Dire wolves were real—and even stranger than we thought

बता दें कि, साल 5 जुलाई 1996 में स्कॉटलैंड में मौजूद यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबरा में एक क्लोन भेड़ का जन्म हुआ. इस भेड़ को नाम मिला – डॉली. डॉली को एक अन्य भेड़ के शरीर से निकली कोशिकाओं की नकल करके बनाया गया था.

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विंटर इज़ कमिंग…

साल 2011 में जॉर्ज बाबू के उपन्यास पर एक टीवी शो शुरू हुआ जिसका नाम था “गेम ऑफ थ्रोन्स”. खास बात यह है कि इस शो में दिखाई गई भेड़ियों की प्रजाति डायरवुल्फ़ की थी. वही डायरवुल्फ़, जो आज से लगभग 13 हजार साल पहले तक उत्तरी अमेरिका के कनाडा, अमेरिका और मेक्सिको वाले इलाकों में, और दक्षिण अमेरिका के वेनेजुएला में पाए जाते थे.

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वहीँ, 7 अप्रैल 2025 को टाइम मैगजीन ने अपने अगले अंक का कवर जारी किया. जिसमें एक सफेद रंग के डायरवुल्फ़ की तस्वीर थी. और साथ लिखा था – ये रेमस है, बीते दस हजार सालों का पहला जीवित डायरवुल्फ़.

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लेकिन सबसे खास बात यह है कि इन तीनो शावकों के नाम अब सामने आ गए है जिसमें मेल डायरवुल्फ़ रोमुलस, रेमस और खलीसी है.

अब सवाल यह है कि, ये लिस्ट कहाँ जाकर खत्म होगी? क्या हम दायरा बढ़ाकर उन जीव जंतुओं को भी लेकर आने वाले हैं, जो मानव सभ्यता के लिए खतरा हो सकते हैं? यदि ऐसा नहीं है, तो नियंत्रण कैसे बनेगा? उम्मीद है कि विज्ञान हमें ऐसे ही चौंकाता रहे. उम्मीद है कि विज्ञान हमें ऐसे ही बचाता रहे.