इन्हें नहीं कोरोना की परवाह, आटा-दाल मुहैया कराने को दिन-रात जुटे

जरा याद कीजिए उन मिलरों और मिलों में काम करने वाले मजदूरों को, जिनके निरंतर काम करने से ही आपके घर आटा, दाल और खाने-पीने की ऐसी कतिपय सामग्री पहुंच पाती है

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जरा याद कीजिए उन मिलरों और मिलों में काम करने वाले मजदूरों को, जिनके निरंतर काम करने से ही आपके घर आटा, दाल और खाने-पीने की ऐसी कतिपय सामग्री पहुंच पाती है।

कोरोनावायरस संक्रमण के खतरे की परवाह किए बगैर दिल्ली के लॉरेंस रोड औद्योगिक क्षेत्र के मिलर दिन-रात काम कर रहे हैं और उनकी कोशिशों का नतीजा ही है कि देशव्यापी लॉकडाउन के चौथे सप्ताह में भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और आसपास के इलाकों में खाद्य-सामग्री की सप्लाई चेन निरंतर बनी हुई है।

लॉकडाउन के बाद मिलों में मजदूरों की तादाद पहले के मुकाबले महज 25 फीसदी रह गई है। इसके बावजूद आटा और दाल मिलें अपनी पूरी क्षमता के 50 फीसदी का उपयोग करते हुए चल रही हैं और संकट की इस घड़ी में सीमित उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए मिलर जितना उत्पादन कर सकते थे उससे कहीं बेहतर कर रहे हैं।

घट गई मजदूरों की संख्या-

एक बड़ी दाल मिल के संचालक नेतराम गर्ग ने कहा, ‘कभी मिल बंद करने की बात कोई सोचता भी तो बंद नहीं कर पाता है, क्योंकि आटा और दाल आवश्यक वस्तुएं हैं। हमें इनकी आपूर्ति करना है चाहे कितनी भी मजदूरों की कमी क्यों न हो। मेरी मिल में मजदूरों की तादाद पहले के मुकाबले घटकर महज 25 फीसदी रह गई है, लेकिन हमने इस लॉकडाउन में भी किसी तरह अपनी मिल चालू रखी है। यकीन मानिए, लोगों को खिलाने के लिए हम ओवरटाइम काम करेंगे।’

नेतराम की मिल से कुछ ही गज की दूरी पर पवन गुप्ता की दाल मिल है जहां उन्होंने हर आगंतुक की स्कैनिंग की पूरी व्यवस्था कर रखी है और वहां आने वालों के शरीर का तापमान थर्मल गन से लिया जाता है।

प्लांट पर सैनिटाइजर-हैंडवॉश-मास्क का इंतेज़ाम-

प्रवेशद्वार पर सैनिटाइजर से हाथ साफ करना वहां सबके लिए अनिवार्य है। प्लांट के भीतर मजदूरों को मास्क दिया गया है। उनके कार्यालय में हर कर्मचारी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करता है। पवन गुप्ता और उनके बड़े भाई चौबीसों घंटे प्लांट की देखरेख करते हैं।

गुप्ता ने बताया, ‘शुरू में मजदूरों और परिवहन की समस्याएं थीं, लेकिन अब परिवहन की समस्या का समाधान हो चुका है। सरकार ने ट्रकों के निर्बाध आवाजाही की इजाजत दे दी है। हालांकि अधिकांश मजदूर अपने गांव जा चुके हैं, इसलिए मजदूरों की समस्या बनी हुई है।’

लॉकडाउन के आरंभ में यहां ट्रक बामुश्किल से पहुंच पाता था लेकिन अब यहां सैकड़ों ट्रकों का तांता लगा रहता है।

आटे की मांग में कमी-

ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल ने भी बताया कि सरकार के हस्तक्षेप से आवश्यक वस्तुओं से भरे ट्रकों का देशभर में परिचालन सुगम हो सका है।

अग्रवाल ने कहा, ‘हम कह सकते हैं कि केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद देशभर में आवश्यक वस्तुओं का परिवहन करने वाले ट्रकों का निर्बाध परिचालन हो पाया है। फिर भी मजदूरों की समस्या बनी हुई है जिससे उत्पादन प्रभावित है। लेकिन हम लोगों को आश्वासन देते हैं कि देश में आवश्यक वस्तुओं की कमी नहीं होगी।’

हालांकि रोलर फलोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष संजय पुरी ने बताया कि कई बेकरी, रेस्तरा और खाने-पीने की अन्य दुकानें बंद होने से आटे की मांग में कमी आई है।

आटा और मैदा की मांग में कमी-

रोलर फलोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के ऑनरेरी सेकट्ररी नवनीत चितलंगिया ने बताया कि आटा और मैदा की मांग में कमी आने से इनकी कीमतों में भी कमी आई है। उन्होंने कहा, ‘देशभर में गेहूं के आटे की औसत कीमत 22 रुपए प्रति किलो है जबकि मैदा की कीमत 20 रुपए प्रति किलो है। सूजी का भाव 30 रुपए और दलिया का 35 रुपए किलो है वहीं चोकर का भाव 24 रुपए प्रति किलो है।’

तकरीबन सभी मिलों का यही कहना था कि लॉकडाउन में ढील देने या इसकी समयसीमा समाप्त होने पर ज्यादा से ज्यादा मजदूर काम पर लौटेंगे जिसके बाद उत्पादन जोर पकड़ेगा।

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