मायावती ने राज्यसभा सदस्य पद से दिया इस्तीफा

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बसपा सुप्रीमो मायावती ने राज्यसभा सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया है। बता दें कि मायावती आज सदन में बोल रही थी जिसमें उन्होंने सहारनपुर दंगे का जिक्र करते हुए कहा था कि दलितों पर अत्याचार हो रहा है लेकिन सरकार ध्यान नहीं दे रही है।

इन सब के बीच मायावती को दिया गया समय खत्म हो गया जिससे सभापति ने उनको बैंठने के लिए कहा। लेकिन मायावती नहीं मानीं जिस पर बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवीं ने भी जोरदार हमला बोला। सदन में न बोल पाने की वजह से मायावती ने ये धमकी देते हुए सदन से बाहर निकल गईं कि जब उन्हें बोलने का अधिकार नही है तो वो इस्तीफा दे देंगी।

मायावती का आरोप है कि यूपी में दलितों के खिलाफ अत्याचार हो रहा है। वह इस मुद्दे को लेकर इस्तीफा दिया है। जो उनका मास्टर स्ट्रोक भी साबित हो सकता है। क्योंकि उनका कार्यकाल पूरा होने में अब करीब 9 महीने बचे हैं।

अगर वह अपना कार्यकाल पूरा भी करती हैं तो उनके पास राज्य में इतने भी विधायक नहीं हैं कि वह दोबारा चुनकर संसद के उच्च सदन में पहुंच सकें। ऐसे में दलितों के खिलाफ अत्याचार के मुद्दे पर कुर्बानी देकर वह पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उनसे छिटके दलित वोटों को एक बार फिर से अपनी झोली में लाने की कोशिश कर सकती हैं।

पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा एक भी सीट नहीं जीत पायी थी, जबकि विधानसभा चुनाव में उसकी झोली में सिर्फ 19 सीटें आयीं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिहाज से मायावती अगर दलित वोटों को एकजुट करने के लिए इस्तीफे की अपनी बात पर कायम रहती हैं तो यह उनका मास्टर स्ट्रोक भी साबित हो सकता है।

मायावती की राजनीति के केंद्र में हमेशा दलित ही रहे हैं। दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों को लंबे वक्त तक मायावती के रूप में अपना एक प्रतिनिधि दिखता रहा। लेकिन जिस तरह से मायावती ने उत्तर प्रदेश की सत्ता में रहते हुए खुद के, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, कांशीराम और हाथी के स्टैच्यू राज्यभर में लगवाए उससे वह आम जनता से कटती चली गईं।

इसके अलावा उनके ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने भी मायावती के कद को कम किया। जिस दलित की राजनीति मायावती करती रही हैं, वह कहीं पीछे छूट गया और मायावती के लिए दलित की नहीं दौलत की देवी जैसे शब्द इस्तेमाल होने लगे।

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कभी दलितों के वोट हासिल करने के लिए मायावती और उनके राजनीतिक गुरु कांशीराम ने ‘तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ जैसे नारे दिए तो बाद में मायावती ने सर्व समाज को साथ जोड़ने के लिए ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु-महेश है’ और ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ जैसे नारे भी बुलंद किए। लेकिन मायावती से धीरे-धीरे दलित जनाधार खिसकता चला गया और अगड़ी जातियां मायावती के पुराने तेवरों के चलते कभी उन्हें अपना नहीं पायीं।

राज्यसभा जाने के लिए माया को चाहिए कांग्रेस का साथ

आपको बता दें कि राज्यसभा में मायावती का कार्यकाल 2 अप्रैल 2018 तक था। यूपी में उनकी पार्टी के पास सिर्फ 19 सीटें हैं, इसलिए वह 2018 में भी दोबारा चुनकर राज्यसभा नहीं पहुंच सकतीं। वॉकआउट में मायावती का साथ देने वाली कांग्रेस ने अगर उन्हें समर्थन दिया तभी वह अगले साल उच्च सदन में पहुंच पाएंगी।

लोकसभा में पार्टी का सूपड़ा साफ पहले ही हो चुका है। ऐसे में इस्तीफे के बाद उनके पास उत्तर प्रदेश में पार्टी के पुराने जनाधार को एक बार फिर से अपने पक्ष में लाने का ही काम रह जाएगा। ऐसे में वह 2019 लोकसभा और 2022 विधानसभा चुनाव के लिए अच्छे से तैयारी कर सकती हैं।

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