मायावती छह महीने रहीं सीएम फिर भाजपा को कर दिया था दरकिनार, जानिए कितनी बार किस पार्टी से कर चुकी हैं गठबंधन
यूपी की राजनीति में बड़ी दखल रखने वाली बहुजन समाज पार्टी ने 2022 विधानसभा चुनाव में बिना किसी गठबंधन के सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
यूपी की राजनीति में बड़ी दखल रखने वाली बहुजन समाज पार्टी ने 2022 विधानसभा चुनाव में बिना किसी गठबंधन के सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। पर ऐसा नहीं है कि मायावती गठबंधन से परहेज करती है। बसपा की मुखिया मायावती भाजपा से तीन बार, सपा से दो बार और यहां तक कि कांग्रेस से भी एक बार गठबंधन कर चुकी हैं। पर कोई भी गठबंधन ज्यादा लंबा नहीं चल पाया। क्योंकि भाजपा के साथ मायावती ने छह-छह महीने सीएम बनने के समझौते के साथ गठबंधन किया था। लेकिन मायावती ने छह महीने मुख्यंत्री बने रहने के बाद जैसे ही बीजेपी के कल्याण सिंह की सत्ता सम्हालने की बारी आयी तो समझौता तोड़ दिया।
तीन बार भाजपा से मिला चुकी हैं हाथ:
बसपा ने भाजपा के साथ 1995, 1997 और 2002 में गठबंधन किया था। 1995 में भाजपा के साथ गठबंधन करके ही मायावती पहली बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थीं। भाजपा ने उन्हें बाहर से समर्थन देकर उनकी सरकार बनवाई थी। सरकार ज्यादा दिन तक चल नहीं पायी और 1996 में चुनाव हो गया। 1997 में दूसरी बार भाजपा के साथ गठबंधन करके मायावती सीएम बनीं। उस दौरान ये तय हुआ था कि मायावती और कल्याण सिंह 6-6 महीने सीएम बनेंगे। लेकिन मायावती स्वयं 6 महीने सीएम रहने के बाद कल्याण सिंह के मुख्यंत्री बनने के कुछ दिन बाद उन्होंने गठबंधन तोड़ दिया। पांच साल बाद साल 2002 में फिर से मायावती ने भाजपा से गठबंधन किया। तब भाजपा और बसपा ने मिलकर सरकार बनाई। मायावती तीसरी बार भाजपा से गठबंधन करके सीएम बनीं। इस तरह तीन बार मायावती ने भाजपा के समर्थन के साथ यूपी की सत्ता संभाली। बता दें कि 2007 में उन्हें पूर्ण बहुमत मिला और उन्होने बिना किसी के समर्थन के पांच साल तक यूपी में सरकार चलाई।
सपा से मिलाया हाथ और हो गया गेस्ट हाउस कांड:
बसपा सुप्रीमों मायावती समाजवादी पार्टी से भी गठबधंन किया था। प्रदेश की राजनीति का फेमस गेस्ट हाउस कांड इसी गठबंधन का नतीजा था। जो गठबंधन समाप्त होने की प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया था। 1993 में बसपा ने पहला गठबंधन सपा से किया था। भाजपा का यूपी के राजगद्दी की ओर लगातार बढ़ रहे कदम को रोकने के लिए मायावती और मुलायम ने एक दूसरे के साथ हाथ मिला लिया था। दोनों ने साथ मिलकर कर यूपी चुनाव में जीत दर्ज की और सरकार बनाया था। लेकिन मायावती की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और बीजेपी की कूटनीतिक चालों ने सरकार को अधिक दिनों तक सत्ता में बरकरार नहीं रहने दिया। जिससे बीच में ही गठबंधन टूट गया जिसका परिणाम 1995 में गेस्ट हाउस कांड के रूप में सामने आया। इसके बाद तो सपा और बसपा में सांप-नेवले जैसी स्थिति हो गयी। लेकिन, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा और बसपा एक बार फिर से एक हुए। इस बार मायावती और अखिलेश (बुआ-बबुआ) के बीच चुनावी समझौता हुआ, लेकिन ये साथ चुनाव परिणाम आने के साथ ही खत्म हो गया।
कांग्रेस से भी जोड़ा था रिश्ता:
मायावती भाजपा और सपा के अलावा कांग्रेस से भी राजनीतिक रिश्ता जोड़ा था। 1996 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मायावती ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। तब यूपी की विधानसभा में 425 सीटें हुआ करती थीं। मायावती 300 पर जबकि कांग्रेस 125 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। पर वो चुनाव कांग्रेस के लिए कुछ खास साबित नहीं हुआ। लेकिन बसपा के वोटों में जबरदस्त इजाफा हुआ था। 1991 में 10.26 प्रतिशत वोट पाकर 12 विधानसभा सीटों पर सिमटी बसपा 1996 में 27.73 प्रतिशत के साथ 67 सीटों पर कब्जा जमाया था। उस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला, जिसके चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था। वही उस विधानसभा चुनाव के बाद बसपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़ लिया। इस तरह कांग्रेस के साथ भी बसपा का गठजोड़ अल्पकालीन ही साबित हुआ।
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