…जब काशीराम ने छोड़ दी थी ‘अपनी नौकरी’
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने सोमवार को कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस के मौके पर श्रद्घांजलि अर्पित की। इस मौके पर मायावती ने कहा कि भाजपा की सरकार गरीबी, महंगाई व बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर विफल साबित हुई है। मायावती ने आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा लोगों का ध्यान बांटने के लिए राष्ट्रधर्म और देशभक्ति जैसे मुद्दों को उभारने का प्रयास कर रही है।
also read : भाजपा ने बिहार का अपमान किया: राजद, कांग्रेस
उन्होंने कहा कि देश में रोजी रोटी, महंगाई, आत्मसम्मान व सुरक्षा पहली आवश्यकता है। देश में दलित-ओबीसी महापुरुषों के स्मारकों की उपेक्षा हो रही है। भाजपा मुंह में राम, बगल में छुरी के मुहावरे को चरितार्थ कर रही है। इस दौरान कांशीराम स्मारक स्थल पर श्रद्घांजलि सभा का आयोजन किया गया। मायावती के साथ ही बसपा के तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं ने कांशीराम की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्घांजलि अर्पित की।
also raed : अंडर-17 विश्व कप : फ्रांस ने नई टीम न्यू कैलेडोनिया को 7-1 से हराया
इस मौके पर बताते हैं काशीराम से जुड़ी दिलचस्प बातें
सन् 1978 में बामसेफ (बैकवर्ड एंड माइनॉरिटीज कम्युनिटीज एम्प्लॉई फेडरेशन) को संगठन का औपचारिक रूप देने के बाद कांशीराम ने पुणे में अपनी नौकरी छोड़ दी थी और पूरी तरह दलित आंदोलन के लिए समर्पित हो गए। तभी उन्होंने तय कर लिया था कि अब अपने परिवार से भी कोई ताल्लुक नहीं रखेंगे. उन्होंने कई प्रतिज्ञाएं की और अपने घर वालों को बताने के लिए लंबी चिट्ठी लिखी थी।दलित मामलों के अध्ययेता प्रोफेसर बदरीनारायण ने अपने पुस्तक ‘कांशीराम लीडर ऑफ दलित’ में एक उद्धरण दिया है। जिसमें कांशीराम की बहन सबरन कौर के हवाले से बताया गया है कि कांशीराम ने कभी घर न लौटने, खुद का मकान न बनाने और दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों के घरों को ही अपना घर मानने की शपथ ली थी।
also read : गोधरा कांड में गुनाहगारों पर फैसला, जानिये क्या था पूरा मामला…
चिट्ठी पढ़कर माता बिशन कौर बहुत परेशान हुईं थीं
उन्होंने अपने संबंधियों से कोई नाता नहीं रखने, किसी शादी, जन्मदिन समारोह, अंत्येष्टि आदि में भाग न लेने और बाबा साहब अंबेडकर का सपना साकार करने तक चैन से न बैठने की कसम खायी थी।कांशीराम की चिट्ठी पढ़कर माता बिशन कौर बहुत परेशान हुईं थीं और बेटे को मनाने पुणे भागीं। उन्होंने कांग्रेस के एक दलित विधायक की बेटी से कांशीराम का विवाह तय रखा था। दो महीने तक साथ रह कर वे कांशीराम को मनाती रहीं। फिर हारकर बहुत दुख के साथ वापस लौट आईं। बाद की घटनाएं गवाह हैं कि कांशीराम ने अपनी सारी कसमें निभाईं। राखी बंधवाना तो दूर, वे अपनी बहन की शादी में भी शामिल नहीं हुए।
also read : मप्र में धूमधाम से मना करवा चौथ
मेरी मृत्यु के बाद मायावती मेरे कामों को आगे बढ़ाएंगी
न ही उसकी अचानक मृत्यु पर गए।बड़े बेटे होने के बावजूद वे अपने पिता की चिता को अग्नि देने नहीं गये। संपत्ति अर्जित करने का तो सवाल ही नहीं था। नौकरी छोड़ने के बाद वे अपने बकाया भत्ते लेने भी दफ्तर नहीं गए थे।कांशीराम का पूरा जीवन दलितों की आजादी और उनके अधिकारों के लिए जबर्दस्त संघर्ष और त्याग का उदाहरण है। मायावती से भी उन्होंने ऐसी ही अपेक्षा की थी, जब यह कहा था कि मेरी दिली तमन्ना है कि मेरी मृत्यु के बाद मायावती मेरे कामों को आगे बढ़ाएंगी। मायावती ने भी अपने शुरुआती दौर में दलित आंदोलन के लिए कम संघर्ष नहीं किया। कांशीराम ने यूं ही उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था।
also read : कांग्रेस को योग्यता के आधार पर नेता चुनने की जरूरत : जेटली
मायावती ने उत्तर प्रदेश में साइकिल से घूम-घूम कर पार्टी का संदेश पहुंचाया
बदरीनारायण की उसी किताब में कांशीराम को एक जगह यह कहते हुए बताया गया है, ‘मायावती ने उत्तर प्रदेश में साइकिल से घूम-घूम कर जिस तरह बहुजन समाज पार्टी का संदेश जनता तक पहुंचाया है उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। वह भी ऐसे समय में जबकि बीएसपी के चुनाव जीतने के आसार दूर-दूर तक नहीं थे। इस लड़की ने बुलंदशहर से बिजनौर तक साइकिल चलाई और लगातार मेरे साथ बनी रही। अगर उसने इतनी मेहनत नहीं की होती तो मैं बीएसपी को इतना आगे ले जाने में सफल नहीं हुआ होता।
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)