आंख रहजन नहीं तो फिर क्या है?
आंख पर अनेकों मुहावरें बने हैं। जब हम नौकरी में थे तो हमारे सीनियर गलत ड्राफ्टिंग पर कहते – आंखें बंद कर काम करते हो। आंखें दिखाना तो उनका रोजमर्रा का काम था। रिटायर हो जाने पर अब मेरे आंखों के तारे (पोते ) आंखें दिखाते हैं – बाज दफा आइसक्रीम / चाकलेट न ले आने पर। हम आंख से अंधे होते जा रहे हैं। हर बार चश्मे का नम्बर बढ़ता जा रहा है। लेकिन अब भी गांठ के पूरे हैं। हम आज भी पूरे परिवार का पूरा खर्च चला लेने की कूवत रखते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि हम आंख के अंधे हैं, पर गांठ के पूरे हैं। आंखें बदल जाना भी एक मुहावरा है। इसी से मिलता जुलता एक और मुहावरा है – आंख वही, पर नजर बदल गयी है। कई बार निगाहें नेक भी बदनाम हो जाती हैं। लोग कहना शुरु कर देते हैं – निगाहें बदल गयीं हैं।
कई बार नाम के अनुरुप काम न होने पर लोग फब्ती कसते हैं – आंख के अंधे नाम नयनसुख। रवींद्र नाथ ने एक उपन्यास लिखा था – आंख की किरकिरी। इसे आप आंख का कांटा भी कह सकते हैं। जब कोई फूटी आंख न सुहाता हो उसे आप उसे आंख का कांटा कह सकते हैं। उससे सभी आंखें फेर लेते हैं। वह बेचारा भी सभी से आंखें चुराने लगता है। जो आंखों में समाए रहते हैं, उन्हें लोग आंखों पर बिठाकर रखते हैं। उनके इंतजार में लोग आंखें बिछा देते हैं। उनकी राह देखते-देखते आंखें पथरा जाती हैं। उनका इंतजार ‘ अंखियां थक गयी पंथ निहार ‘ वाली हो जाती है। पर, वह निर्मोही आंखों में धूल झोंक कर दफा हो जाता है। कभी नहीं आता है। आंखों को एक कसक दे जाता है।
आंखों को इंतजार का देकर हुनर चला गया ,
चाहा था एक शख्स को जाने कहां चला गया।
एक फिल्मी गीत नब्बे के दशक में काफी मशहूर हुआ था। लड़का आंख मारे। साथ में यह भी था लड़की आंख मारे। पहले आंख मारने में महारत केवल लड़कों को ही हासिल थी। अब लड़कियां भी पीछे नहीं रही। जब से नारी जागृति का दौर शुरु हुआ है, वे भी इस हुनर में पारंगत हो गयी हैं। अब एक ऐसा दौर आएगा, जब पुरुष आंखें तरसेंगी; पर उन्हें आंख मारने का मौका नहीं मिलेगा। यह हुनर औरतों की बपौती हो जाएगी। पुरुष चाह कर भी इस कला का इजहार नहीं कर पाएंगे, क्योंकि इसमें पुरुषों की बजाय औरतों की प्रवीणता प्रखर हो जाएगी। वे केवल ” ये न थी हमारी किस्मत ,,,,” गाते रह जाएंगे।
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प्रिया प्रकाश वारियार नाम की एक लड़की ने सबकी आंखों की नींद चुरा ली है। वह आंख मारने की कला में काफी सिद्ध हस्त हो गयी है। उसकी आंख मारने वाली वीडियो बहुत वायरल हो रही है। सब देखने वाले पगला गये हैं। टी वी वाले भी प्रिया प्रकाश पर स्पेशल शो कर रहे हैं। प्रतिक्रिया भी अलग अलग आ रही हैं। कुछ उसकी आंखों के तीर से घायल हो रहे हैं तो कुछ मेरे जैसै हैं (जो घायल होने की उम्र पार कर गये हैं) जिनकी भावनाएं आहत हो रही हैं। वे सरे आम कहते हैं-क्या जमाना आ गया है? देश में गरीबी, भुखमरी, मंहगाई, पेट्रोल डीजल के बढ़ते दाम पर बहस नहीं हो रही है। बहस हो रही है तो केवल लड़की के आंख मारने पर। वैसे आंख लुटेरी भी होती है। इस पर भी एक राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए ।
आंख रहजन नहीं तो फिर क्या है,
लूट लेती है काफिला दिल का।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
(लेखक एसडी ओझा चंडीगढ़ में रहते और तमाम विषयों पर लगातार लिखते रहते हैं। प्रस्तुत लेख उनके फेसबुक वाल से लिया गया है।)