एसिड पीड़िताओं का दर्द: सरकार नहीं कर रही मदद
हमारे देश में आज भी ऐसी कई महिलाएं हैं जिनका जीवन कईयों के लिए एक मिसाल है। एसिड यानी तेजाब ऐसी खतरनाक चीज है जिसकी एक बूंद अगर शरीर के किसी भी हिस्से में पड़ जाए तो जिंदगी बोझ बन जाती है।
Policenewsup ने उत्तर प्रदेश के लखनऊ स्थित शिरोज कैफे में काम कर रही, ऐसी ही एक एसिड पीड़िता कुंती सोनी से बातचीत की। लखनऊ में तत्कािलीन मुख्यंमंत्री अखिलेश यादव ने एसिड अटैक पीडि़ता महिलाओं के लिए एक संस्था का निर्माण किया है। ये महिलाएं इस संस्था में काम करके अपनी जिंदगी चला रही हैं।
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पेश है कुंती सोनी से बातचीत का एक अंश
‘मेरा नाम कुंती सोनी है। सबसे पहले मैं माननीय अखिलेश यादव जी का तहे दिल से शुक्रिया करना चाहूंगी जिन्होंने ऐसी संस्था को चलाया। यह बेसहारा महिलाओं के लिए यह बहुत बड़ा सहारा है। जहां, एक तरफ अखिलेश जी द्वारा ये काम मिला है वहीं, दूसरी ओर जब से नई सरकार बनी है तब से समय से सैलरी न मिलने के कारण हमारी जिंदगी बड़ी बोझिल हो गई है।’
राजाजीपुरम की रहने वाली कुंती सोनी
‘मैं लखनऊ के राजाजीपुरम की रहने वाली हूं। मेरे घर में मां-बाप के अलावा मेरी 5 बहनें और 3 भाई हैं। जिनमें से सबसे बड़ी मैं हूं। पढ़ाई में रुचि न होने के कारण मैंने पढ़ाई छोड़ दी। मेरे परिवार वालों ने भी मुझे ज्यादा से ज्यादा घर का काम सिखाया। जिससे बाहर निकलकर चीजों के बारे में कुछ खास जानकारी मुझे नहीं हो पाई। पढ़ाई तो ज्यादा नहीं हो सकी लेकिन घर की बड़ी होने के कारण जल्द ही शादी करनी पड़ी।’
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देखिए वीडियो:
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चौक में हुई थी शादी
‘मेरी शादी चौक में रहने वाले रमाकांत रस्तोगी से दो दिसंबर, 2009 को हुई थी। शादी के बाद मेरे पति दो महीने के लिए मुझे छोड़ कर चले गए थे। जब वापस वो घर आए तो मुझे उनके शराब पीने के बारे में पता चला था। डेली शाम को शराब पीकर आते और मुझे बहुत मारते थे। घर के लोग रोज की कलह से बहुत परेशान हो गये। जिससे रमाकांत के पिता ने उन्हें और मुझे घर से निकाल दिया। घरवालों ने उन्हें इसलिए घर से निकाला कि शायद बेटे को जिम्मेदारी का एहसास हो जाये और कहीं नौकरी करने लगे। उन्हें क्या पता था कि हालात और खराब हो जाएंगे।’
‘घर से निकलने के बाद मैं और मेरे हसबैंड ने एक फैक्ट्री में काम करना शुरू किया। इस दौरान हम एक किराए के मकान में रहने लगे। साथ में काम पर आते और साथ ही वापस घर जाते थे लेकिन जब वो शराब के नशे में होते तो मुझे मारते और गालियां देते। दूसरे लड़कों के साथ मेरे गलत संबंध होने का झूठा आरोप लगाते थे। मुझ पर हमेशा शक करते थे कि फैक्ट्री के लड़कों के साथ मेरा चक्कर है। जिसकी वजह से वो डेली शाम को शराब पीकर आते और मुझे मारते थे।’
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बहुत प्रताड़ित किया मेरे मेरे पति ने मुझे
‘एक दिन शाम को उन्होंने मुझसे कहा कि कल से तुम काम पर मत जाना। मैंने उनकी ये भी बात मान ली और दूसरे दिन काम पर जाने के लिए मैं तैयार नहीं हुई। फिर वो मुझसे बोले कि काम पर चलो मैंने नशे में बोला था। फिर मैंने काम पर जाना शुरू कर दिया। कुछ ही दिन बाद उन्होंने मुझे बहुत मारा जिसके कारण मैं बेहोश हो गई। जिसके बाद मकान मालकिन ने मेरे मायके में फोन कर मेरी इस हालत की सूचना दी। मेरे घरवाले आकर मुझे अपने साथ घर लेकर चले गये। दूसरे दिन जब मैं काम पर गई तो वहां मैंने रमाकांत से बात नहीं की। उनके बार-बार फोन भी आते रहे लेकिन मैंने उनसे फोन पर भी बात नहीं की।’
शिरोज हैंगआउट ने मुझे नई जिन्दगी की राह दिखाई
‘जहां हम किराए के मकान पर रहते थे। उनकी बेटी भी हमारे साथ फैक्ट्री में काम करती थी। रमाकांत ने उस लड़की से कहा कि वो मुझसे आकर मिले। बोले कि मैं एक बार उससे बात कर लूं। मैं बात करने के लिए गई तो उन्होंने मुझे फैक्ट्री से थोड़ा दूर अंधेरे में ले जाकर मुझ पर तेजाब डाल दिया और वहां से चले गये। यह कहते हुए कि मेरी नहीं तो तुम किसी की नहीं हो सकती। मैं जलन व दर्द से कुछ देर छटपटाती रही। फिर मकान मालकिन की बेटी आयी वो भी मुझे इस हालत में देख परेशान हो गई। उसने मुझे हाथ लगाया तो उसके हाथ जल गए जिससे वह बेहोश हो गई। फिर, कंपनी वालों को पता चला तो उन्हों ने पुलिस को इस घटना की जानकारी दी।’
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‘इस घटना के बाद वो डेढ़ साल जेल में रहे फिर उनके पिताजी ने उन्हें बेल पर छुड़ा लिया। इसके बाद मैंने उनसे तलाक लेने का फैसला किया। हमारे तलाक का केस कोर्ट में चलने लगा। इसी दौरान मुझे मेरे वकील ने शिरोज हैंगआउट के बारे में बताया। उनके बताने के बाद मैं शिरोज कैफे आयी जहां मेरी दुर्गा सर से मुलाकात हुई। मैं 31 मार्च को यहां आयी थी और एक अप्रैल से मैंने यहां काम करना शुरू कर दिया।’
‘एक के बाद एक मुसीबत मेरी जिंदगी में आती रही। इतना सब होने के बाद एक दिन मैंने अपने वकील के पास तारीख पता करने के लिए फोन किया तो मुझे पता चला कि मेरे पति अब इस दुनिया में नहीं रहे। इतना सब होने के बाद भी ये सुनते ही ऐसा लगा कि मेरी दुनिया ही उजड़ गयी है। 22 अगस्त, 2017 को एक्सीडेंट में उनकी जान चली गयी और इस बात की सूचना मुझे किसी ने नहीं दी। मुझे आज भी उनके परिवार के लिए दर्द है कि वो अपने मां-बाप के अकेले लड़के थे। अगर मुझे इतना बुरा लग रहा है तो उन्होंने कैसे इस सदमे को बर्दाश्त किया होगा।’
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‘बस यहीं से मेरी जिंदगी की सारी लड़ाई खत्म हो गई। आज भी मैं उन्हें याद करती हूं। लेकिन जब से मैं शिरोज कैफे से जुड़ी हूं, मैं अपनी जिंदगी खुश होकर जी रही हूं। पीछे जो गया वो वापस नहीं आएगा बस इसी सोच में मैं अपनी जिंदगी अपने परिवार के साथ खुश होकर गुजार रही हूं।’