लोकसभा चुनाव 2024: 10 सीटें बचाने के लिए मायावती ने किया बड़ा बदलाव, युवाओं पर बसपा का फोकस, 3 प्वॉइंट्स में समझें रणनीति
अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए बसपा सुप्रीमों मायावती ने अपनी रणनीति को लेकर बड़ा बदलाव किया है. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा को मिली करारी शिकस्त के बाद मायावती का पूरा फोकस लोकसभा की 10 सीटें बचाने को लेकर है. वहीं, मायावती के आदेश के मुताबिक, बसपा की सभी कमेटी में 50 प्रतिशत युवा लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने की बात कही जा रही है. जिसके लिए लोगों से संपर्क साधने का काम भी शुरू कर दिया गया है. इसके अलावा, बसपा ने ‘गांव चलो अभियान’ की रणनीति पर भी काम करना शुरू कर दिया है.
3 प्वॉइंट्स में समझें बसपा की नयी रणनीति…
1. यूपी निकाय चुनाव से लेकर आगे होने वाले सभी चुनावों में बसपा 50 प्रतिशत दलित युवाओं टिकट को दे सकती है.
2. मायावती और बसपा के मिशन के बारे में अधिक समझने के लिए इन दलित युवाओं को संगठन में जगह दी जाएगी.
3. लोगों से संपर्क बनाने के लिए ‘गांव चलो अभियान’ शुरू किया जाएगा. इस अभियान की पूरी रिपोर्ट जोनल कॉर्डिनेटर बनाएंगे.
10 सीट बचाने के लिए मायावती की जद्दोजहद…
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर लोकसभा की 38 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि, सपा के मुकाबले बसपा को अधिक फायदा हुआ था. इसमें बसपा ने 10 सीटों (बिजनौर, नगीना, अमरोहा, अंबेडकरनगर, गाजीपुर, श्रावस्ती, लालगंज, सहारनपुर, घोषी और जौनपुर) पर जीत दर्ज की थी. इनमें अधिकांश सीटों पर मुस्लिम, ओबीसी और दलित वोटरों का प्रभाव है. यही वजह थी कि गठबंधन की वजह से बसपा जीती थी. इसके अलावा, मेरठ और मोहनलालगंज सीट पर बसपा के उम्मीदवार 5 हजार से भी कम वोट से हारे थे. ऐसे में मायावती का फोकस इस बार कुल 12 सीटों पर अधिक है. ये जद्दोजहद इसलिए भी है कि अपने ही गढ़ अंबेडकरनगर में बसपा सबसे कमजोर पड़ गई है.
साल 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा सिर्फ 1 सीट पर जीत दर्ज की थी. वोट प्रतिशत में भारी गिरावट देखते हुए मायावती ने हार के लिए मीडिया को जिम्मेदार ठहराया था और आगे की रणनीति पर काम करने की बात कही थी. साल 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा ने सभी 403 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें 290 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी.
साल 2012 में सत्ता से हटने के बाद कई पुराने और दिग्गज नेताओं ने मायावती और बसपा से दूरी बना ली थी. जिसमें कुछ ने खुद पार्टी छोड़ी थी तो कुछ को मायावती ने निकाल दिया था. पिछले 10 सालों में बसपा से दूरी बनाने वाले दिग्गज नेताओं में स्वामी प्रसाद मौर्य, आर के चौधरी, इंद्रजीत सरोज, ब्रजेश पाठक, राम अचल राजभर, लालजी वर्मा, नसीमुद्दीन सिद्दीकी और मिठाई लाल भारती का नाम प्रमुख हैं. बसपा के शुरुआती मूवमेंट से जुड़े इन सभी नेताओं ने मिशन को आगे बढ़ाने के लिए कई पदों पर काबिज रहे थे.
बीते कुछ सालों की बात करें तो भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद का यूपी में दलितों के बीच सियासी उभार तेजी से हुआ है. हालांकि, मायावती ने चंद्रशेखर को विपक्षी पार्टियों का एजेंट बताकर उनसे पल्ला झाड़ लिया था. लेकिन, खतौली उपचुनाव के बाद बसपा की टेंशन बढ़ गई. दलित युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय चंद्रशेखर आजाद उनके मुद्दे उठाने को लेकर कई बार जेल भी जा चुके हैं. बताया जा रहा है कि साल 2024 के चुनाव में सपा गठबंधन से वो चुनाव लड़ सकते हैं. बता दें यूपी में करीब 21 प्रतिशत दलित वोटर्स हैं. इसमें 13 प्रतिशत जाटव और 8 प्रतिशत गैर-जाटव वोटर्स हैं. साल 2022 में मायावती को केवल 12 प्रतिशत वोट ही मिले थे.
मायावती के राजनैतिक प्रयोग…
साल 2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने ब्राह्मण और दलित गठबंधन का प्रयोग किया था. हालांकि, उनका यह प्रयोग हिट रहा और बसपा पहली बार यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब रही. इसके बाद सत्ता बचाने और सरकार बनाने के लिए मायावती ने कई राजनीतिक प्रयोग किए जो फेल होते रहे. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा सोशल मीडिया पर आई और खुद मायावती ने अपना अकाउंट ट्विटर पर बनवाया. साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने मीडिया के माध्यम से अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए प्रवक्ताओं की सूची भी जारी की थी. बसपा के इतिहास में यह पहला प्रयोग किया गया था. हालांकि, हार के बाद मायावती ने सूची को निरस्त कर दी.
कांशीराम ने किया था बसपा का गठन…
साल 1984 में कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था जो दलितों के बीच सामाजिक मूवमेंट चलाने और मिशन पूरा करने के लिए था. बसपा एक कैडर बेस्ड पार्टी है, जिसका संचालन बामसेफ करती है. मूवमेंट को सुचारू रूप से चलाने के लिए बसपा में जोनल कॉर्डिनेटर का पद बनाया गया था.
साल 1989 लोकसभा चुनाव में पहली बार हाथी चुनाव चिह्न लेकर बसपा मैदान में उतरी थी. इसमें 4 सीटों पर बसपा जीती थी. साल 2009 तक पार्टी का ग्राफ बढ़ता रहा. यूपी के अलावा, पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार में भी बसपा ने अपने पांव जमा लिए.
बसपा का ग्राफ साल 2012 के बाद से गिरता गया और साल 2022 तक बसपा अपने आस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. लोकसभा में बसपा के 10 सांसद हैं, लेकिन विधानसभा और राज्यसभा में बसपा की स्थिति डामाडोल हैं. जिस तरह से बसपा का जनाधार गिर रहा है, ऐसे में 10 सीटें भी बचा पाना आसान नहीं दिख रहा है.