इस लेखिका की झोली में हैं कई साहित्यिक पुरस्कार
महिलाओं को अब सिर्फ किचन तक सीमित रखना उनकों किसी पिंजरे में कैद करने के बराबर है। क्योंकि महिलाओं के बिना इस देश का विकास कभी संभव नही है। अगर देश को सशक्त बनाना है तो महिलाओं को भी सशक्त बनाना पड़ेगा। देश की बागडोर जब एक महिला संभाल सकती है तो देश के विकास का भागीदार क्यों नहीं बनाया जा सकता। कुछ ऐसा ही मानना है हिंदी और मैथिली की जानी मानी लेखिका और पद्म श्री से सम्मानित डॉ. उषा किरण खान का।
उनका कहना है कि अब स्त्रियों को घर में कैद करके रखना उनके जीवन को जंजीरों में कैद करने के बराबर है। साथ ही उषा किरण खान का कहना है कि महिलाओं में आए दिन साहित्य के प्रति रुचि बढ़ रही है।
बता दें कि मैथिलीमें चार उपन्यास चार नाटक, एक कविता संग्रह और एक कहानी संग्रह की लेखिका उषा किरण खान ने कहा कि कि स्त्रियों में पढ़ने की ललक पुरुषों के बाद जागी और जब से स्त्रियों ने पढ़ना शुरू किया, अपनी बात भी रखने लगी हैं। उनका दावा है कि पुरुष से ज्यादा सृजनशील स्त्री होती है।
उनका कहना है, “स्त्रियों ने लेखनी के माध्यम से जो भी व्यक्त किया, वह उनकी भावना है। स्त्रियों की रचना में कल्पनाशीलता कम, भोगा हुआ यथार्थ ज्यादा होता है।” उषा किरण ने स्त्री और पुरुष साहित्यकारों में अंतर के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि दोनों में कोई अंतर नहीं है। दोनों की दृष्टि में अंतर जरूर है।
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स्त्रियों के लेखन में उनकी संवेदनाएं गहराई से उभरती हैं। वहीं पद्मश्री मिलने की बात पर उनका कहना है कि पुरस्कार मिलने की खुशी जरूर होती है लेकिन उससे रचनात्मकता पर कोई असर नहीं पड़ता। इसलिए साहित्यकार पुरस्कारों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते। साहित्यकार तो बस अपनी धुन में लिखते चले जाते हैं।
उषा को बचपन से ही लिखने में रूचि थी। और जिसकी वजह से वो स्कूल के विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लिया करती थी। । इसके बाद मैं कविताएं लिखने लगी और बाबा के साथ कई स्थानों पर जाकर कविता पाठ करने का मौका भी मिला।”
उन्होंने बताया, “12वीं कक्षा के बाद तो साहित्य में और रुचि बढ़ी, फिर बढ़ती ही चली गई।” उषा किरण खान कल्चरल हिस्ट्री में पीएचडी कर चुकी हैं। वह बी.एड. कॉलेज (मगध विश्वविद्यालय) में एंसिएंट हिस्ट्री एंड एशियन स्टडीज की विभागाध्यक्ष पद से साल 2005 में सेवानिवृत्त हुईं। उषा की झोली में साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई पुरस्कार आ चुके हैं।
1988 में आए भूकंप की पृष्ठभूमि पर आधारित उनका मैथिली उपन्यास ‘हसीना मंजिल’ काफी चर्चित हुआ है। दरभंगा में जन्मीं उषा किरण महिला चरखा समिति की अध्यक्ष रह चुकी हैं। इस समिति से महान स्वतंत्रता सेनानी लोकनायक जयप्रकाश नारायण और उनकी पत्नी प्रभावती भी जुड़ी रही हैं।
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