कभी लगाते थे रेलवे स्टेशन पर फल की दुकान, आज हैं हजारों करोड़ के मालिक

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कहते हैं अगर इंसान को खुद पर भरोसा हो तो कोई भी काम असंभव नहीं होता है। किसी काम के प्रति खुद के मन में अटूट विश्वास होना चाहिए। अगर आपके अंदर कुछ नया करने और उसे हासिल करने की दृढ़ इच्छाशक्ति है तो आप को सफल होने से कोई भी नहीं रोक सकता है। क्योंकि कहते हैं जो खुद पर भरोसा करता है किस्मत भी उसी का साथ देती है।

आज हम एक ऐसे शख्स की कहानी लेकर आए हैं जिसने अपनी जिंदगी में गरीबी के वो दंश झेले हैं जिसमें इंसान फंसने के बाद कभी निकल नहीं पाता है। लेकिन इस इंसान की कड़ी मेहनत खुद पर अटूट विश्वास और आगे बढ़ने का जूनून इसे ऐसी शोहरत की बुलंदियों पर लाकर खड़ा कर दिया जिसे देखकर ये कहा जा सकता है कि कोई भी इंसान किस्मत ऊपर से लिखा कर नहीं लाता है। सभी को अपनी मेहनत और हिम्मत से अपनी तकदीर खुद ही लिखनी पड़ती है।

महाराष्ट्र के सतारा गांव में एक छोटी सी कोठरी में रहने वाले हनमंत रामदास गायकवाड का  जीवन बहुत ही गरीबी भरे दिनों से गुजरा था। हनमंत अपने पूरे परिवार के साथ एक कोठरी में जीवन यापन करते थे। पिता जी कोर्ट में एक कलर्क की नौकरी करते थे उसी से पूरे् परिवार का खर्च चलता था। साथ ही उसी पैसे से हनमंत की पढ़ाई भी किसी तरह से हो रही थी।

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उनके पिता जानते थे कि हनमंत पढ़ने में तेज है और उसकी पढ़ाई किसी भी तरह से बाधित नहीं होनी चाहिए। कई सालों तक संघर्ष का यही सिलसिला चलता रहा। इसी दौरान उनके पिता का तबादला मुंबई हो गया। मुंबई की हवा उनके पिता को रास नहीं आई और वो बीमार हो गए। साथ ही उनके बीमार हो जाने से घर की स्थिति और भी दयनीय हो गई।

फिर घर की पूरी जिम्मेदारी हनंत पर ही आ गई। हनमंत ने अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए स्टेशन पर फल की दुकान लगाने लगे। साथ ही उनकी मां घर पर सिलाई का काम करने लगी। उसी से घर का खर्चा औऱ हनमंत की पढ़ाई का पैसा भी उसी से किसी तरह निकले लगा। हनमंत के पिता का सपना था कि बेटा आईएएस अफसर बने। लेकिन ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था।

घर की स्थिति को देखते हुए हनमंत ने ऐसी पढ़ाई करने की सोची जिससे उन्हें जल्दी नौकरी मिल जाए। और इसी के साथ ही दसवीं पास करने के बाद हनमंत ने इलेक्ट्रॉनिक्स में पॉलिटेक्निक कोर्स करने का निश्चय किया। औरंगाबाद के गवर्नमेंट कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। साल 1994 में इन्होंने टाटा मोटर्स के पूणे संयंत्र मे स्नातक प्रशिक्षु इंजीनियर के रुप में अपने करियर की शुरुआत कर दी।

टाटा मोटर्स में काम करते हुए इन्होंने केबल का काफी अच्छी तरह से उपयोग करते हुए कंपनी की लागत में काफी बचत की। जिससे ये चर्चा में आ गए। इसी दौरान गांव के कुछ युवाओं ने नौकरी के लिए इनसे सिफारिश लगाने के लिए कहा। हनमंत ने उच्च अधिकारियों से बातचीत कर 8 लोगों को नौकरी दिलाने में सफल रहे।

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लेकिन कंपनी रोल पर उन्हें काम नहीं मिल सका। कुछ दिनों के बाध हनमंत ने कुछ अलग करने की सोची और उन्होंने खुद की एक कंपनी खोलने का फैसला किया। हनमंत ने भारत विकास समूह के रूप में अपना संगठन नामित करने का फैसला भी कर लिया। बता दें कि महज 8 लोगों से शुरु हुई यह कंपनी आज देश के बीस राज्यों में अपनी सेवाएं मुहैया करा रही है।

कंपनी के 800 से ज्यादा क्लाइंट है। और इनके ग्राहकों की सूची में देश-विदेश की नामचीन कंपनिया जुड़ी हैं। एशिया महाद्वीप में आपातकालीन चिकित्सा सेवा देने वाली सबसे बड़ी कंपनी बन गई है। बता दें कि ये कंपनी राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, प्रधानमंत्री निवास और उच्च न्यायालय जैसे देश के अत्यंत महत्वपूर्ण स्थानों की सफाई औऱ देखरेख की जिम्मेदारी भी भारत विकास ग्रुप के पास ही है।

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