भारत की हर भाषा मातृभाषा और समाज स्वीकृत है. भाषा मानव जाति की सर्वोत्तम खोज है. विश्व की सभी संस्कृतियां और बोध भाषा के कारण ही संरक्षित रहती हैं. भाषा प्रवाहमान है और समुद्र की तरह अनंत व अथाह है.
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यह विचार भारतीय भाषा सम्मेलन 2024 काशी के उद्घाटन सत्र में शनिवार को बीएचयू के विज्ञान संकुल महामना सभागार में बतौर मुख्य अतिथि बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य प्रोफेसर अरुण कुमार भगत ने व्यक्त किये. उन्होंने कहाकि भारतीय भाषाएं सामाजिक परम्परा की भाषा है और यह हमारी विरासत की पहचान हैं. यह हमें अपनी जड़ों व भावनाओं से जोड़ने की भाषाएं हैं. वर्तमान समय में भारतीय भाषाओं के उन्नयन के लिए केंद्र सरकार ने कईयोजनाएं बनाई हैं और उनका क्रियान्वयन हो रहा है. भारतीय भाषाओं में सृजन, लेखन, विकास और उन्नयन वर्तमान समय की मांग है.
सम्मेलन में 400 प्रतिभागियों ने लिया भाग
यह कार्यक्रम भारतीय भाषा समिति नई दिल्ली, भारतीय शिक्षा मंडल काशी प्रांत, कला एवं वाणिज्य संकाय काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में महामना की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था. सम्मेलन में लगभग 400 प्रतिभागियों ने भाग लिया. सात सत्रों में भारतीय भाषाओं में विविध विषयों का अध्यापन : पाठ्य पुस्तक लेखन, पठन सामग्री निर्माण की प्रक्रिया – संभावना एवं चुनौतियां विषय पर प्रबुद्धजनों के मार्गदर्शन प्राप्त हुए. इसमें विकसित भारत के निर्माण में भारतीय भाषाओं की भूमिका, भारतीय भाषाओं के उन्नयन के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रयास, काव्य पाठ आदि विषयों पर चर्चा हुई. इस दौरान प्रतिभागियों को भारतीय भाषा प्रतिज्ञा का उच्चारण करते हुए शपथ दिलाई गई कि ‘मैं भारतीय भाषा की समृद्धि और विरासत को बनाए रखने और संरक्षित करने, इसके उपयोग को बढ़ावा देने और सांस्कृतिक पहचान और राष्ट्रीय एकता की बेहतरी के लिए प्रयास करने की शपथ लेता हूं.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बंद दरवाजा खोल लचीला बनाया गया
विशिष्ट अतिथि बीएचयू हिंदी विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर वशिष्ठ द्विवेदी कहा कि अपनी मातृभाषा में ही हम अपना सर्वोत्तम योगदान दे सकते हैं. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बंद दरवाजा को खोल और लचीला बनाया गया है. नई शिक्षा नीति ने विद्यार्थियों के लिए बहुविषयक ज्ञान और बहुप्रतिभाशाली बनने की ओर मार्ग प्रशस्त किया है. भविष्य में मूल्य आधारित शिक्षा देने की ओर अग्रसर होना पड़ेगा. आदर्श इंसान का निर्माण, भारतीयता से प्रेम, महापुरुषों के आदर्शों का ज्ञान, देशभक्त नागरिक का निर्माण करने के लिए मूल्य आधारित शिक्षा आवश्यक है. इसमें सबसे बड़ी भूमिका भाषा की होगी।
दुनिया ज्ञान के भंडार खोज रही थी तो भारत में नालंदा, तक्षशिला और उज्जैनी थे
मुख्य अतिथियों का स्वागत एवं विषय स्थापन डॉ. अनिल कुमार सिंह ने किया. कहा कि हमें याद करना होगा कि प्राचीन काल में जब पूरी दुनिया ज्ञान के भंडार खोज रही थी तो भारतवर्ष में नालंदा, तक्षशिला और उज्जैनी जैसे ज्ञान के प्रमुख केंद्र स्थापित थे. भारत उस समय भी शिक्षा व आर्थिक रूप से समृद्ध था. डॉक्टर मैकाले की नीतियों से भारतीय भाषाओं को नुकसान पहुंचा. अध्यक्षता वाणिज्य संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर हरेंद्र कुमार सिंह ने की. द्वितीय सत्र की अध्यक्षता पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग के सहायक आचार्य डॉ. बाला लखेंद्र ने की. हिंदी प्रशासन समिति समन्वयक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे और भारतीय भाषा समिति नई दिल्ली शैक्षिक समन्वयक डॉ. चंदन श्रीवास्तव ने प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया. विशिष्ट वक्ता हिंदी भाषा अधिकारी डॉ. विचित्र सेन सिंह रहे. विभिन्न सत्रों में आयोजित सम्मेलन संचालन का निर्वहन डॉ. अशोक कुमार ज्योति, डॉ. नीलम कुमारी, डॉ. शैलेंद्र कुमार सिंह, डॉ. राजेश सरकार, डॉ. संदीप भुयेकर और डॉक्टर मीनाक्षी ए. सिंह ने किया. समापन राष्ट्रगान से हुआ.