जानें कौन है इतिहास रचने वाली धावक जूलियन अल्फ्रेड, जिन्होंने सेंट लूसिया को दिलाया ओलंपिक में पहला पदक

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Paris Olympic 2024: पेरिस में खेले जा रहे ओलिंपिक 2024 में जूलियन अल्फ्रेड ( Julian Alfred) ने महिलाओं की 100 मीटर का फाइनल जीतकर इतिहास रच दिया है. जूलियन अल्फ्रेड सेंट लुसिया ( Siant Lucia) के लिए मेडल जीतने वाली पहली खिलाड़ी बन गई है. उन्होंने 10.72 सेकंड में रेस को पूरा कर गोल्ड मेडल ( Gold Medal ) अपने नाम किया है. ओलिंपिक में सेंट लूसिया के लिए यह पहला मेडल है. बारिश की वजह से गीले ट्रैक पर हुई रेस में विश्व चैंपियन शा’कैरी रिचर्डसन ने 10.87 सेकंड के साथ रजत पदक जीता.

ओलिंपिक इतिहास का पहला मेडल

गौरतलब है कि सेंट लुसिया के लिए ओलिंपिक इतिहास का यह पहला मेडल है. यह मेडल 23 साल की जूलियन अल्फ्रेड ने अमेरिकी धावक शा’कैरी रिचर्डसन को हरा कार अपने नाम किया है. इससे पहले वह हीट राउंड में 10.95 सेकंड का समय लेकर 5वें नंबर पर थीं. वह सेमीफाइनल में भी सबसे तेज रेसर रहीं. 23 साल की जुलियन ने सेमीफाइनल में 10.84 सेकंड का समय लिया था.

अमेरिका ने 1996 में जीता था गोल्ड…

बता दें कि महिलाओं की 100 मीटर रेस में अमेरिका ने साल 1996 में पहली बार गोल्ड मेडल अपने नाम किया था तब गेल डेवर्स ने गोल्ड जीता था. तब से लेकर आजतक अमेरिका में इस मुकाबले में 28 साल का सूखा जारी है. जूलियन अल्फ्रेड के गोल्ड जीतने के बाद जमैका का भी दबदवा ख़त्म हो गया है.

 

जानें कौन हैं जूलियन अल्फ्रेड…

बता दें कि सेंट लूसिया, पूर्वी कैरेबियाई द्वीप है. जहां करीब दो लाख से भी कम लोग रहते हैं. जूलियन अल्फ्रेड इतिहास में द्वीप की पहली ओलंपिक पदक विजेता हैं.

जूलियन सेंट लूसिया की राजधानी और सबसे बड़े शहर कैस्ट्रीज की रहने वाली हैं. पदक जीतने के बाद जूलियन अल्फ्रेड ने कहा, “बड़े होते हुए मैंने हमेशा कहा कि मैं सेंट लूसिया के पहले ओलंपिक पदक विजेताओं में से एक बनना चाहती थी. ओलंपिक खेलों में पहला स्वर्ण पदक विजेता.”

पिता की मौत के बाद खेल से बनाई दूरी…

बताया जा रहा है कि जब जूलियन अल्फ्रेड 12 वर्ष की थीं, तब उनके पिता का निधन हो गया था, जिसके बाद उन्होंने खेल से दूरी बना ली थी. उसके बाद उन्हें तत्कालीन कोच ने ही उन्हें खेल में वापस लौटने के लिए राजी किया.

मेडल जीतने के बाद पिता को दिया श्रेय…

जूलियन अल्फ्रेड ने स्वर्ण पदक जीतने के बाद कहा, “उन्हें (उनके पिता को) विश्वास था कि मैं ओलंपियन बन सकती हूं कि मैं यहां तक पहुंच सकती हूं.” “जीत के साथ बाहर आना, खुश हूं कि मैं ऐसा कर पाई. मैं इसका श्रेय (अपने पिता को) देना चाहती हूं. … उन्होंने कहा कि अगर वह आज हमारे साथ होते तो वह अपनी बेटी के ओलंपियन बनने पर बहुत गर्व महसूस करते.

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