जानें फ्री के पानी की मिनरल वाटर बनने तक की पूरी कहानी, ऐसे आया बोतल ब्रांड
‘पानी’ हमारी दिनचर्या के उपयोग में आने वाला एक अहम् हिस्सा है जो हमारे जीवन के लिए काफी महत्वपूर्ण है शयद यही कारण है कि प्रकृति ने इसे हमारे लिए बिना किसी शुल्क के हमें प्रदान किया है,लेकिन बीतें कुछ सालों की बात करें तो स्थिति कुछ अलग हो चुकी है आज के समय में लोगो को पानी पिने के लिए भी अब शुल्क चुकाना पड़ता है जिसका मुख्य उदहारण पानी का बोटल है। प्रकृति की तरफ से मिले मुफ्त में पानी को आज लोगों को इसे उपयोग में लाने के लिए शुल्क चुकाना पड़ता है। किन्तु कुछ दशक पहले ऐसा नहीं था, तो आइये जानते है कि भारत में पानी के बॉटल को कब लाया गया और इसके पीछे के इतिहास के बारे में –
भारत में मिनरल वाटर क्रांति को जानने के लिए हमें 1960 के उस दौर में लौटना पड़ेगा, जब हमारा देश अनाज की कमी से बेहाल था।
सन 1965 में इटली के नोसेरा उम्ब्रा में उनके नाम से जन्मा ब्रांडेड पानी बेचने का फार्मूला भी हमारे देश में सर्वप्रथम साइनॉर फेलिस बिसलेरी ही लाए थे. साइनॉर फेलिस बिसलेरी एक व्यापारी इन्वेंटर और एक केमेस्ट्री कंपनी थी. और बिसलेरी के मालिक थे डॉक्टर रोजिज. शुरुआत में यह एक मलेरिया के इलाज के लिए दवा बनाने वाली कंपनी थी. उसी दवा को बेचने के लिए इस कंपनी की मुंबई में भी एक शाखा थी. आपको बता दे कि, भारत के ही खुसरू संतुक के पिता बिसलेरी कंपनी के भारत के एक लीगल एडवाइजर होने के साथ बिसलेरी परिवार के डॉक्टर रोजिज के काफी अच्छे दोस्त भी थे.
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भारत में हो रही व्यापार वृद्धि को देखते हुए बिसलेरी के मालिक डॉक्टर रोजिज कुछ अलग करना चाहते थे. उस समय मुंबई में मिलने वाले पानी की क्वालिटी काफी खराब थी. तब डॉक्टर रोजिज को लगा कि, क्यों ना अपना बिसलेरी कॉन्सेप्ट वाला बिजनेस भारत में शुरू किया जाए. यह बिजनेस भारत में भी काफी सफल हो सकता हैं. और डॉक्टर रोजिज ने खुसरू संतुक के साथ 1965 में मुंबई के ठाणे में बिसलेरी का पहला वाटर प्लांट स्थापित किया.
बिसलेरी ने शुरुआत में मार्केट में दो प्रॉडक्टों को उतारा. पहला था बिसलेरी वाटर और दूसरा था बिसलेरी सोडा. बिसलेरी के ये दोनों प्रोडक्ट्स पहले बड़े होटल्स और रेस्टोरेंट में मिलते थे. बाद में धीरे धीरे मार्केट में उतर गई. शुरुआत में बिसलेरी, पानी से ज्यादा सोडे के लिए जाना जाने लगा. और तब उन्हें बिसलेरी वाटर बेचने में ज्यादा सफलता हासिल नहीं हो पाई. इस वजह से खुसरू संतुक अपने इन ब्रांड्स को आगे चलाना नहीं चाहते थे.
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पार्ले ने बदली किस्मत…
खुशरू संतुक द्वारा बिसलेरी कंपनी बेचे जाने की खबर इंडियन बिजनेस वर्ल्ड में जंगल में फैली आग की तरह हो गई और इसी तरह ये खबर पहुंची ‘पार्ले कंपनी’ के कर्ताधर्ता ‘चौहान ब्रदर्स’ के पास. बस फिर क्या था बिसलरी वाटर प्लांट की शुरुआत के केवल 4 साल बाद यानी 1969 में बिसलेरी को रमेश चौहान ने 4 लाख रुपये में ख़रीद लिया. इसके बाद देश भर में अपने 5 स्टोर के साथ बिसलेरी पार्ले की हो गई. ये 1970 का दशक था जब रमेश चौहान ने बिसलेरी सील्ड वाटर के दो ब्रांड नए ब्रांड बबली और स्टिल के साथ बिसलेरी सोडा को मार्केट में उतारा.
सार्वजनिक स्थानों की जान बनी बिसलेरी…
पार्ले की रिसर्च टीम लगातार इस खोज में लगी थी कि आखिर कैसे बिसलेरी को आम लोगों तक पहुंचाया जाए. कोई भी प्रोडक्ट लोगों की पसंद से सफल नहीं होता बल्कि इसे सफलता मिलती है लोगों की जरूरत से. पार्ले की रिसर्च टीम ने भी लोगों की ऐसी ही एक जरूरत को खोज निकाला. उन्होंने पाया कि देश भर के रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, सड़क किनारे ढाबे जैसे अन्य कई सार्वजनिक स्थानों पर पीने के पानी की क्वालिटी अच्छी नहीं होती. इस वजह से लोग मजबूरी में प्लेन सोडा ख़रीद कर पीते हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए पार्ले ने लोगों तक साफ पानी पहुंचाने के लिए अपने डिस्ट्रीब्यूटर्स की संख्या बढ़ा दी. प्रोडक्ट की बिक्री बढ़ाने के लिए पार्ले ने ब्रांड प्रमोशन का सहारा लिया, पेकिंग में कई तरह के बदलाव किए. इतना कुछ करने के बाद बिसलेरी वाटर मार्केट में अपनी रफ्तार पकड़ने लगा.
2000 में मिली चुनौतियां…
बिसलेरी की सफलता से प्रेरित होकर साल 2000 में बेली, एक्वाफीना और किनले जैसी कंपनियों ने भी शुद्ध पानी के दावे के साथ इस बाजार में कूदे और बिसलेरी के एकाधिकार में सेंध लगाई. दूसरे ब्रांडों से मिल रही टक्कर को देखते हुए बिसलेरी ने विभिन्न साइज के आकर्षक पैकेज बाजार में पेश किए. और अपने इस ब्रांड के विज्ञापन में भी बदलाव किया. इससे बिसलेरी और मजबूत बनती गई. 2003 में बिसलेरी ने यूरोप में भी अपने उद्यम की घोषणा की.
बता दें कि वर्तमान में बिसलेरी का रेवेन्यू 2000 करोड़ से भी अधिक हैं और कंपनी ने 2022 तक यह आकंड़ा 5000 तक लाने का निर्धारित किया हैं.
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